“परमाणु निरस्त्रीकरण” पर राजीव गांधी का भाषण । Speech of Rajiv Gandhi on “Nuclear Disarmament” in Hindi Language!

प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने सन् 1985 में, 28 जनवरी को छह राष्ट्रों के शिखर सम्मेलन में आणविक निरस्त्रीकरण पर नयी दिल्ली में वक्तव्य दिया । ‘महामहिम, देवियो और सज्जनों, मानव जाति के लिए शान्ति आज या हमेशा से ही सबसे बड़ी चिन्ता का विषय रही है और इसी कारण हम यहां इकट्‌ठे हुए हैं ।

हम न सिर्फ अपने देश के लोगों का बल्कि शान्ति के उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सभी महादेशों और देशों से जुड़ा हुआ है तथा जिसमें आणविक हथियार वाले देशों के भी लाखों-करोड़ों लोग शामिल हैं । हम मानवता के उत्कट विश्वास को व्यक्त करते हैं कि संसार कायम रहेगा । यह हमारा जनादेश है । इसी के लिए इन्दिरा गांधी जीवित रही और काम करती रहीं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ नामक एक महान् प्रयोग 1944 में इस शंकित आशा के साथ शुरू किया गया था कि लोगों के दिमाग में युद्ध सम्बन्धी विचार को समाप्त किया जा सकता है । उस समय एक और प्रयोग चल रहा था सैनिक शक्ति के लिए अणु के रहस्यों के प्रयोग का ।

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पहला परमाणु बम 1945 में गिराया गया था । संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र में आणविक हथियारों की स्पष्ट रूप से चर्चा नहीं हो सकी लेकिन महासभा ने बिल्कुल साफ तौर पर घोषणा की कि ऐसे हथियारों का इस्तेमाल मानवता के प्रति अपराध है ।

संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य जिन्हें आणविक हथियारों पर एकाधिकार प्राप्त है, ऐसे हथियार रखने के लिए एक प्रकार के औचित्य का दावा करते हैं, लेकिन विश्व के लोगों के लिए आणविक हथियार अपने आपमें एक सम्पूर्ण बुराई है और किसी भी परिस्थिति में किसी के भी द्वारा उनका इस्तेमाल अथवा इस्तेमाल की धमकी देना अनुचित है ।

यह सही है कि वास्तव में, 1945 के बाद किसी भी आणविक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया है । आतंक के सन्तुलन के सिद्धान्त के प्रतिपादक इस आणविक शान्ति का श्रेय लेते हैं ।  यह अधिक-से-अधिक एक निराशापूर्ण नाजुक और अस्थायी शान्ति है । आणविक हथियारों का उत्पादन जारी है । ये काफी अत्याधुनिक होते जा रहे हैं ।

लक्ष्यभेद और गतिशीलता में होने वाला प्रत्येक सुधार वर्तमान समझौतों को और भी नाजुक बनाता है । वर्तमान समझौते के अन्तर्गत गैर-आणविक हथियार वाले देशों को शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए भी उनका प्रयोग करने का अधिकार नहीं है, जबकि आणविक हथियारों वाली शक्तियों को अपने शस्त्रागार को दुगुना-चौगुना बढ़ाने पर कोई रोक नहीं लगाई गयी है ।

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यह एक भेदभाव है, जिसका हमने विरोध किया । हथियारों के व्यापक प्रसार के खतरे के बारे में काफी कहा जाता है । लेकिन हथियारों के वर्तमान भण्डारों के जमाव के रूप में हो रहे प्रसार के खतरों तथा किसी भी त्रुटि अथवा मंशा से हो सकने वाले विनाश के जोखिम को अनदेखा कर दिया जाता है ।

किस प्रकार एक राष्ट्र या पांच राष्ट्रों को बाकी की अपेक्षा अधिक जिम्मेदार माना जा सकता है ? इसके साथ प्रभुसत्ता और मानवं के अस्तित्व की आधारभूत समस्याएं जुड़ी हुई हैं । दो महाशक्तियां आणविक हथियारों पर विचार-विमर्श फिर से शुरू करने के लिए हाल में ही सहमत हुई हैं । यह एक अच्छी बात है और हम इसका स्वागत करते हैं ।

हम चाहते है कि यह बातचीत केवल क्षमता और डिलीवरी व्यवस्था में सुधार के परिणामों से निपटने के तौर-तरीकों तक ही सीमित न रहे । इसमें अन्तत: बुनियादी उद्देश्य अर्थात् सभी आणविक हथियारों की समाप्ति के बारे में भी विचार-विमर्श होना चाहिए जिसे इन शक्तियों ने अपने बयान में मान्यता प्रदान की है ।

आणविक हथियारों और साथ ही हथियारों के प्रयोग के लिए विस्फोटक सामग्री के और भी उत्पादन तथा उनके प्रयोग पर रोक लगाना एक प्रामाणिक तथा फिर से विश्वास दिलाने वाला पहला कदम होगा ।  इसके बाद आणविक हथियारों वाली शक्तियों को हथियारों के भण्डार में वास्तविक कमी लाने का काम शुरू करना चाहिए । इसके अलावा विचार-विमर्श तथा समझौते और भी द्विप क्षीय होने चाहिए ।

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ये आणविक हथियार रखने वाले सभी देशों पर लागू होने चाहिए अन्यथा खतरे बने ही रहेंगे । आणविक हथियारों के इस्तेमाल किये जाने की वास्तविक सम्भावनाएं वहां हैं, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा विस्तारित अवरोध के जरिये अथवा प्रतिरोधी क्षमताओं के निर्माण के जरिये अथवा कई सतहों वाली रक्षा व्यवस्था के जरिये ‘स्थिरता’ की इमारत पर टिकी है ।

अवरोध के प्रत्येक परिष्कार जैसे: ‘लचीली प्रतिक्रिया’ और ‘सीमित’ तथा ‘विजेय’ युद्ध परिदृश्य का अर्थ यह है कि इन हथियारों के इस्तेमाल को उनकी प्रौद्योगिकीय कुशलता बढ़ाकर नियन्त्रित किया जा सकता है । इस प्रकार गुणात्मक हथियारों की होड़ उनके नियन्त्रण सम्बन्धी दृष्टिकोण में अन्तर्निहित हो जाती है । हथियारों पर उस प्रकार का नियन्त्रण वास्तव में कोई नियन्त्रण नहीं है ।

कम्प्यूटर की गलतियों व्यवस्था के विफल होने दुर्घटना और गलत निर्णय के खतरे निचले सोपानों पर बढ़ गये हैं जिन पर हमेशा जिम्मेदारी मढ़ दी जाती है । इसके अलावा आणविक आतंकवाद और ब्लैकमेल का नया खतरा भी है । अत्याधुनिक हथियार न केवल सैनिक गठबन्धन के सदस्यों बल्कि बाहरी देशों के बीच भी भेजे जा रहे हैं ।

इससे अनेक नये स्थानीय और क्षेत्रीय तनाव पैदा होते हैं, जो देर-सवेर वास्तविक संघर्ष में परिणत होकर रहेंगे । यह महज अटकलबाजी नहीं है । इसका हमारे क्षेत्र की परिस्थिति से तात्कालिक सम्बन्ध है । संयुक्त राष्ट्र संघ व्यवस्था की विभिन्न बहुपक्षीय एजेंसियों की उपेक्षा किया जाना एक नयी और दुर्भाग्यपूर्ण बात है । इन एजेंसियों ने पिछले चार दशकों में निर्धन देशों को सहायता पहुंचाने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है ।

यदि इन्हें कमजोर बनाया जाता है, तो संयुक्त राष्ट्र संघ के आदर्शों को जोकि अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का मूल आधार है-झटका लगेगा । इस दुर्भाग्यपूर्ण रवैये को पलटने के लिए विश्व की राजधानियों में एक अभियान शुरू किया जाना चाहिए ।

पिछले वर्ष मई में हमारे छह राष्ट्रों ने आणविक हथियारों वाली शक्तियों से हथियारों की होड़ को रोकने तथा आणविक हथियारों के परीक्षण निर्माण और इस्तेमाल तथा उनकी डिलीवरी व्यवस्था की रोकथाम के लिए कार्यक्रम पर अमल करने का आह्वान किया था ।

कई सांसदों और राष्ट्रीय समूहों ने इसका अनुमोदन किया और आणविक हथियारों वाली एक शक्ति की प्रतिक्रिया रचनात्मक रही । आज हम शक्तिशाली देशों से बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ को रोकने तथा सभी आणविक हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध के लिए व्यापक सन्धि करने का भी आह्वान करते हैं । जय हिन्द ।’

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