शिक्षा में खेलों का महत्व अथवा खेल और शिक्षा पर निबंध । Essay on the Importance of Sports in Hindi Language!
मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है । कारण यह है कि इसमें चिन्तन की शक्ति है, जिसके द्वारा यह प्राचीनकाल से सब पर शासन करता आया है । आज प्रकृति भी इसके सामने नतमस्तक हो रही है । संसार के सम्पूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव-मस्तिष्क के विकास का इतिहास गुंथा हुआ है, लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि केवल मस्तिष्क का विकास एकांगी है ।
मस्तिष्क के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का भी होना अनिवार्य है । अत: मस्तिष्क के विकास के लिए जहां शिक्षा की आवश्यकता है, वहीं शारीरिक-शक्ति को प्राप्त करने के लिए क्रीड़ा की भी आवश्यकता है । दोनों एक-दूसरे के अभाव में अपूर्ण हैं ।
शारीरिक विकास के लिए खेलों के अतिरिक्त अन्य साधन भी हैं । प्रात: काल में भ्रमण द्वारा भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है । कुशती, कबड्डी, दंगल भ्रमण, दौड़ना आदि भी स्वास्थ्यवर्द्धन के लिए उपयोगी हैं । इससे शरीर पुष्ट होता है, मनोरंजन आदि से मनुष्य वंचित रहता है । खेलों से मनोरंजन भी पर्याप्त हो जाता है ।
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इससे खिलाड़ी में आत्म-निर्भर होने की भावना का उदय होता है । वह केवल अपने लिए ही नहीं खेलता, बल्कि उसकी हार और जीत पूरी टीम की हार और जीत है । अत: उसमें अपने साथियों के लिए स्नेह तथा मित्रता का विकास होता है । उसमें अपनत्व तथा एकत्व की भावना जन्म लेती है । वह अपनें में ही अपनी टोली की प्रगति देखता है ।
रुचि की भिन्नता के कारण किसी को हॉकी, किसी को क्रिकेट और किसी को फुटवॉल अच्छा लगता है । खेलों से अनेक लाभ हैं । इनका जीवन और जाति में विशिष्ट स्थान हैं । शारीरिक और मानसिक स्थिति को कायम रखने के लिए खेलों का बड़ा महत्त्व है । इस लिए प्राचीनकाल से ही खेलों को महत्व दिया गया है ।
विद्यार्थी आश्रमों में अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेलों में भी पारंगत होते थे । उस समय के खेल युद्ध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते थे । उस समय धनुर्विद्या की शिक्षा का विशेष बोल-बाला था । खेलों से केवल शरीर ही नहीं, अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है; क्योंकि पुष्ट और स्वस्थ शरीर में सुन्दर मस्तिष्क का वास होता है ।
बिना शारीरिक शक्ति के शिक्षा पंगु है । मान लो कि एक विद्यार्थी अध्ययन में बहुत अच्छा है, पर वह शरीर से कमजोर है । उसके लिए किसी भी बाधा का सामना करना सम्भव नहीं । अपने मार्ग में पड़ा एक पत्थर तक उठा कर अपना मार्ग निष्कंटक बनाने की शक्ति उसमें नहीं ।
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तब ऐसे विद्यार्थी से देश और जाति क्या कामना कर सकती है ? रात-दिन किताबों पर ही अपनी दृष्टि गड़ाए रखने वाले विद्यार्थी जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते । शक्ति के अभाव में अन्य सब गुण व्यर्थ सिद्ध होते हैं । यहाँ तक कि मानव के सर्वश्रेष्ठ गुण तप-त्याग तक शक्ति के अभाव में व्यर्थ साबित होते हैं ।
तभी तो कहा गया है: त्याग, तय, करुणा, क्षमा से भींग कर व्यक्ति का मन तो बली होता, मगर हिंसक पशु जब घेर लेते हैं, उसे काम आता बलिष्ठ शरीर ही । बलिष्ठ शरीर के साथ-साथ खेलों से मनुष्य में क्षमाशीलता, दया, स्वाभिमान, आज्ञापालन, अनुशासन आदि अनेक गुणों का समावेश भी होता है । वहुत-से विद्यार्थी तो खेलों के बल पर ही ऊंचे-ऊंचे पदों को प्राप्त कर लेते हैं ।
खेलों के अभाव तथा निर्बलकाय होने के कारण ही अधिकांश विद्यार्थी किसी महत्वपूर्ण स्थान से वंचित रह जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क कितना भी सबल क्यों न हो, पर चलना पैरों से ही है । अत: शिक्षण के साथ-साथ क्रीड़ा में भी कुशल होना उज्जवल भविष्य का प्रतीक है । खेलों से राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीय की भावना का भी उदय होता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेली जाने वाली खेलों के आधार पर खिलाड़ियों को विश्व-भ्रमण का भी सुअवसर मिलता है । इसमें सन्देह नहीं कि खेल विद्यार्थी-जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं, पर यदि इनमें अधिक भाग लिया जाए, तो हानि होती है । बहुत-से विद्यार्थी क्रीड़ा में अधिक रुचि लेने के कारण अध्ययन से मुँह मोड़ लेते हैं ।
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यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि खेलों का महत्त्व भी शिक्षा के साथ ही है । कई बार तो खेलों के कारण द्वेष, स्पर्द्धा तथा गुटबन्दी आदि की कटु भावनाओं का भी जन्म होता है, जो बड़ी हानिकारक हैं । अत: शिक्षण और क्रीड़ा में परस्पर समन्वय की नितांत आवश्यकता है ।
अत: जीवन में शिक्षा के साथ-साथ खेलों के प्रति भी रुचि होनी चाहिए । जैसे मस्तिष्क और हृदय का समन्वय अनिवार्य है, वैसे ही शिक्षा और क्रीड़ा का भी । शिक्षण-संस्थाओं का भी यह कर्त्तव्य है, कि वे शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न खेलों की भी व्यवस्था करें ।