शेख हसीना का भाषण – महिलाओं की अन्त:शक्ति : Speech of Sheikh Hasina on “Women’s Inter-Power” in Hindi Language!
बंगलादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने यह भाषण नयी दिल्ली में महिलाओं की स्थिति पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में सर 1997 में 15 फरवरी को दिया था । सबसे अधिक कृपालु व दयालु अल्लाह के नाम पर… :
महामहिम राष्ट्रपति महोदय, प्रधानमन्त्रीजी, देवियो और सज्जनो ! विश्व-भर से आये सांसदों व विशिष्ट व्यक्तियों के इस सम्मेलन को सम्बोधित करने का मौका दिये जाने पर मैं अपने आपको सम्मानित महसूस करती हूं । इस सम्मेलन के लिए चुना गया विषय मनुष्य जाति के लिए अत्यन्त उपयोगी है ।
जैसा कि बंगलादेश के विद्रोही कवि ने कहा हालांकि स्त्री और पुरुष सभ्यता के विकास में समान रूप से सहभागी रहे हैं, स्त्रियों को समानता का दर्जा नहीं दिया गया । सामाजिक व राजनीतिक संस्थानों के अलावा न्याय पद्धति ने भी उनके खिलाफ भेदभाव किया । अधिकांश समाजों में स्त्रियों की भूमिका घरेलू जरूरतों की पूर्ति तक सीमित रही ।
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उनके त्याग और सभ्य जीवन के केन्द्रक के रूप में परिवार के निर्माण में उनके योगदान के बाबुजूद उन्हें निम्न दर्जा दिया गया । प्रशिक्षण और शिक्षा में असमान मौके, स्वास्थ्य सुविधाओं में असमानता धन-सम्पत्ति के स्वामित्व में सीमित अधिकार तथा राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखकर अधिकांश समाजों में उन्हें अधीनता का दर्जा दिया ।
अभी आधुनिककाल से पहले उदार पश्चिमी समाजों में भी उनको मताधिकार सें वंचित रखा गया । सौभाग्य से पिछले दो दशकों में लिंगभेद को लेकर संसार में बहुत बड़ा बदलाव आया है । यह खुशी का विषय है कि हमारा यह विचार-विनिमय उस वक्त हो रहा है, जब लिंग आधारित असमानताएं एवं पुराने पूर्वग्रह खत्म हो रहे हैं और हम लिंग-समानता, सामंजस्यपूर्ण विकास व स्थायी शान्ति के अपने लक्ष्य के समीप पहुंच रहे हैं ।
अब महिलाएं सीमित परिधि की भूमिका नहीं चाहतीं । अब वे आर्थिक, राजनीतिक सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी अधिकृत भूमिका निभाना चाहती हैं । नैरोबी में हुए महिला सम्मेलन में जो जागरूकता आयी उससे राजनीतिक-सामाजिक ढांचे में उनके विषय में सोच में हर जगह बहुत बदलाव आया है ।
स्त्रियों के राजनीतिक सशक्तिकरण की जरूरत को अब हर जगह स्वीकृति दी जा रही है । लेकिन मेक्सिको से बीजिंग तक की यात्रा बहुत लम्बी थी । यह यात्रा उन स्त्री व पुरुषों दोनों की ओर से जो लिंग समानता को सुनिश्चित करने के रास्ते में आने वाले सभी सामाजिक राजनीतिक कानूनी व मनोवैज्ञानिक रुकावटों को दूरे करने के लिए कृतसंकल्प थे उनके समर्पण भाव व प्रतिबद्धता से परिपूर्ण थी ।
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बीजिंग में हुए स्त्रियों के बारे में विश्व अधिवेशन में न केवल जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों के अधिकारों की घोषणा की गयी अपितु हमें कार्यान्वयन के लिए एक मंच भी दिया गया । इस युग-प्रवर्तक दस्तावेज में मुख्य बल आघात निर्णय लेने के क्षेत्र में था । अब हम कह सकते हैं कि स्त्रियों के लिए अब एक नया युग शुरू हुआ है और इस दिशा में महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है ।
फिर भी, सम्पूर्ण कार्यान्वयन दूर का स्वप्न ही लगता है । कृपया मुझे इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वालों के साथ मेरे देश के तद्विषयक अनुभवों को बांटने की इजाजत दें । दक्षिण एशिया की लोगों के आत्मनिर्णय स्वशासन व मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करने की समृद्ध परम्परा रही है ।
बंगाल के किसान आन्दोलन को स्वशासन के संघर्ष का अनुगामी कहा जा सकता है, जिसकी चरम परिणति हमारे गौरवशाली आजादी के संग्राम में हुई । ऐसे सभी आन्दोलनों में स्त्रियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया । इनमें प्रीतिलता वाडेकर कल्पना दत्ता इला मित्रा मातुंगिनी हाजिरा आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जिनकी बहादुरी के कारनामे आज भी हमें प्रेरित करते हैं ।
यदि आज के सन्दर्भ में देखें तो सात सार्क देशों में चार देशों में महिलाएं सरकार की प्रमुख रही हैं । मैं इस मौके पर भारत की महान् सुपुत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगी जिन्होंने अपने देशवासियों के समक्ष समर्पित सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया ।
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ऐसी ही हमारे बंगलादेश के लिए सकिया शख्वत हुसैन हैं, जो समाज सुधार शिक्षा व महिला अधिकारों के लिए जूझने में अग्रणी रही हैं । उनके प्रयासों और लेखन ने हमारे देश की महिलाओं के मुक्ति आन्दोलन को बहुत प्रभावित किया है ।
हमारे इतिहास में महान् महिलाओं के योगदान की बात करते वक्त मैं अपनी माता बेगम फाजिलातुन्निसा की मौन किन्तु महत्त्वपूर्ण भूमिका की भी चर्चा करना चाहूंगी । हमारी आजादी की लड़ाई में उनके महान् सहयोग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं ।
जब मेरे पिता ने राष्ट्र को अन्तिम संघर्ष के लिए प्रेरित संगठित व तैयार किया तब मेरी माता ने अपने मौन साहस के साथ जब वह जेल में थे परिवार का पालन-पोषण किया प्रत्येक दुख में उनका साथ दिया और हमारे देश के इतिहास के नाजुक वक्त में उन्हें सहारा और शक्ति प्रदान की ।
मैं कह नहीं सकती कि इतिहास उनके योगदान को पूरी तरह अंकित करेगा या नहीं परन्तु मेरा भरोसा है कि उनका धैर्य सटीक निर्णय और सबसे बढ्कर उनकी हिम्मत उन्हें बंगलादेश के अग्रणी स्वाधीनता सेनानियों में गिने जाने का पात्र बनाता है ।
यह गम्भीर चिन्ता का विषय है कि बहादुर व मुखिया होने के ऐसे गुणों के बाबुजूद हमारी महिलाओं की बहुत बड़ी जनसंख्या को निम्न दर्जा दिया जाता है । समाज इस प्रकार की महिलाओं को अपवादस्वरूप मानता है । आज भी राजनीतिक व आर्थिक जीवन पर विशेषाधिकार सम्पन्न और शक्तिशाली लोगों का ही अधिकार है, इसलिए उसमें अधिकांश पुरुष ही हैं ।
लोकतान्त्रिक राजनीति में सभी को शामिल किया जाना चाहिए चाहे वे किसी भी जाति या लिंग के हों । जब आधी जनसंख्या महिलाओं की हो और बहुमत गरीबों का हो तो राजनीति में महिलाओं एवं गरीबों की भागीदारी का इस प्रकार समांकलन करना चाहिए कि लोकतन्त्र सचमुच सार्थक हो जाये । युगों पुरानी परम्पराओं सामाजिक प्रथाओं व मूल्यों आर्थिक निर्भरता और अनपढ़ता के कारण महिलाएं प्रत्येक स्तर पर फैसला लेने में हाशिए पर बनी रहीं । राजनीति में उनकी भागीदारी उनकी संख्या के अनुपात में बहुत कम है ।
मैं इस सम्माननीय सभा में घोषणा करती हूं कि मैं और मेरी पार्टी आने वाले सालों में अडिग दृढ़ता के साथ इस असन्तुलन को मिटा देगी । बंग-बन्धु मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व के दौरान संसद द्वारा पारित संविधान एक ऐसा विशिष्ट दस्तावेज है, जिसमें महिलाओं को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकारों की गारण्टी दी गयी है ।
इसमें महिलाओं के लिए पुरुषों के साथ समान अधिकारों के साथ संसद व स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया है । इसके साथ ही संसद में महिलाओं के एक न्यूनतम प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपिता ने दूरदर्शिता से काम लेते हुए उनके लिए सीटों का आरक्षण किया ताकि गणतन्त्र की सर्वोच्च विधायिका में उनकी भागीदारी की गारण्टी रहे ।
हमारे संविधान के अनुच्छे 28 व 29 में महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का वर्णन है । अनुच्छेद 122 में महिला व पुरुष दोनों को बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार दिया गया है । महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार के अन्तर को खत्म करने का कानूनी ढांचा उस वक्त और भी मजबूत हो गया, जब बंगलादेश ने महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने के सम्मेलन के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये ।
बंगलादेश की महिलाओं के प्रति चिन्ता के मुख्य क्षेत्रों की लिंग समानता महिलाओं की स्वायत्तता और काम के भुगतान के रूप में पहचान की गयी है । समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक के अधिकार को भी सुस्पष्ट किया जा रहा है ।
‘80’ और ‘90’ के दशक के सामाजिक आन्दोलनों के दौरान महिलाओं के राष्ट्रीय राजनीति में किनारे वाली स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव आया है । समाज के सभी स्तर से महिलाओं ने जिनमें गृहणियां भी सम्मिलित हैं: इन आन्दोलनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया ।
एक तटस्थ प्रभारी सरकार के शासनाधीन सभी के लिए वोट देने की पूर्ण आजादी के आन्दोलन को देश राष्ट्र से पूर्ण समर्थन मिला था । 12 जून सन् 1996 को हुए आम चुनावों में महिलाओं ने वोट डालने का कीर्तिमान बनाया था । यह उनके राष्ट्र के भाग्य निर्माण में गहरी रुचि लेने का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
यह भी सन्तोष का विषय है कि विभिन्न राजनीतिक दलों में महिला राजनीतिक अग्रणी भूमिका निभा रही हैं । यह बहुत उत्साहवर्धक बदलाव है । सन् 1979-82 में जहां केवल 1 महिला संसद के लिए चुनकर आयी थी वहां वर्तमान संसद में आरक्षित चुनाव क्षेत्रों से सीधे चुनी गयी सात महिलाएं हैं ।
मेरे मन्त्रिमण्डल में मेरे अलावा 2 महिला मन्त्री और 1 महिला उपमन्त्री है । हम जानते हैं कि अभी बहुत दूर जाना है, परन्तु हमने सही मार्ग पर आरम्भ किया है । राष्ट्र के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक जीवन में हम महिलाओं को पूरी तरह कैसे शामिल कर सकते हैं ? आरम्भ के लिए स्थानीय निकाय उचित प्रतीत होते हैं । मेरी सरकार संसद में एक स्थानीय शासन विधेयक पेश करने वाली है ।
यह न केवल प्रशासन का विकेन्द्रीयकरण करेगा, अपितु विधेयक में प्रस्तावित संस्थानों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं को भागीदार बनायेगा । स्थानीय निकायों के सभी स्तरों पर महिलाएं सीधे चुनी जायेंगी । हमारा भरोसा है कि यह देश की राजनीति व फैसले लेने की दिशा में पुरुषों व महिलाओं की समान भागीदारी शुरू करने का अग्रणी प्रयास सिद्ध होगा लेकिन केवल इतना ही नहीं है, संसद में 10% आरक्षित सीटों के अलावा सरकारी सेवाओं में भी महिलाओं के लिए कोटा है ।
सरकार के महिला सशक्तीकरण के प्रयत्न को सफल बनाने के लिए निजी व गैर-सरकारी संगठनों ने भी सम्पूरक प्रयास किये हैं । जनसाधारण के स्तर पर किये गये उनके प्रयासों के कारण ग्रामीण महिलाओं के दृष्टिकोण में बदलाव किया है और अब वे अपने अधीनता वाले स्तर को बदलने की आकांक्षा रखती हैं ।
ग्रामीण क्षेत्रों में पैसा कमाने की गतिविधियों तथा व्यष्टि-ऋण के साथ-साथ कपड़ा उद्योग में बड़ी मात्रा में महिलाओं को शामिल करने के कारण सामाजिक परिवेश में बदलाव आया है । हमने शिक्षा-प्राप्ति के क्षेत्र में भी महिलाओं का हौसला बढ़ाना शुरू किया है । हमारे विचार में यही महिलाओं के लिए उनके अधिकार सुरक्षित करने का निश्चित साधन है ।
केवल समानता के कानून बनाना और महिलाओं को विभिन्न कानूनों के जरिये आरक्षण देना ही पर्याप्त नहीं । यदि महिलाएं अपने अधिकारों को पूरी तरह नहीं समझतीं या उनमें उन अधिकारों की रक्षा करने के लिए पर्याप्त ज्ञान या जरूरी कुशलता नहीं है, तो यह प्रभावी नहीं होगा ।
मुझे उम्मीद है कि इस महत्त्वपूर्ण सम्मेलन में समस्त संसार में और खासतौर पर विकासशील विश्व में महिलाओं का निम्नलिखित जिन मुद्दों से सम्बन्ध है, उन पर विचार किया जायेगा:
1. राष्ट्रीय स्तर पर संसद में महिलाओं की भागीदारी ।
2. दलगत राजनीति में सम्मिलित होकर महिलाओं का राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेना ।
3. राजनीतिक प्रक्रिया व व्यवहार में लिंग आधारित भेदभाव ।
4. उच्चस्तरीय प्रशासन राष्ट्रीय एवं स्थानीय आर्थिक प्रबन्धन क्षेत्रों में महिलाओं का योगदान ।
जब तक राजनीति में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाये जाते राजनीति में महिलाओं व पुरुषों की प्रभावी भागीदारी का लक्ष्य अधूरा रहेगा । हमें महिलाओं में और ज्यादा राजनीतिक जागरूकता लाने के तरीके छूने होंगे । इस उद्देश्य के लिए सरकार सामाजिक समितियों एवं निजी स्वयंसेवी संगठनों में सहयोग व तालमेल की जरूरत है ।
हाल ही के कुछ सालों में संयुक्त राष्ट्र ने कई उच्च वरीयता के क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों का आयोजन किया है, जिसके लिए हम उसे धन्यवाद देते हैं, रियो पृथ्वी सम्मेलन (1992), काहिरा में सम्पन्न हुआ जनसंख्या व विकास सम्मेलन (1994), कोपेनहेगन में विश्व सामाजिक विकास सम्मेलन (1995) तथा अन्य कई विश्व सम्मेलनों में महिला व बाल अधिकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है ।
इन आधारभूत अधिकारों को विश्वस्तरीय स्वीकृति मिलने की पृष्ठभूमि में हमें महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के रास्ते में आने वाली जटिल बहुआयामी कठिनाइयों के जवाब ढूंढने होंगे । हमें महिलाओं की प्रच्छन्न अन्त शक्ति को समझना होगा । इस अन्त शक्ति की अभिव्यक्ति के रास्ते में आने वाली रुकावटों को पहचानकर उन्हें हटाना होगा ।
अब से तीन साल पश्चात् हम अगली सहस्राब्दी में प्रवेश करेंगे ऐसे में हमें महिलाओं की भूमिका के लिए ज्यादा गतिशील व समग्र भूमिका निर्धारित करनी चाहिए । इसके लिए न केवल विचार प्रक्रिया में अपितु निजी व सामूहिक स्तर पर तैयार किये गये सामाजिक-राजनीतिक एजेण्डा में भी बदलाव करना होगा ।
अपने सम्बोधन की समाप्ति से पहले श्रीमान् अध्यक्ष महोदय मैं आपको इस सम्मेलन के आयोजकों और सदस्यों को इसकी कामयाबी के लिए अपनी शुभकामनाएं देती हूं । हमारे विचार-विमर्श के लिए यह जो इतना महत्त्वपूर्ण विषय चुना गया था, उस पर मुझे अपने विचार आपके सामने पेश करने के लिए आमन्त्रित करने के लिए मैं सम्मेलन के संयोजकों के प्रति आभार प्रकट करती हूं और उन्हें धन्यवाद देती हूं ।
अध्यक्ष महोदय, महामहिमजी, विशिष्ट सदस्यगण, आप सबका धन्यवाद । खुदा हाफिज । जय बंगला, जय बंग-बन्धु ! बंगलादेश जिन्दाबाद !