भारत में ग्रामीण महिला की दशा | Status of Rural Women in India in Hindi.

भारत आर्थिक दृष्टि से विकासशील देशों की श्रेणी में है । प्रचुर प्राकृतिक संसाधन एवं अपार जनशक्ति होने के बावजूद यह आर्थिक दृष्टि से गरीब है । भारत के इतिहास पर दृष्टि डाली जाये तो यहाँ पर आर्थिक विकास अवरूद्ध होने का कारण विदेशी शासन रहा है, जिसने भारत का भरपूर शोषण किया ।

यहीं के अधिकांश निवासी निर्धनता का जीवन व्यतीत करने को बाध्य है । निर्धन वर्ग में वे लोग आते है जो अपनी अनिवार्य आवश्यकता पूरी करने में असमर्थ है । रोटी, कपड़ा तथा मकान ऐसी अनिवार्य आवश्यकतायें है जिनकी पूर्ति संबद्ध जीवन के लिए जरूरी है जिनको इनका अभाव रहता है, वे निर्धन माने जाते है ।

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भारतीय योजना आयोग ऊर्जा के अनुसार “यदि किसी व्यक्ति को गाँव में 2400 कैलोरी प्रतिदिन व शहर में 2400 कैलोरी प्रतिदिन भोजन नहीं मिलता है तो यह माना जायेगा कि वह व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवन यापन कर रहा है ।”

भारत गाँवों का देश है । आज भी भारत देश की 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है इसलिए ग्रामीण विकास देश की अर्थव्यवस्था में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाली स्त्रियों की स्थिति दयनीय है । वर्तमान में शहरों का विकास तो काफी तेजी से हो रहा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में शहरी क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम विकास हो रहा हे । ग्रामीण महिलाएँ विकास की दौड़ में काफी पीछे है ।

बुंदेला, अर्चना 2011:

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“ग्रामीण स्वरोजगार योजना विषय पर शोध प्रस्तुत किया जिसके अनुसार- ग्रामीण श्रमिकों के विकास एवं ग्रामीणों को स्थायी रूप से स्वरोजगार प्रदान करने में ग्रामीण स्वरोजगार कार्यक्रम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।  सरकार द्वारा चलाई जा रही महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना के माध्यम से ग्रामीण निर्धन व्यक्तियों के लिए रोजगार प्रदान किया गया है ।

स्वरोजगार कार्यक्रम के दीर्घकालीन उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना, ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी कौए दूर करना, ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार करना । किसी भी देश में ग्रामीण विकास का महिला रोजगार से घनिष्ठ संबंध होता है ।

देश में विकास की तीव्र गति तभी संभव है जब देश की आबादी का आधा हिस्सा जो महिलाओं का है के द्वारा भी भारत के विकास में अपना योगदान दिया जाये । आजादी के 68 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी देश की गरीबी में कमी नहीं बल्कि वृद्धि ही नजर आती है ।

ऐसे में पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं की आर्थिक विकास में भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो गई है । आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए उन्हें स्वरोजगार के ओर अग्रसर करना आवश्यक हैं । क्योंकि स्वरोजगार के माध्यम से जहाँ महिला बेरोजगारी कम होगी वही महिलाओं की आय में वृद्धि होगी और महिलाओं का आर्थिक जीवन स्तर भी उन्नतशील होगा ।

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महिलाओं के विकास व उत्थान हेतु भारत सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ प्रारंभ की गई है कुछ विशेष रूप से केवल महिलाओं के लिए तथा अन्य महिला व पुरूष दोनों के लिए है । ये योजनाएं भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों जैसे ग्रामीण विकास, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान व तकनीकी कल्याण महिला एवं बाल विकास इत्यादि के तहत संचालित है ।

इनमें बालिका समृद्धि योजना, सर्व शिक्षा अभियान, स्वयसिद्ध योजना, स्वावलंबन योजना, स्वशक्ति योजना, अपनी बेटी अपना धन योजना, जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय महिला आयोग, राजीव गाँधी किशोरी सशक्तिरण योजना, मनरेगा योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजन, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन, इंदिरा गाँधी मातृत्व सहयोग योजना आदि है ।

महिलाओं को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए महिला रोजगार की दिशा में मनरेगा योजना की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान कर गरीबी रेखा से ऊपर उठाना, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना, समानता आधारित सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना, निर्धारित किये गये है ।

जिससे देश का आर्थिक एवं सामाजिक विकास हो सके । ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर ही महिलाएँ है लेकिन पुरूषों की अपेक्षा कामकाजी महिलाएँ न के बराबर है । खेतिहर एवं घरेलू महिला मजदूर के मेहनताना भुगतान में भी भेदभाव होता है ।  गाँवों में पारंपरिक रूप से चल रहे कार्यों में पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को कम मजदूरी दी जाती है ।

यही वजह है कि विभिन्न संगठनों की ओर से महिलाओं को समान मजदूरी देने के लिए मांग की जा रही है । इस समस्या के निवारण के लिए केन्द्र सरकार की ओर से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना 2 फरवरी, 2006 को प्रारंभ की गई ।

देश से गरीबी को पूर्णत: नष्ट करने के लिए अप्रैल 2008 में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को पूरे देश में लागू किया गया इस योजना में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई जिससे कि रोजगार पाने वालों में से कम से कम एक तिहाई संख्या महिलाओं की हो ।

इस योजना का उद्देश्य कम से कम 100 दिवसों का रोजगार प्रदान करके देश की महिलाओं की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन करना है । महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना ने महिलाओं की दशा में सुधार किया है । महिलाएँ घर-गृहस्थी का काम करने के बाद गाँव में ही काम कर रही हैं और उन्हें पुरूषों के बराबर मजदूरी भी मिल रही है ।

भारत में इस योजना से वर्ष 2007-08 में 541098, वर्ष 2008-09 में 705060, वर्ष 2009-10 में 728993 एवं 2010-11 में 748765 महिलायें लाभान्वित हुई है । मध्यप्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में मनरेगा योजना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है ।

इस योजना में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी कार्य में कम से कम उ० फीसदी महिलाओं को जरूर लाभान्वित किया जाये । इस प्रावधान का सबसे अधिक फायदा यह हुआ कि जो महिलाएं घर-गृहस्थी एवं बच्चों की सुरक्षा की वजह से काम नहीं कर पाती थी. वे भी आसानी से मजदूरी कर स्वावलंबी बन रही है ।

इस योजना में यह व्यवस्था की गई है कि पुरूष के बराबर ही महिलाओं को भी मजदूरी प्रदान की जाएगी । इस योजना के अंतर्गत श्रमिक को उसके मूल स्थान से अधिकतम पाल किलोमीटर के दायरे में काम दिया जाता है ।

इस योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को रोजगार उपलब्ध होने के कारण उनमें स्वाभिमान व आत्मविश्वास बढ़ रहा है तथा वे महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ा रही है इस योजना से प्रान्त कड़े बताते है कि मध्यप्रदेश में वर्ष 2008-09 से वर्ष 2012-13 तक कुल 319925305 महिलाएँ लाभान्वित हुई है ।

समस्यायें:

(1) महिलाओं को वर्ष भर रोजगार नहीं मिलता है ।

(2) कई महिनों तक जॉब कार्ड नहीं दिये जाते है ।

(3) महिलाओं को समय पर मजदूरी नहीं मिलती है ।

(4) ग्रामीण महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती है ।

(5) सामान्यत: ग्रामीण महिलायें अशिक्षित होती है जिस कारण बैंक एवं पोस्ट आफिस की पूरी औपचारिकतायें सरपंच और सचिवों के द्वारा की जाती है तथा सरपंच एवं सचिवों द्वारा मजदूरी का कुछ भाग रख लिया जाता है ।

(6) पंचायतों द्वारा बच्चों, शिक्षकों यहाँ तक की मृत व्यक्तियों के नाम पर जाब कार्ड बनाये जाते है तथा सरपंच एवं सचिव उनके नाम पर पैसे निकालते है ।

(7) समाज में पर्याप्त एवं सहयोग न मिल पाना भी एक समस्या के रूप में देखा गया है जिसके कारण महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है ।

(8) पुरूष प्रधान समाज की मानसिकता के कारण भी कभी-कभी महिलाओं को निर्णय लेने की पर्याप्त छूट नहीं मिल पाती, जिससे की महिलायें अपने कौशल उन्नयन संबंधी कार्यक्रमों एवं रोजगार व्यवयाय का बेहतर लाभ लेने से वंचित रह जाती हे ।

(9) ग्रामीण महिलाओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती है जिससे वे इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पाती है ।

सुझाव:

(i) महिलाओं को वर्ष भर रोजगार दिया जाना चाहिए,

(ii) इस योजना में जॉब कार्ड बनाने की प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए, जिससे ग्रामीण महिलाओं को जॉब कार्ड के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़े,

(iii) महिलाओं को समय पर मजदूरी देने के लिए प्रशासन और बैंक को अपनी प्रक्रिया को ग्रामीण उन्मुख करना चाहिए । उन्हें समय पर महिलाओं के खाते में राशि प्रदान करना चाहिए, तथा राशि का निकालने की प्रक्रिया को आसान करना चाहिए,

(iv) सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहिए,

(v) ग्रामीण महिलाओं को निशुल्क शिक्षा एवं तकनीकि प्रशिक्षण प्रदान करने की व्यवस्था सरकार के द्वारा की जानी चाहिए,

(vi) सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को रोकना चाहिए । उन्हें भ्रष्ट सरपंच, सचिव एवं राजनैतिज्ञों के विरूद्ध कदम उठाना चाहिए,

(vii) महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार को महिलाओं के विकास के लिए योजनायें क्रियान्वित की जानी चाहिए एवं उन्हें रोजगारमूलक योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए,

(viii) समाज में व्याप्त रूढिवादिता को समाप्त करना चाहिए तथा देश में समानता की भावना को ब्याज करना चाहिए,

(ix) ग्रामीण महिलाओं के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए ।

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