“एक मिथक ” पर जेआरडी टाटा का भाषण | Speech of J.R.D. Tata on “A Myth” in Hindi!

‘आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण का खतरा’ यह वह मुहावरा है, जो चौथी पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में या किसी भी वाममार्गी योजनाकार या सरकारी अधिकारी के साथ आर्थिक विषयों पर बातचीत करते वक्त खतरनाक बारम्बारता के साथ सामने आता है ।

हम भारतीय-जो लोकप्रिय लुभावने मुहावरों और नारों को दिल से लगाने और उनके तात्पर्य को समझे या विश्लेषित किये बिना उनकी पुनरावृत्ति में सदैव निपुण रहे हैं-ने इस अस्तित्वहीन डर जिसे हमारे वामपंथी प्रचारकों ने जान-बूझकर भोले-भाले लोगों के दिल में बिठा दिया है-को सहर्ष स्वीकार कर लिया है ।

ऐसा लगता है, मानो आज देश को खतरा हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या सीमा पार के खतरों साम्प्रदायिक कट्‌टरता और दंगों हमारे देशवासियों की अन्तहीन निर्धनता से अधिक आप मानें या न मानें, उन कुछ लोगों और कम्पनियों से है जो बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं, जो भारतीय मानदण्डों से बड़े परन्तु विश्व के मानदण्डों से बहुत छोटे आकार के हैं ।

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निजी क्षेत्र में सबसे बड़े औद्योगिक समूह का प्रमुख होने के कारण मेरे पास आर्थिक शक्ति का असीम केन्द्रीयकरण होना चाहिए । मैं जब प्रतिदिन प्रात काल सोकर उठता हूं, तो बड़े ध्यान से इस पर सोचता हूं कि इस अपार शक्ति का मैं उस दिन कैसे प्रयोग करूंगा ।

क्या मैं अपने प्रतिद्वन्द्वियों को कुचल दूंगा उपभोक्ताओं का शोषण करूंगा उद्दण्ड मजबूरों को नौकरी से निकाल दूंगा एक या दो सरकारों को उखाड़ फेंकूंगा । मेरी कितनी आकांक्षा है कि डॉ॰ गाडगिल या इस सिद्धान्त को मानने वाले कोई अन्य महानुभाव मेरे हाथों में इस अपार शक्ति की प्रकृति पर प्रकाश डालते । मैं खुद उसे प्रयोग करना तो दूर उसकी पहचान करने में भी पूरी तरह असफल रहा हूं ।

निश्चित रूप से निजी हाथों में आर्थिक शक्ति-यदि उसका कोई अर्थ है, तो वह, जहां और जब कोई नया उद्यम आरम्भ करने, पूंजी जुटाने, उधार लेने, मजदूरों को कार्य पर रखने, मैनेजरों की नियुक्ति करने, उनका वेतन निर्धारित करने, उनके द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य निर्धारित करने, व्यवसाय या मनोरंजन के लिए विदेश यात्रा करने प्रबन्धकीय या अन्य सेवाओं के लिए करार करने जैसे आर्थिक फैसले लेने की शक्ति ही है ।

क्या यह विचित्र नहीं है कि ये ही वे आर्थिक शक्तियां हैं, जिनका प्रयोग कर हमारे देश में उद्यमियों को लगभग पूरी तरह नकार दिया गया है ? सज्जनो ! सत्य कुछ और है । निजी हाथों में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण का डर एक मिथक है, जो बड़े पैमाने पर काम करने वाले किसी भी निजी व्यवसाय के घोर विरोधी लोगों द्वारा जान-बूझकर प्रचारित किया गया है ।

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वास्तव में, आर्थिक शक्ति का एकमात्र भयावह केन्द्रीयकरण जो, आज नजर आता है, वह हमारे मन्त्रियों आयोजकों और सरकारी अधिकारियों के हाथों में है । आर्थिक शक्ति का यही वह केन्द्रीयकरण है, जिससे हमारे प्रजातन्त्र को वास्तविक खतरा है ।  इन महानुभावों न कि व्यवसायियों के हाथों में जो आर्थिक शक्ति है, वही पीड़ादायक विलम्बों भ्रान्तिपूर्ण नीतियों और कुप्रक-धन का कारण है, जिसने दीर्घकाल से हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है ।

यह हैरानी की बात है कि टाटा जैसा कोई औद्योगिक घराना यदि कुछ वक्त तक कोई बड़ी औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं कर पाता तो उस पर निष्किय और कम ऊर्जावान् होने का इल्लाम लगा दिया जाता  है । यदि वह अपने व्यवसाय को बहुमुखी बनाने के लिए मध्यम आकार का कोई आशाजनक व्यवसाय खोलना चाहता है, तो उस पर इल्लाम लगाया जाता है कि वह छोटे व्यवसायियों को कुचलना या उनकी प्रगति में रुकावट बनना चाहता है ।

यदि वह कोई भारी पूंजीगत लागत वाली परियोजना आरम्भ करना चाहता है, तो उस पर पूंजीगत संसाधनों पर एकाधिकार स्थापित करने और आर्थिक शक्ति के अपने केन्द्रीयकरण में बढ़ोतरी करने का इल्लाम लगाया जाता है । दृष्टिकोण पत्र आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने के उद्देश्य से इस तथ्य को अनदेखी करते हुए कि अपने विशाल मानव और भौतिक संसाधनों के कारण बड़ी कम्पनियां विशाल परियोजनाओं को संचालित करने में सबसे ज्यादा सक्षम है, उन्हें संस्थागत वित्तीय साधनों से वंचित करना चाहता है ।

‘बड़ी’ (कम्पनियां) क्या हैं ? आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को लेकर यह पाखण्डी या अन्यथा सनकी और लगभग पागल रवैया सरकार की आर्थिक नीतियों का एक मुख्य आधार बन गया है ।  इसी दुराग्रह के चलते इस बात की परवाह किये बिना कि इससे प्रबन्धकीय क्षेत्र में अव्यवस्था फैल जायेगी मैनेजिंग एजेंसी पद्धति को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है ।

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मेरी गुजारिश है कि अब वक्त आ गया है कि इस सवाल और इससे जुड़े एकाधिकार के सवाल को राजनीतिक क्षेत्राधिकार से निकालकर किसी आयोग या किसी स्थायी अर्ध-न्यायिक संस्था को सौंप दिया जाना चाहिए जो व्यावहारिकता के आधार पर हर मामले की जांच करके उस पर अपना फैसला दे ।

प्रस्तावित एकाधिकार एवं प्रतिकधक व्यापारिक गतिविधियां आयोग को अन्य कामों के अलावा आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण या दुरुपयोग सम्बन्धी आरोपों से निपटने का कार्य भी सौंप दिया जाना चाहिए अन्यथा यह अस्पष्ट इल्जाम निजी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले हर मुद्दे को जो सरकार के सामने विचार के लिए आता है, विषैला एवं अपंग बनाता रहेगा ।

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