“शांति की समस्या” पर क्लेमेंट एटली के भाषण । Speech of Clement Attlee on “The Problems of Peace” in Hindi Language!
ब्रिटेन के प्रधानमत्री क्लीमेण्ट एटली ने अपना यह भाषण सन 1941 में अक्टूबर में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम सगंठन के सम्मेलन में दिया था । हम केवल विजय की ही परिकल्पना नहीं कर रहे हैं । हम केवल युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए ही दृढ़ संकल्पित नहीं हैं, अपितु शान्ति जीतने का संकल्प भी रखते हैं ।
इसके लिए पहले से योजना बनाना जरूरी है । यदि हमें युद्ध के आखिर में बिना तैयारी की स्थिति में नहीं रहना तो अभी से कार्रवाई करनी होगी । लेकिन शान्ति की समस्याओं को कोई एक राष्ट्र अकेले नहीं निपटा सकता । ब्रिटेन की युद्ध की बाद की योजनाएं ससार की युद्ध के बाद की योजनाओं के अनुरूप होनी चाहिए; क्योंकि यह संघर्ष केवल राष्ट्रों के मध्य संघर्ष नहीं यह भावी सभ्यता के लिए संघर्ष है ।
इसके परिणाम सभी स्त्री-पुरुषों के जीवन को प्रभावित करेंगे केवल उनके जीवन को नहीं जो इस संघर्ष में सम्मिलित हैं । यह निश्चित है कि जब तक समस्त संसार में जनसाधारण की पीठ से शस्त्रास्त्रों का कुचलने वाला बोझ हटाया नहीं जाता वे एक सामाजिक जीव होने का पूरा मजा नहीं उठा सकते जो कि सम्भव है ।
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हमले के निरन्तर खतरे की स्थिति में हम अपने सपनों की नगरी का निर्माण नहीं कर सकते । डर और अभाव से मुक्ति पाने की कोशिश एक साथ होनी चाहिए । ब्रिटिश राष्ट्रकुल और संयुक्त राज्य के साझे लक्ष्यों की संयुक्त पेशकश जिसे ‘अटलाण्टिक घोषणा पत्र’ कहते हैं, उसमें केवल युद्ध से सम्बद्ध उद्देश्य ही नहीं अपितु उससे बहुत बाद के उद्देश्य भी निहित हैं ।
यह हमें वर्तमान जिम्मेदारियों को निभाने के लिए प्रतिबद्ध करता है, ताकि छोटे-बड़े सभी राष्ट्र सुख-शान्ति से रह सकें । ब्रिटेन उन राजनेताओं को धन्यवाद देता है, जिन्होंने अपनी अधिक समस्याओं के बाबुजूद शान्ति बनाये रखने के लिए महीनों तक अथक प्रयत्न किया जबकि इटली उसमें विप्न पैदा कर रहा था ।
इथियोपिया की सरकार गिरजाघर और उसकी सभी जनता ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह शान्ति बनाये रखने की कोशिशों में उनकी मदद करे और उनको रास्ता दिखाये । इथियोपिया अपनी सभी अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को पूरा करने के प्रति जागरूक रहा है । उसने वर्तमान संघर्ष का शान्तिपूर्ण समाधान निकालने के लिए अपनी गरिमा और सम्मान के अनुरूप त्याग भी किया है ।
ब्रिटेन अपने हृदय की गहराइयों से उम्मीद करता है कि शान्तिपूर्ण सन्धि का न्यायपरक मार्ग निकलेगा । वह संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारियों से आशा करता है कि वे सन्धि के अनुरूप शान्ति को अपना आदर्श मानने वाले विश्व के सभी छोटे-बड़े राष्ट्रों को सभ्यता के लिए भय उत्पन्न करने वाले संकट को दूर करने के लिए विवश करेंगे ।