Read this article in Hindi to learn about the views of Frederickson on public administration.

1. परिवर्तन और प्रशासनिक अनुक्रियाशीलता (Change and Administrative Responsiveness):

नव लोक प्रशासन प्रशासन की गतिशील अवधारणा है । परिवेश में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप प्रशासन को भी बदलना चाहिये । यह तभी संभव है जब प्रशासन में ऐसे साधनों का विकास कर लिया जाये जो उसे परिवेश के प्रति अनुक्रियाशील बना सके ।

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दूसरे शब्दों में कहें तो प्रशासन में संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक दोनों स्तरों पर पर्याप्त लोचशीलता होनी चाहिये, तभी वह परिवेशीय परिवर्तनों के अनुरूप अपने को दाल सकेगा । ऐसा अनुकूलित प्रशासन ही जनता और समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम होता है और इन्हीं संदर्भों में प्रशासन की प्रभावकारिता का सही मूल्याँकन भी संभव होता है ।

2. तर्क संगति (Argument Consistency):

यह ऊपर वर्णित ग्राहकोन्मुखी प्रशासन के समान है । प्रशासन के निर्णयों, कार्य-योजनाओं का मुख्य आधार तर्कपूर्ण होना चाहिये । यह तर्क, संगती प्रशासन से संबंधित है । प्रशासन जनता से उनकी इच्छा जाने और यह भी पूछे कि उन इच्छाओं को पूरा करने के लिये जनता को कौन सा विकल्प पसन्द है । इस जन-सलाह को प्रशासन तर्क संगत तरीके से पूरा करें ।

3. प्रबन्ध-कार्मिक सम्बन्ध (Management-Personnel Relationship):

नव लोक प्रशासन कार्मिक को सजीव प्राणी मानकर उससे मानवीय व्यवहार करने पर बल देता है अर्थात् परम्परागत लोक प्रशासन की ”आर्थिक प्राणी” की अवधारणा का विरोधी है । संगठन में कार्मिक केन्द्रीय दृष्टिकोण ही अन्तत: कार्यकुशलता और मनोबल दोनों बढ़ाने में सफल होता है । और कार्मिकों के जनता के प्रति अच्छे व्यवहार को सुनिश्चित करता है ।

4. संरचनाएं (Structures):

संगठनात्मक संरचना के प्रति गतिशील दृष्टिकोण नवलोक प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है । संरचना और उसके स्तरों का निरन्तर मूल्यांकन होना चाहिये । इस समीक्षा के आधार पर विकल्पों की सूची बनायी जाये और उन्हें आवश्यकतानुरूप अपनाया जाये । उदाहरण के लिये जनता से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी योजनाओं के लिये विकेन्द्रीत, छोटे और लचिले पदसौपानिक ढाँचे अधिक लाभदायक होते है, अतएव उन्हें अपनाया जा सकता है ।

5. लोक प्रशासन में शिक्षा की वैविध्यता (Diversity of Education in Public Administration):

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फ्रेडरिक्सन के अनुसार लोक प्रशासन की एक विषय के रूप में प्रमुख विशेषता उसकी विविधता है । उसमें अनेक अवधारणाएं, दुष्टिकोण आदि विकसित हो गये हैं, जो उचित भी है क्योंकि सरकारी या सार्वजनिक मामले अत्यन्त जटिल और विविधतापूर्ण होते हैं, जिन्हें किसी एक सिद्धान्त के द्वारा नहीं समझा जा सकता है । नव लोक प्रशासन ने इसी वैविध्य शिक्षा को स्पष्ट रूप से सामने रखा है ।

फ्रेडरिक्सन के अनुसार नव लोक प्रशासन:

1. जातिगत (Generic) कम जनोन्मुखी (Public) अधिक है ।

2. विवरणात्मक या वर्णनात्मक (Descriptive) कम निर्देशात्मक (Prescriptive) अधिक है ।

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3. संस्थानन्मुखी (Institutionalized) कम, ग्राहक-उन्मुखी (Client Oriented) अधिक है ।

4. राजनीति रूप से तटस्थ (Neutral) कम आदर्शात्मक (Normative) अधिक है ।

5. यथास्थिति वादी (Unalterable) कम, परिवर्तन वादी (Alterable) अधिक है । और

6. कम वैज्ञानिक नहीं है ।

फ्रेडरिक्सन के शब्दों में, ”नवीन लोक प्रशासन की नवीनता वस्त्र के बुनने के तरीके में है, न कि प्रयोग में लाये गये धागे में । नवीनता इस तर्क में भी है कि उस वस्त्र का सही प्रयोग कैसे किया जाय ।”

आलोचनाएं:

(i) जोसेफ उवासेव कहते है कि नव लोक प्रशासन के तथाकथित संदेश 19वीं सदी में प्रचालित थे । उन्होंने इसके ”नये होने” पर ही प्रश्न चिन्ह लगाया है ।

(ii) एलेन कैम्पबेल का मत है कि नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों द्वारा उत्साह के साथ जो विषय उठाये गये उनमें से कुछ ही में नयापन था ।

(iii) कटरी एवं डफरी (इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, 1984) ने इस पर राजनीतिक विज्ञान की सीमाओं के अतिक्रमण का आरोप लगाया ।

(iv) गोलम्बयुस्की ने कहा कि यह शब्दों में उग्रवाद और क्रांतिभर है । इससे अधिक यह परंपरागत लो. प्र. से भिन्न नहीं है ।

(v) केम्बेल के शब्दों में नव लोक प्रशासन आर्दशात्मक वाक्य है जो यर्थाथ से कोसों दूर है ।

निष्कर्ष:

वाल्डो ने लिखा कि इसने लोक प्रशासन में सुधार किया तथा उसे नयी दिशाएं दी । इस सन्दर्भ में वाल्डों ”इंटर प्राइज आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” (1980) में नव लोक प्रशासन के तीन सार्वजनिक-परिप्रेक्ष्य बताते है ।

1. ग्राहक उम्मुख नौकरशाही ।

2. प्रतिनिधिक नौकरशाही और

3. जन प्रतिनिधित्व ।

जार्ज फ्रेडरिक्सन ने इसे नये द्वार खोलने वाला बताया । वस्तुत: फ्रेडरिक्सन ने मंद पड़ नव लोक प्रशासन को संजीवनी दी ।

प्रमुख कथन:

(I) गोलामब्यूस्की:

लोक प्रशासन के लिए सातवां दशक युद्ध के समान है ।

(II) काइडन:

नव लोक प्रशासन उत्साही सुधारक, सजग नीति निर्माता, मानवीय नियोक्ता और आशावादी नेता ।

(III) ओसवॉन एण्ड गैबरीयल:

नव लोक प्रशासन साहसिक सरकारी नियंत्रण स्थापित करता है ।

मूल्यांकन:

नव लोक प्रशासन अवधारणा के स्तर पर कोई नया लोक प्रशासन नहीं है, अपितु परम्परागत लोक प्रशासन में ही सुधार है । इसके प्रमुख विद्वान फ्रेडरिक्सन का मत है कि नव लोक प्रशासन में जिन नये विचारों की बात की गयी; वे अमीरकी इतिहास में पहले भी देखने को मिलते है, फर्क इतना है कि उनके महत्व का स्तर अलग-अलग रहा ।

अतएव फ्रेडरिक्सन के ही शब्दों में, ”नवीन लोक प्रशासन की नवीनता वस्त्र के बुनने के तरीके में है, न कि प्रयोग में लाये गये धागे में । नवीनता इस तर्क में भी है कि उस वस्त्र का सही प्रयोग कैसे किया जाय ।” जोसेफ उवासेज भी फ्रेडरिक्सन का समर्थन करते है और कहते है कि नव लोक प्रशासन के तथाकथित संदेश 19वीं सदी में प्रचालित थे । उन्होंने तो इसके ”नये होने” पर भी प्रश्न चिह्न लगाया है । एलेन केम्पबेल का भी यही मत है कि नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों द्वारा उत्साह के साथ जो विषय उठाये गये उनमें से कुछ ही में नयापन था ।

नव लोक प्रशासन के ”नयेपन” को लेकर उक्त आलोचनाएं अपनी जगह सही हो सकती हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रशासन की सामाजिक भूमिका को इतने दबावपूर्ण आग्रह के साथ पहले कभी नहीं उठाया गया । प्रशासन की यथास्थिति वादिता और नवीन सामाजिक मांगों के अर्न्तविरोधों को उभारकर नवीन लोक प्रशासन समय की कसौटी पर खरा उतरा है ।

यही कारण है कि “परिवर्तन” और ”प्रासंगिकता” लोक प्रशासन के वे मूल्य बन गये जो इस विषय के विकास में अब केन्द्रीय भूमिका निभा रहे है । नव लोक प्रशासन में ”नव” का महत्व इन्हीं परिवर्तनों के सन्दर्भ में का जाना चाहिये । अवस्थी और माहेश्वरी के अनुसार नव लोक प्रशासन की सबसे बड़ी उपलब्धि इस तथ्य में है कि इसने प्रशासन को समाज से जोड़ दिया है ।

कुछ आलोचक कहते हैं कि नव लोक प्रशासन के मूल्य और सिद्धान्त राजनीति के क्षेत्र में अवांछित घूसपैठ करते हैं । फिर इसमें इतने नये-नये सिद्धान्त और मॉडल विकसित हुऐ कि इसका क्षेत्र आवश्यकता की सीमा पार कर गया । विलष्ट भाषा और नयी शब्दावलियों ने लोक प्रशासन को एक भ्रम मात्र बना दिया है ।

यहां भी कहा गया है कि इसके नारे इतने आर्दशात्मक और क्रांतिकारी हैं कि बिना विधायी और जन समर्थन के उन्हें लागू करना प्रशासन के बूते की बात नहीं है । उसके पास इन्हें प्राप्त करने की न तो क्षमता है, न कौशल है और न ही तकनीक । ऐलेन केम्बेल के अनुसार नव लोक प्रशासन एक आदर्शात्मक वाक्य भर है, जो यर्थाथ से कोसों दूर है ।

परन्तु आलोचक यह भूल जाते है कि नव लोक प्रशासन राजनीति-प्रशासन के परस्पर हस्तक्षेप को जनहित में स्वीकारता है । चूंकि जनता कोई विशिष्ट समुदाय नहीं है और परिवेश पर भी विभिन्न दिशाओं से दबाव आते है अतएव नये प्रतिमानों की जरूरत अनिवार्यता हो जाती है । इस सन्दर्भ में वाल्डों ”इंटर प्राइज आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” (1980) में नव लोक प्रशासन के तीन सार्वजनिक-परिप्रेक्ष्य बताते है ।

1. ग्राहक उन्मुख नौकरशाही ।

2. प्रतिनिधिक नौकरशाही और

3. जन प्रतिनिधित्व ।

और वे कहते हैं कि यदि इन्हें ठीक ढंग से लागू कर दिया जाय तो लोक प्रशासन अधिक लोकतान्त्रिक बनकर उभरेगा । इसकी एक आलोचना व्यवहार में विफलता को लेकर की गयी है । कर्टरी व डफरी ”इंटर नेशनल जर्नल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” (1984) में संदेह जताया है कि क्या वर्तमान समाज को देखकर लगता है कि कार्यकुशलता, प्रभावशीलता, सार्वजनिक जवाबदेही के अलावा ”सामाजिक समानता” भी प्रशासन का एक स्थापित उद्देश्य बन चुका है ? उनके अनुसार अमेरिका में आज भी आय और धन की बड़ी असमानताएं मौजूद हैं ।

भारी व्यय के बावजूद वाचित वर्ग का जीवन स्तर निम्न है । उन्होने नव लोक प्रशासन को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का अतिक्रमणकर्ता कहा । उक्त आलोचना उस अमेरिकी समाज के सन्दर्भ में कही गयी है, जो नीतिगत रूप से पूंजीवादी स्वरूप का है और जहां व्यक्ति को लगभग पूर्णत: आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त है ।

ऐसे देश में नव लोक प्रशासन के सिद्धान्तों विशेषकर सामाजिक समानता का व्यवहारिक परिक्षण उचित नहीं माना जा सकता । असहायों का जिम्मा प्रशासन के मार्फत उठा रखा है । विकसित और विकासशील देशों में लोक कल्याणकारी राज्य की जिस अवधारणा से सरकारें संचालित हो रहीं है, उसके लक्ष्य नव लोक प्रशासन के भी केन्द्रीय ध्येय हैं । यूँ भी कहा जा सकता है कि राज्य के इस अवधारणा को क्रियान्वित करने की जवाबदारी जिस लोक प्रशासन पर है, वह नव लोक प्रशासन ही है ।

वस्तुतः आलोचना करते समय दो महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की गयी है:

1. नव लोक प्रशासन नीति को प्रेरित कर सकता है । उसकों अन्ततः निर्मित करने का दायित्व राजनीति का है । यह राजनीति-प्रशासन के सहयोग और एकीकरण की निर्देशात्मक अवधारणा है, उसकों सुनिश्चित करना मात्र प्रशासन का एकाधिकार नहीं है ।

2. वर्तमान प्रशासनिक संगठनों का मूल्यांकन इस सन्दर्भ में किया जाना चाहिये कि उन्होंने नव लोक प्रशासन के मूल्यों को कहां तक आत्मसात किया है । अन्यथा हम परम्परागत ढाँचों की समीक्षा को ही नव लोक प्रशासन की समीक्षा कहते रहेंगे ।

निष्कर्ष रूप में कहें तो नव लोक प्रशासन मात्र शब्दों में क्रांति या उग्रवाद नहीं है, जैसा कि गोलम्व्यूस्की ने कहा है वह लोक प्रशासन का निरन्तर बदलता ऐसा चरित्र है, जो सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में अन्तर्विषयिक व्यापक दिशाओं वाला चरित्र में लचिला प्रासनिक और तुलनात्मक होने की और प्रवृत्त है । काइडन के शब्दों में, ”नव लोक प्रशासन उत्साही सुधारक सजग नीति निर्माता, मानवीय नियोक्ता और आशावादी नेता ।”