सॉक्रेटीस का भाषण | Speech of Socrates in Hindi Language!

399 ई॰पू॰ महान दार्शनिक और विचारक सुकरात को अपने शिष्यों को पथधष्ट करने के आरोप में मृत्युदण्ड दिया गया था अपनी सफाई में उन्होंने निम्न भाषण दिया:

ओ एथेंसवासियो ! जो हुआ, मुझे उसके लिए व्यथित नहीं होना चाहिए यानी इसके लिए कि तुम लोगों ने मुझे दोषी ठहराया और उन परिस्थितियों के लिए जो गुजरे !

और जो कुछ हुआ वह मेरी उम्मीद से ऊपर तो नहीं हुआ ।   परन्तु मुझे दोनों और से जो वोट पड़े उन पर हैरानी जरूर है । मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतने कम वोटों के अन्तर से मुझे दोषी ठहराया जायेगा । मुझे बड़े बहुमत की आशा थी ।  परन्तु अब जैसा कि पता चल रहा है, 3 वोट पक्ष में पड़ते तो पासा पलट जाता और मैं बरी हो जाता ।

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जहां तक मैलिटस का प्रश्न है, मुझे लगता है, उनके द्वारा मैं निर्दोष ठहराया गया हूं । न केवल मैं निर्दोष ठहराया गया हूं अपितु जैसा कि सबको पता है, यदि एनीटस और लिकोन मुझ पर आरोप लगाने के लिए आगे नहीं आते तो मैलिटस को वोटों का पंचमांश न पाने के लिए 1,000 दरहम का जुर्माना हो जाता ।

इसलिए इस व्यक्ति ने मुझे मृत्यु की सजा सुनायी । परन्तु ओ एथेंसवासियो मैं अपने आपको क्या दण्ड दूं ? यह स्पष्ट नहीं कि मैं किस योग्य हूं ? वह क्या है ? क्या मैं कष्ट भोगने योग्य हूं या अर्थदण्ड के योग्य हूं ? क्योंकि मैं अपने जीवनकाल में चुप नहीं रहा ।

मैंने उन सभी चीजों की उपेक्षा की जिनके पीछे ज्यादातर लोग भागते हैं-पैसा कमाना घर-गृहस्थी की चिन्ता सेना की कमान संभालना लोकप्रियता वाले भाषण देना । इसके अतिरिक्त दण्ड अधिकार षड्‌यन्त्र और गुटबन्दी जो इस शहर में होती रहती है ।  मैं ठहरा बहुत सीधा-सच्चा व्यक्ति । यदि ऐसी हरकतें करता तो सुरक्षित नहीं   रहता ।

इसलिए मैं इनके पीछे कभी नहीं भागा । यदि ऐसा करता तो मैं न आपके किसी काम आता, न अपने । लेकिन आप में से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित करने के लिए मैंने यह लक्ष्य चुना कि आप में से प्रत्येक को प्रेरित करूं कि वह अपने मामलों पर या नगर के मामलों पर ध्यान देने से पहले यह देखे कि वह नगर के अलावा अन्य मामलों में भी कैसे सबसे अधिक समझदार और सबसे श्रेष्ठ बन सकता है ।

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मैं तो ऐसा ही व्यक्ति हूं फिर मेरे साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए ? ओ एथेंसवासियो कोई पुरस्कार, जो मेरा सही मूल्यांकन करके तय किया जाये । मेरे लिए सही हो तो एक गरीब उपकारी के लिए क्या उपयुक्त होगा । जिसे आपको सही राय देने के लिए अवकाश चाहिए । ओ एथीनियावासियो इससे ज्यादा सही और कुछ नहीं होगा कि ऐसे व्यक्ति को प्रेथानियम सभागार में नियुक्त किया जाये ।

यदि आप में से कोई ओलम्पिक खेलों में घुड़दौड़ में या चार घोड़ों के रथ की दौड़ में जीत जाता है, तो वह जितना खुश होगा मुझे भी कुछ वैसी ही प्रसन्नता होगी, परन्तु उसे किसी मदद की जरूरत नहीं होगी मुझे है । इसलिए यदि मैं स्वयं को कोई दण्ड देना चाहें, तो यह प्रेथानियम सभागार की देखभाल का काम होगा ।

शायद आपके साथ इस प्रकार बात करने से आपको लगे कि मैं उसी इज्जत और विनयपूर्वक बोल रहा हूँ जैसे मण्डल अधिकारियों के सामने बोला था, लेकिन ऐसा नहीं है । ओ एथेंसवासियो यह इस तरह है-मैंने कभी जान-बूझकर किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया ।

हालांकि मैं आपको इसके लिए राजी नहीं कर सकता; क्योंकि मेरा और आपके बीच थोड़े वक्त के लिए ही वार्तालाप हुआ है; क्योंकि यदि कानून आपके लिए भी उसी प्रकार होता, जैसा दूसरों के लिए होता है, तो मृत्युदण्ड के मामले की सुनवाई केवल एक दिन नहीं कई दिन चलती ।

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मेरे विचार में आप इस बात से सहमत होंगे लेकिन कुछ समय में इतने बड़े झूठे प्रचार की सफाई देना असम्भव है । यह समझ लेने पर कि मैंने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया मेरा इरादा खुद को नुकसान पहुंचाने का कदापि नहीं है, न ही यह घोषणा करने का है कि मुझे सजा दी जानी चाहिए । न ही स्वयं के लिए कोई सजा का प्रस्ताव रखने का है ।

मुझे किस बात का भय है ? यह कि मैलिटस जो फैसला देगा, मुझे उससे दु:ख पहुंचेगा ? जबकि मैं जानता तक नहीं कि वह फैसला सही होगा या बुरा ! तो क्या मैं अपने लिए वह चुन लूं ? जो बुरा ही है और खुद को वह दण्ड दें डालूं क्या में कैद की सजा को चुनूं मैं जेल में क्यों रहूं, उन ग्यारह दण्ड अधिकारियों का दास बनकर ? क्या मैं अपने लिए कोई जुर्माना निश्चित करूं जिसे न चुकाने तक जेल में रहूं ?

लेकिन यह तो वही बात होगी जो मैंने अभी-अभी कही; क्योंकि मेरे पास जुर्माना देने के लिए रकम नहीं है । तो क्या मैं स्वयं को देश से निकाले जाने की सजा दूं ?  शायद आप इस प्रस्तावित दण्ड से सहमत हो जायें । ओ एथेंसवासियो मुझे जीवन से प्यार होना चाहिए । यदि मैं ऐसा मूर्ख होता जो इतना भी न समझ सकता कि मेरे सह-नागरिक आप सब मेरी जीवनशैली और उपदेशों को सहन नहीं कर पाये ।

वे आपके लिए इतने असहनीय और कष्टप्रद बन गये कि आप अब उनसे मुक्त होना चाहते हैं । लेकिन कुछ अन्य लोग उन्हें सरलता से सहन कर सकते हैं । इसलिए ओ एथेंसवासियो इस आयु में मेरे लिए घुमक्कड़ बनकर नगर-नगर घूमना और इस प्रकार का जीवन जीना उचित होगा; क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं जहा भी जाऊंगा जब बोलूंगा मुझे युवा सुनेंगे जैसा कि उन्होंने यहां किया ।

यदि मैं उन्हें नापसन्द लगा तो वे मुझे बड़ों से आग्रह करके वहां से बाहर निकाल देंगे । यदि मैं उन्हें पसन्द आ गया तो उनके पिता और सम्बन्धी अपने तई मुझे निर्वासित कर देंगे । शायद कोई कहे: ‘यहां से जाने पर सुकरात बिना कुछ बोले शान्त जीवन नहीं बिता सकते!’ आपको समझाने के लिए यह सबसे कठिन बात है । यदि मैं ऐसा करूं तो देवता की अवज्ञा होगी । इसलिए मेरा कुछ न बोलना असम्भव है ।

आप यह सोचकर कि मैं व्यंग्य कर रहा हूं ? मुझ पर भरोसा नहीं करेंगे । यदि मैं यह कहूं कि प्रतिदिन सद्‌गुणों के बारे में और उन विषयों पर चर्चा करना जो मैं करता रहा हूं सबसे बड़ी अच्छाई है, जिसमें मैं अपना व दूसरों का परीक्षण करता हू, और कहता रहा हूं कि अन्वेषण के बिना जीवन बेकार है, तो आप मुझ पर और भी विश्वास नहीं करेंगे ।

इसलिए ओ एथेंसवासियो मैं कहता हूं कि आपको मनाना मुश्किल है । इसके साथ ही मैं यह सोचने का आदी भी नहीं कि मैं किसी बुराई के योग्य हूं । यदि मैं धनवान् होता तो अपने पर इतना जुर्माना करता जो मैं चुका पाता । तब मेरा कुछ भी बुरा नहीं होता ।

परन्तु मैं इस वक्त इतना भी नहीं कर सकता । हां, यदि आप मुझे इतना जुर्माना करने को तैयार है, जो मैं चुका सकूं, तो मैं जुर्माने के तौर पर चांदी का एक माइना ही चुका सकता हूं । यह जुर्माना मैं खुद के लिए स्वीकार करता हूं लेकिन ओ एथेंसवासियो ! प्लेटो, क्रिटोबुलस और अपोलोडोरस का कहना है कि मैं खुद को 30 माइना का जुर्माना करूं ।

उन्होंने मुझे इस रकम की जमानत देने की पेशकश की है, इसलिए मैं स्वयं को यह जुर्माना करता हूं और इस रकम के लिए पर्याप्त जमानतें होंगी । इसके पश्चात् न्यायाधीशों ने आगे कार्रवाई करते हुए सुकरात को मृत्युदण्ड सुना  दिया । इस पर उन्होंने आगे कहा:  कुछ ही वक्त के पश्चात् ओ एथेंसवासियो तुमको उन्हीं शहर को बदनाम करने वालों की डांट सुनने को मिलेगी कि बुद्धिमान् सुकरात को मार डाला ।

तुम्हें बदनाम करने वाले दावा करेंगे कि मैं बुद्धिमान् था जबकि ऐसा नहीं है । यदि तुम लोग कुछ देर प्रतीक्षा करते तो यह अपने आप हो जाता । मेरी आयु पर ध्यान दो । मैं काफी वृद्ध हो चुका हूं और मृत्यु के समीप हूं ।

परन्तु मैं यह तुम सबसे नहीं कह रहा हूं उनसे कह रहा हूं जिन्होंने मुझे मृत्युदण्ड दिया है और मैं उनसे यह भी कहता हूं शायद तुम सोचते हो ओ एथेंसवासियो कि मैं पर्याप्त तर्क पेश नहीं कर पाने की वजह से दण्डित हुआ हूं जिसके द्वारा मैं तुम्हें सहमत कर सकता था ।

यदि मैं ऐसा करना सही समझता तो तुम्हें मनाकर आजाद होने का प्रयास करता । मैं किसी बात के अभाव के कारण दण्डित हो रहा हूं, परन्तु यह तर्क नहीं है । इसका कारण मेरा दु साहस और ढिठाई है । मैंने वैसी बातें करने की प्रवृत्ति नहीं दिखायी जिसे सुनना तुम सब बहुत पसन्द करते ।

यदि मैं रोता-पीटता अश्रु बहाता और भी ऐसी बातें कहता जो मुझ जैसे को शोभा नहीं देती । न तो मैंने तब खतरे से बचने के लिए ऐसा कुछ किसी स्वतन्त्र व्यक्ति के लिए अशोभनीय करने का विचार किया था और न ही अब मुझे इसको लेकर कोई पछतावा है ।

इस प्रकार से अपना बचाव करके जीने की अपे क्षा तो मैं देह त्यागना पसन्द करूंगा; क्योंकि युद्ध में या किसी मुकदमे की सुनवाई में मुझे या किसी भी अन्य व्यक्ति के लिए मृत्यु से बचने के लिए प्रत्येक सम्भव साधन का इस्तेमाल करना सही नहीं होता । युद्ध में प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि कोई व्यक्ति हथियार डालकर और अपने विपक्षियों से दया की भीख मांगकर मृत्यु से बच सकता है ।

इसी प्रकार दूसरे प्रकार के खतरों में भी मृत्यु के बचने के अन्य उपाय हैं । बशर्ते व्यक्ति वह सब कहने और करने को तैयार हो! ओ एथेंसवासियो मौत की बजाय दुष्टता से बचना कहीं अधिक मुश्किल होता है; क्योंकि इसकी रफ्तार मौत से तेज होती है ।

चूंकि अब मैं अपनी आयु के कारण शिथिल होकर इन दोनों में से जो छायी है, उसकी भी चपेट में आ गया हूं जबकि मुझ पर आरोप लगाने वाले बलवान् और तेज होने के कारण अधित तीव्र गति वाली दुष्टता की चपेट में आये हुए हैं ।

अब मैं तुम्हारे द्वारा मृत्युदण्ड पाकर विदा लेता हूं और वे इस अन्याय व असमानता के कारण सच द्वारा दण्डित हुए हैं । मैं अपनी सजा स्वीकार करता हूं, वे अपना । मेरे विचार में यह सब होना था और इसी में भलाई है ।

इसके पश्चात् मैं तुम्हारे बारे में भविष्यवाणी करता चाहता हूं ओ मुझे सजा देने वालो! कि तुम्हारा क्या होगा! क्योंकि मैं अब उस स्थिति को पहुंच गया हूं जिसमें लोग प्राय: भविष्यवाणी करते हैं, यानी जब वे मृत्यु के समीप होते हैं ।

तो अब मैं कहता हूं ओ एथेंसवासियो जिन्होंने मुझे मृत्युदण्ड दिया है कि मेरी मौत के तुरन्त बाद तुम्हें इससे भी मुश्किल दण्ड मिलेगा, बृहस्पति देवता द्वारा; क्योंकि तुमने यह सोचकर ऐसा किया है कि तुम्हें अपनी जिन्दगी का हिसाब देने से छुटकारा मिल जायेगा ।

लेकिन मैं बताता हूं कि इसका एकदम विपरीत होगा; क्योंकि आरोप लगाने वाले असंख्य होंगे जिनको मैंने अभी रोक रखा है; जबकि तुमने यह नहीं देखा । वे और भी कठोर होंगे; क्योंकि वे अधिक युवा हैं । तुम और ज्यादा अपमानित होगे; क्योंकि यदि तुम समझते हो कि किसी को मृत्यु देकर तुम दूसरों को अपनी निन्दा करने से रोक लोगे तो यह तुम्हारी गलती है; क्योंकि यह न तो सम्भव है और न ही सम्मानजनक ।

लेकिन दूसरा तरीका अत्यन्त सम्मानजनक और आसान है दूसरों को न रोककर अपनी तरफ ध्यान देना कि कोई अपने आपको कैसे त्रुटिहीन व परिपूर्ण बना सकता है । इस प्रकार मुझे दण्डित करने वालो! तुम्हारे बारे में भविष्यवाणी करके मैं तुमसे विदा लेता हूं । और तुम लोग जिन्होंने मेरी आजादी के लिए वोट दिया मैं प्रसन्नता से अपनी बात जारी रखूँगा; क्योंकि न्यायाधीश अभी व्यस्त हैं और मुझे अभी उस स्थान पर नहीं ले जाया गया है, जहां मुझे मरना होगा ।

इसलिए ओं एथेंसवासियो तब तक मेरे साथ रही; क्योंकि जब तक हमें आज्ञा है, हमारे वार्तालाप में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा । तुम मेरे मित्र हो इसलिए मैं तुम्हें, जो कुछ मुझ पर अभी बीती है, उसका मतलब बताना चाहता हूं । मेरे लिए ओ मेरे न्यायाधीशो! मैं तुम्हें न्यायाधीश कहकर बुलाता हूं एक आश्चर्यजनक बात हुई है ।

मेरे पथ-प्रदर्शक देव की स्वभावगत पैगम्बरी वाणी ने-यदि मैं कोई छोटी-सी भी गलती करने लगता तो हमेशा मेरा विरोध किया है । लेकिन अब जो कुछ मेरे साथ बीता है, जो तुम सबने भी देखा है, जिसके बारे में कोई सोच सकता है कि बुराई की पराकाष्ठा है, फिर भी न तो जब मैं प्रात काल अपने निवास से निकला तब देववाणी ने मुझे कोई चेतावनी दी न ही यहां सुनवाई के स्थान पर या मेरे इस भाषण के दौरान ही ऐसा कुछ हुआ ।

जबकि और कई मौकों पर इस वाणी ने मुझे कुछ बोलने के बीच में भी रोका है । लेकिन अब इस सारी सुनवाई के दौरान जो कुछ मन ने कहा या किया उसका उसने जरा भी विरोध नहीं किया । तो मैं इसका क्या कारण समझूं ? मैं तुम्हें बताता हूं कि जो कुछ मुझ पर बीत रही है, वह वरदान है । जो मौत को बुरा समझते हैं, उनके लिए यह मानना मुश्किल होगा कि हम ठीक सोच रहे हैं ।

इसका एक बड़ा सबूत यह है कि यदि इसमें अच्छाई न होती तो सदा-सर्वदावाला संकेत मेरा विरोध जरूर करता । अत: हमें इस नतीजे पर पहुंचना चाहिए कि मौत वरदान है; क्योंकि मौत में इन दो बातों में से एक होती है, या तो मृतक का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो जाता है, फिर उसे किसी प्रकार का कोई अहसास नहीं होता या फिर यह कहा जाता है कि आत्मा कोई दूसरा मार्ग चुनती है ।

वह एक जगह से दूसरी जगह को जाती है । यदि यह हर प्रकार के अहसास का खो जाना है, तो वह ऐसी गहरी निद्रा है, जिसमें सोने वाला कोई स्वप्न नहीं देखता । तब तो मौत अद्‌भुत उपलब्धि है; क्योंकि यदि किसी व्यक्ति से पूछा जाये कि तुमने अपने जीवनकाल में कितनी रात्रि या दिन ऐसी गहरी निद्रा से बेहतर शान्ति में व्यतीत किये हैं, तो सामान्य व्यक्ति से लेकर राजा तक मानेंगे कि वे दिन तो गिनती के ही थे । तो यदि मौत इस प्रकार की है, तो मैं कहूंगा कि यह उपलब्धि है; क्योंकि तब सारा भविष्य एक रात में सिमट जायेगा ।

लेकिन यदि इसके विपरीत मृत्यु यहा से किसी अन्य जगह को जाना है और जैसा कि कहा गया है, सभी मृतक वहा इकट्‌ठे होते हैं! तो मेरे न्यायाधीशो! इससे बडा वरदान और क्या हो सकता है ? क्योंकि यमलोक पहुंचने पर इनसे मुक्ति मिल जायेगी, जो न्यायाधीश बनने का दिखावा कर रहे हैं और सच्चे न्यायाधीश मिल जायेंगे ।

यीनोस और रादामेथस जिनके विषय में कहा जाता है कि वहां न्याय करते हैं । फेकस और त्रिप्तोलेपस जैसे उपदेवता जो अपने जीवनकाल में भी वैसे ही थे तो क्या यह बदलाव दुखदायी होगा ?  आखिर ऑरफेयस, मूजियस हेसियोद और होमर से भेंट को किसी कीमत के लिए रोकना सही होगा ? यदि यह सत्य है, तो मैं एक बार नहीं कई बार मरना पसन्द करूंगा ।

मेरे लिए यह कैसा उत्तम प्रवास होगा जब मेरी भेंट पालामेडीम और तेलामन के बेटे एजाक्स तथा उन जैसे कई अन्य पुराने लोगों से होगी जो अनुचित सजा के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए । अपनी यातना की उनकी यातना से तुलना करना मेरे विचार में कम दिलचस्प नहीं होगा लेकिन सबसे ज्यादा मजा वहां लोगों से प्रश्न करने और उनका परीक्षण करने में आयेगा जैसा कि मैं यहां करता रहा हूं ताकि मालूम चल सके कि उनमें से कौन कुशाग्रबुद्धि है और कौन स्वयं को वैसा मानता है, परन्तु है नहीं ।

ओ मेरे न्यायाधीशो ! उससे किसी भी कीमत पर कोई प्रश्न क्यों न करना चाहेगा जिसने ट्राय यूलेसिस सिसीफस या ऐसे ही कई असंख्यों के विरुद्ध शक्तिशाली सेनाएं भेजीं । ऐसे और भी कई स्त्री-पुरुषों से भेंट करना बात करना उनसे प्रश्न करना मजेदार होगा ।  इसके लिए वहां जो न्यायाधीश हैं, वे मृत्युदण्ड नहीं देते । इसलिए जो लोग वहां हैं, वे यहां वालों की बजाय अधिक खुश हैं ।

वे अमर हैं, यदि यह जो बात बतायी गयी है, वह सत्य है । इसलिए ओ मेरे न्यायाधीशो ! तुम्हें मौत के बारे में अच्छी उम्मीद रखनी चाहिए । इस सच को स्वीकार करना चाहिए कि किसी अच्छे व्यक्ति के साथ कुछ भी गलत नहीं होता-न जीवित रहते न मरते वक्त ।

देवता भी उसकी चिन्ताओं की निन्दा नहीं करते । जो कुछ मेरे साथ हो रहा है, वह संयोगवश नहीं । मुझे यह नितान्त स्पष्ट है कि किस प्रकार मरकर अपनी चिन्ताओं से आजाद होना मेरे लिए बेहतर है ।  अत: चेतावनी ने मुझे एक तरफ नहीं किया । जिन्होंने मुझे अपराधी करार दिया है, उनके प्रति भी मेरे मन में द्वेष नहीं है । न ही मुझ पर आरोप लगाने वालों के लिए है ।

हालांकि उन्होंने इस भावना से न तो मुझ पर आरोप लगाये न दण्डित किया । वे तो मुझे दु:ख पहुंचाना चाहते थे जिसके लिए उन्हें दोष दिया जाना चाहिए । मेरी उनसे एक ही विनती है । यदि मेरे बेटे होनहार और गुणी बनने से पहले सम्पदा की चाह करें तो उन्हें मेरी ही तरह दण्ड देना । उन्हें दु:ख पहुंचाना जैसे मैंने तुम्हें दु:ख पहुंचाया है ।

उनकी निन्दा करना उसी प्रकार जैसे मैंने तुम्हारी निन्दा की है उस पर ध्यान न देने के लिए जिस पर ध्यान देना चाहिए । अपने आपको कुछ समझने के लिए जबकि वे कुछ भी न हों । यदि ऐसा करोगे तो वह मेरे और मेरे बेटों के साथ न्याय होगा । अब विदाई का वक्त आ गया है-मेरे लिए देह त्यागने का तुम्हारे लिए जीवित रहने का लेकिन हममें से कौन अच्छी स्थिति में होगा यह भगवान् के सिवा अन्य कोई नहीं जानता ।

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