Read this article in Hindi to learn about how to reduce stress.

तनाव को हल्का करने के लिए सही तरीके का चुनाव करना  चाहिए । तनाव का स्रोत क्या है? यदि बाहरी कारण हैं, जैसे कोई आने वाला महत्वपूर्ण कार्यक्रम या आपसी संबंधों में कठिनाई, तब सकारात्मक सोच की तकनीक ही सबसे असरदार होगी ।

घटनाएँ अपने आप में तनावपूर्ण नहीं होती, बल्कि उनके बारे में खुद को क्या बताते हैं, यही बात तनाव पैदा करती है । यदि तनाव और थकान लंबे समय से हैं, तब अपनी जीवनशैली और आहार में बदलाव करना भी असरदार हो सकता है । यदि इन सब तरीकों पर एक साथ अमल करें, तो इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे ।

तनाव का प्रबंधन कुछ अलग ढंग से करना होगा, जो या तो मानव जीवन में तनावपूर्ण स्थितियों को बदल देगा या फिर  उनके नजरिए और तनाव पर  उनके प्रतिक्रिया में बदलाव ला देगा ।

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कुछ ऐसी तकनीकें बताई जा रही हैं जो तनाव कम करने में सहायक हैं:

1. दिन में कई बार गहरी साँस लें, इससे थकान दूर होगी ।

2. रात में सबसे आखिरी काम के बाद और सुबह सबसे पहले, निरीक्षण करें कि शरीर में तनाव किन लक्षणों से प्रदर्शित हो रहा है ।

3. उद्देश्य निर्धारित करने और नियमित योजना बनाने पर ध्यान केन्द्रित करें ।

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4. सकारात्मक पुस्तकें पढना अपनी दिनचर्या में शामिल करें ।

5. हँसने के अवसर खोजे – यहाँ तक कि समस्याओं में भी हँसे ।

6. जितना संभव हो, अपने ऊपर होने वाले नकारात्मक प्रभावों को टालें, चाहे प्रभाव डालने वाला सहकर्मी हो या फिर मीडिया और टी.वी. पर दिखाई जा रही हिंसा । ये बातें आपको हताश करती हैं ।

7. प्रतिदिन के आधार पर ध्यान लगाना या कुछ समय तक शांत रहना सीखें ।

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8. जिन लोगों से मानव प्यार करते हैं उनके साथ सकारात्मक बातें करने के लिए समय निकालें ।

9. अपनी रुचि के काम को हर हफ्ते थोडा समय दें नाचना, गाना, पढ़ना, बाहर काम करना । आपकी पसंद के अनुसार यह कोई भी काम हो सकता है ।

10. शारीरिक रूप से और भी सक्रिय हो जाएँ ।

तनाव के दौरान, यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि अपना स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए अच्छी तरह खाएँ-पिएँ । लगातार होने वाला तनाव, विटामिन्स कीं मात्रा, मुख्यत विटामिन-बी की मात्रा को घटाता है और इलेक्ट्रोलाइट में असंतुलन पैदा करता है । तनाव मुक्त धातुकणों के निर्माण को प्रेरित करता है, जो कोशिका की दीवार और ऊतकों को क्षतिग्रस्त करते हैं ।

अब तक  प्रतिरोधक क्षमता को बढाने वाले खनिज लवणों और जड़ी-बूटियों के बारे में जो कुछ जाना है , जैसे, जस्ता, एस्ट्रागेलस, रेशी मशरूम और लिकोरिस की जड आदि । फाइटोन्यूट्रियेन्ट्स और कुछ विटामिन्स, ऑक्सीकरण-रोधी की तरह काम करते हैं, जो मुक्त धातुकणों को नियंत्रित करते हैं । सामान्य तौर पर अच्छा पोषण तनाव से उबरने और उसे नियंत्रित रखने में सहायक होता है ।

व्यायाम (Exercise):

हमारा तनाव चाहे पारिस्थितिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक कारणों से जुडा हो, इनके परिणामों से पैदा व्यग्रता को खत्म करने में व्यायाम सहायक होता है । दुःख की बात तो यह है कि पूरे विश्व में, कहीं भी 60 से 85 प्रतिशत जनसंख्या शारीरिक रूप से क्रियाशील नहीं है ।

शारीरिक क्रियाओं के लिए समय निकालने से लंबी बीमारियों की आशंका को कम कर सकते हैं और भरपूर जीवन जीने के लिए अपनी क्षमता में बढोत्तरी कर सकते हैं । कई सालों पहले, लोग चलते-फिरते हुए पूरे दिन क्रियाशील रहा करते थे । जीवन पूरी तरह शारीरिक क्रियाशीलता पर आधारित होता था ।

आज कुल मिलाकर देखा जाए, तो जीवनशैली निष्क्रिय और स्थानबद्ध है । मानव कार में बैठकर काम पर या स्कूल आते-जाते हैं । यहाँ तक कि बैंक और रेस्त्रां भी वाहन से जाते हैं । कार्यस्थल पर अपनी कुर्सी पर बैठे रहते हैं वहाँ टेलीफोन, कम्प्यूटर और फैक्स मशीन काम को सँभालते हैं । और घर पर टी.वी. व वीडियो गेम्स का आकर्षण अपनी ओर खींच लेता है ।

टी.वी. की आवाज को कम या ज्यादा करने या चैनल बदलने के लिए भी उठने की जरूरत नहीं पडती । सामान्य तौर पर हिलना-डुलना ही बद कर दिया है और इस स्थिति को सामान्य रूप से ग्रहण भी कर लिया है ।

तनाव के पास बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, सिवाय शरीर के अंदर जाने के, क्योंकि मानव बहुत सारा समय बैठे-बैठे ही गुजार देता हैं । यह संभव है कि थियेटर और बस की सीट को आने वाले दस वर्षों में चार इँच और बढ़ा दिया जाए ।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि  अधिकतर लोग अधिक वजन के होंगे और थोडे से श्रम से ही  उनकी साँस फूलने लगेगी । इस दूषित जीवनशैली को बच्चों को भी विरासत में भी दे रहे हैं और उनका वजन भी तेजी से बढ रहा है ।

निष्क्रिय बच्चे (Passive Child):

‘अमेरिकन युवाओं की तंदुरुस्ती को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है ।’ स्थिति इतनी भयावह है कि अमेरिकी समाचारों और विश्व रिपोर्ट ने इस संबंध में 11 पृष्ठ का एक विशेष खंड प्रकाशित कर राष्ट्र को एक चेतावनी दी थी ।

‘अभिभावकों को बच्चों के बारे में चेतावनी दी गई बच्चे, जो बस से स्कूल जाते हैं, उनके सारे क्रिया-कलाप कोई और करके देता है, माँसपेशी की मजबूती के लिए वे कोई काम नहीं करते और टी. वी. के सामने बैठे-बैठे मनोरंजन करते हैं – वे दुर्बल और थुलथुल होते जा रहे हैं ।’

यह चेतावनी समाचार पत्र में प्रकाशित हालिया लेख में छपी है? चलिए, हो सकता है, लेकिन यह लेख तो 2 अगस्त 1957 में प्रकाशित हुआ था और कितना सही था । कितने दुख की बात है कि हमने इन लिखी हुई बातों को नजरअंदाज किया और अब सालों बाद हालात और भी बदतर हो गए हैं ।

बचपन और शारीरिक क्रियाओं को एक-दूसरे का पर्याय माना गया है । अधिकतर वयस्क, चाहे वे किसी भी जगह से हों, अपने बचपन को याद करते हैं कि अँधेरा होने तक वे बाहर खेला करते थे और थकान ही उन्हें लौटने पर विवश करती थी । ठंड का मौसम हो या बरसात, प्रकृति कोई भी रंग दिखाए, बच्चे रुकते नहीं थे । और यदि वे घर लौटने पर घर पर बनी ब्राउनी खाते भी थे, तो इससे सामान्यतः कोई नुकसान नहीं होता था, क्योंकि वे प्रतिदिन इतने ही क्रियाशील रहते थे ।

आजकल बच्चे अपना खाली समय व्यायाम करने में शायद ही बिताते हैं । बैठे-बैठे इलेक्ट्रॉनिक खेलों या टी.वी. के चैनल बदलने के लिए रिमोट कंट्रोल पर उनकी उँगलियाँ जरूर लगातार चलती रहती हैं और जाहिर है, जब बच्चे टी.वी. देख रहे होंगे, तो उन्हें नाश्ते की कई चीजें याद आती हैं । हद तो यह है कि प्रतिदिन कैलोरी खर्च करने वाले आम कार्य, जैसे स्कूल तक पैदल जाना या किसी दोस्त से मिलने के लिए साइकिल चलाकर जाना भी अब कार से किए जाने लगे हैं ।

यदि  बच्चे पर्याप्त व्यायाम न कर पाने के कारण खतरे में हैं, तो इन चीजों को बदलना इतना कठिन भी नहीं है । सबसे अच्छा तो यह है कि  इसके लाभ भी तुरंत ही दिखने लगेंगे, जैसे नई ऊर्जा, शक्ति और जीवन के प्रति उत्साह आ जाएगा ।

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