Read this article in Hindi to learn about how to treat wastewater.

1. पूर्व-प्रशोधन (Pre-Treatment):

पूर्व-प्रशोधन के तहत प्राथमिक प्रशोधन के निर्मलकारी पम्पों ओर झरनियों को क्षतिग्रस्त या बाधित करने वाले सामग्रियों (जैसे- कचरा, पेडों की डालियां, पत्तियां, इत्यादि) को हटाता है जिन्हें आसानी से अपरिष्कृत अपशिष्ट जल से एकत्र किया जा सकता है ।

i. छानन (Filtration):

मल-जल धारा में बहने वाले सभी बड़ी वस्तुओं को हटाने के लिए अन्त:प्रवाही मल-जल को छाना जाता है । इस काम को ज्यादातर आम तौर पर बहुत बड़ी जनसंख्या को सेवा प्रदान करने वाले आधुनिक संयंत्रों में एक स्वचालित यंत्रवत सांचेदार अवरोधक छाननी की सहायता से किया जाता है जबकि अपेक्षाकृत छोटे या कम आधुनिक संयंत्रों में एक हस्तचालित साफ छाननी का इस्तेमाल किया जा सकता है ।

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एक यांत्रिक अवरोधक छाननी की एकत्रण क्रिया आम तौर पर अवरोधक छाननी पर जमाव और प्रवाह दर के अनुसार धीमी गति के आधार पर होती है । ठोस पदार्थों को एकत्र कर लिया जाता है और बाद में किसी भूमि भराव के काम में इस्तेमाल किया जाता है या जलाकर राख कर दिया जाता है ।

ठोस पदार्थों को हटाने की क्रिया को अनुकूल बनाने के लिए अलग-अलग आकार वाले अवरोधक छाननी या जालीनुमा छाननी का इस्तेमाल किया जा सकता है । छानन की क्रिया किसी भी मल-जल प्रशोधन संयंत्र में किया जाने वाला सबसे पहला कार्य है, जिसके तहत मल-जल को विभिन्न प्रकार की छाननी से होकर प्रवाहित किया जाता है, जिससे कि मल-जल में मौजूद कपड़ों के टुकड़े, कागज, लकड़ी, रसोई का कूड़ा-करकट इत्यादि जैसे- जल के ऊपर बहने वाले पदार्थों को फंसाया और हटाया जा सके ।

यदि इन बहते हुए पदार्थों को नहीं हटाया गया तो ये पाइपों को जाम कर देंगे या मल-जल पम्पों के काम पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे । इस प्रकार छाननी उपलब्ध कराने का मुख्य उद्देश्य मल-जल में बहते हुए पदार्थों की वजह से होने वाले संभावित नुकसानों से पम्पों और अन्य उपकरणों की रक्षा करना है ।

इसे कंकड़ कक्षों से आगे स्थापित किया जाना चाहिए । लेकिन यदि कंकडों की गुणवत्ता बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती हो जैसा कि भूमि भराव के मामले में होता है, तो इन छाननियों को कंकड़ कक्षों के बाद भी रखा जा सकता है । इन्हें कभी-कभी खुद कंकड़ कक्षों के मुख्य भाग में भी समायोजित किया जा सकता है ।

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ii. कंकड़ का निष्कासन (Removal of Pebbles):

पूर्व-प्रशोधन में एक बालू या कंकड़ चैनल या कक्ष निहित हो सकता है जहां बालू, कंकड़ और पत्थरों के जमाव के लिए आगत अपशिष्ट जल के वेग को समायोजित किया जाता है ।

इन कणों को इसलिए हटा दिया जाता है क्योंकि ये अपशिष्ट जल प्रशोधन केंद्र के पम्पों ओर अन्य यांत्रिक उपकरणों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं । हो सकता है कि छोटे-छोटे स्वच्छता मल-जल प्रणालियों के लिए, कंकड़ कक्षों की जरूरत न पड़े, लेकिन बड़े-बड़े संयंत्रों में कंकड़ हटाव वांछनीय है ।

2. प्राथमिक प्रशोधन (Primary Treatment):

प्राथमिक अवसादन चरण में, मल-जल बड़ी-बड़ी टंकियों से होकर बहता है जिसे आमतौर पर प्राथमिक निर्मलक या प्राथमिक अवसादन टंकी कहते हैं । इन टंकियों का इस्तेमाल कीचड़ के जमाव के लिए किया जाता है जबकि ओंगन एवं तेल सतह पर उठ जाते हैं और उन्हें ऊपर से हटा लिया जाता है ।

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प्राथमिक जमाव टंकियां आमतौर पर यांत्रिक रूप से संचालित स्क्रेपर से सुसज्जित होती हैं जो एकत्रित कीचड़ को लगातार टंकी के आधार तल में स्थित एक होपर की तरफ ले जाता है जहां से इसे कीचड़ प्रशोधन केन्द्रों में भेज दिया जाता है । साबुनीकरण के लिए कभी-कभी बहते हुए पदार्थों से ओंगन और तेल को निकाल लिया जाता है ।

इन टंकियों के आयामों का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए जो बहते हुए पदार्थों और कीचड़ की अत्यधिक मात्रा को हटाने की क्रिया में सहायक सिद्ध हो । एक विशिष्ट अवसादन टंकी, मल-जल के प्रसुप्त ठोस पदार्थों में से 60 से 65 प्रतिशत और बीओडी में से 30 से 35 प्रतिशत अपशिष्ट पदार्थों को हटा सकती है ।

3.  द्वितीयक प्रशोधन (Secondary Treatment):

द्वितीयक प्रशोधन का निर्माण मानव अपशिष्ट, खाद्य अपशिष्ट, साबुन ओर डिटर्जेट से उत्पन्न मल-जल के जैविक पदार्थ को काफी हद तक कम करने के लिए किया गया है । नगरपालिका के अधिकांश संयंत्रों में वायवीय जैविक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करके मल-जल में जमे हुए रसायनों को प्रशोधित किया जाता है ।

क्रियाशील बने रहने और जीवित रहने के लिए जीव जगत के लिए ऑक्सीजन और खाद्य दोनों जरूरी है । जीवाणु और प्रोटोजोआ स्वाभाविक रूप से सड़नशील घुलनशील कार्बनिक संदूषित पदार्थों (जैसे- शर्करा, वसा, कार्बनिक लघु-श्रृंखलाबद्ध कार्बन अणु इत्यादि) का उपभोग करते हैं और कम घुलनशील पदार्थों में से अधिकांश पदार्थों को फ्लोक में परिवर्तित कर देते हैं ।

द्वितीयक प्रशोधन प्रणालियों को निम्न रूपों में वर्गीकृत किया गया है:

i. प्रसुप्त-वृद्धि (Accretion):

नियत फिल्म या संलग्न वृद्धि प्रणाली की प्रशोधन प्रक्रिया में रिसाव फिल्टर और आवर्ती जैविक मेलक शामिल होते हैं जहां जैव पदार्थ माध्यम तैयार करता है और मल-जल इसकी सतह पर से गुजरता है ।

प्रसुप्त-वृद्धि प्रणालियों में, जैसे उत्प्रेरित कीचड़, जैव पदार्थ मल-जल से मिल जाता है और एक समान परिमाण वाले जल को प्रशोधित करने वाले नियत फिल्म प्रणालियों की तुलना में एक छोटे स्थान में यह संचालित हो सकता है ।

हालांकि, नियत फिल्म प्रणालियां, जैविक पदार्थों की मात्र में होने वाले प्रबल परिवर्तनों का सामना करने में अधिक सक्षम होती हैं और प्रसुप्त वृद्धि प्रणालियों की तुलना में ये अधिक कार्बनिक पदार्थ ओर प्रसुप्त ठोस पदार्थों का हटाव कर सकती हैं ।

असमतल फिल्टरों का उद्देश्य खास तौर पर कड़े या परिवर्तनीय जैविक मिश्रणों, आम तौर पर औद्योगिक मिश्रणों, को प्रशोधित करना है जिससे इन्हें तब पारंपरिक द्वितीयक प्रशोधन प्रक्रियाओं द्वारा प्रशोधित करने में आसानी हो ।

इसके अभिलक्षणों में अपशिष्ट जल को प्रवाहित किए जाने वाले माध्यम से युक्त फिल्टर शामिल होते हैं । इन्हें इस तरह से बनाया गया होता है जिससे उच्च हाइड्रोलिक लोडिंग और उच्च स्तरीय वातन में आसानी हो ।

बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों में धौंकनियों का इस्तेमाल करके मीडिया के माध्यम से हवा को प्रवेश किया जाता है । परिणामी अपशिष्ट जल की गिनती आम तौर पर पारंपरिक प्रशोधन प्रक्रियों की सामान्य श्रेणी के भीतर की जाती है ।

एक फिल्टर बहुत कम मात्रा में प्रसुप्त कार्बनिक पदार्थों को हटाता है, जबकि फिल्टर में होने वाले केवल जैविक ऑक्सीकरण और नाइट्रीकरण की वजह से अधिकांश कार्बनिक पदार्थ के रूप में परिवर्तन हो जाता है ।

इस वायवीय ऑक्सीकरण ओर नाइट्रीकरण की वजह से कार्बनिक ठोस पदार्थ स्कंदित प्रसुप्त पदार्थों के ढेर में बदल जाता है, जो इतने भारी भरकम होते हैं जो टंकी की तली में आसानी से जम सकते हैं ।

इसलिए फिल्टर के गंदे जल को एक अवसादन टंकी के माध्यम से प्रवाहित किया जाता है जिसे द्वितीयक निर्मलक या द्वितीयक जमाव टंकी या धरण टंकी कहते हैं ।

ii. उत्प्रेरित कीचड़ (Catalytic Sludge):

आम तौर पर उत्प्रेरित कीचड़ संयंत्रों में विभिन्न प्रकार की क्रियाविधियों और प्रक्रियाओं के माध्यम से जैविक फ्लोक की वृद्धि को बढ़ाने के लिए घुलित ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है जो काफी हद तक कार्बनिक पदार्थों को हटाने का काम करता है ।

यह प्रक्रिया कणीय पदार्थों को फंसाता है और आदर्श परिस्थितियों के तहत यह अमोनिया को नाइट्राइट और नाइट्रेट में और अंत में नाइट्रोजन गैस में बदल सकता है । औद्योगिक अपशिष्ट जल को प्रशोधित करने वाली अधिकांश जैविक ऑक्सीकरण प्रक्रियाओं में आम तौर पर ऑक्सीजन (या हवा) और सूक्ष्मजीवीय क्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है ।

सतह-वातित बेसिनों को 1 से 10 दिनों के धारण समय के साथ जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग का 80 से 90 प्रतिशत हटाव प्राप्त होता है । इन बेसिनों की गहराई 1.5 से 5.0 मीटर तक है और ये अपशिष्ट जल की सतह पर तैरने वाले मोटर-चालित वातक का इस्तेमाल करते हैं ।

एक वातित बेसिन प्रणाली में, वातक दो तरह के काम करते हैं- ये बेसिनों में जैविक ऑक्सीकरण प्रतिक्रियाओं के लिए आवश्यक हवा को स्थानांतरित करते हैं ओर हवा को तितर वितर करने और रिएक्टरों (अर्थात, ऑक्सीजन, अपशिष्ट जल और सूक्ष्म जीव) से संपर्क स्थापित करने के लिए आवश्यक मिश्रण का काम करते हैं ।

आमतौर पर, प्रवाहमान सतह वातकों को 1.8 से 2.7 किलोग्राम ऑक्सीजन प्रति किलोवाट घंटे (kg O2 / kW.h) की मात्र के बराबर हवा प्रदान करने के लिए नियत किया जाता है ।

हालांकि, वे उतना अच्छा मिश्रण नहीं प्रदान करते हैं जितना अच्छा मिश्रण आम तौर पर उत्प्रेरित कीचड़ प्रणालियों में प्राप्त होता है और इसलिए वातित बेसिन उत्प्रेरित कीचड़ इकाइयों के स्तर का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं ।

जैविक ऑक्सीकरण प्रक्रियाएं तापमान के प्रति संवेदनशील होती हैं और 0 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच, तापमान के साथ जैविक प्रतिक्रियाओं की दर में वृद्धि होती है । अधिकांश सतह वातित वाहिकाएं 4 डिग्री सेल्सियस और 32 डिग्री सेल्सियस के बीच संचालित होती है ।

iii. फिल्टर तल (ऑक्सीकरण तल) (Filter Bottom):

पुराने संयंत्रों ओर परिवर्तनीय भारण पदार्थों को प्राप्त करने वाले संयंत्रों में रिसाव फिल्टर तलों का इस्तेमाल किया जाता है जहां तली में जमे हुए मल-जल रसायनों को कोक (कार्बनीकृत कोयला), चूना पत्थर के टुकड़ों, या विशेष रूप से बनाया हुआ प्लास्टिक मीडिया से बने तल की सतह पर प्रसारित किया जाता है ।

इस तरह के माध्यम में बड़े-बड़े सतह क्षेत्रों का होना आवश्यक है जो जैव फिल्मों के निर्माण में सहायक हो । रसायनों को आम तौर पर छिद्रयुक्त छिड़काव उपकरणों के माध्यम से वितरित किया जाता है ।

वितरित रसायन का रिसाव तल के माध्यम से होता है और इसे आधार तल की नालियों में एकत्र किया जाता है । ये नालियां भी हवा का एक स्रोत प्रदान करती हैं जिसका निथारन तल के माध्यम से होता है जो इसे वायवीय बनाए रखते हैं ।

जीवाणु, प्रोटोजोआ और कवकों के जैविक फिल्म मीडिया के सतहों पर निर्मित होते हैं और ये कार्बनिक सामग्री को खा जाते हैं या नहीं तो कम कर देते हैं । इस जैव फिल्म को अक्सर कीट लार्वा, घोंघा और कीड़े खा जाते हैं जिससे एक इष्टतम मोटापन बनाए रखने में मदद मिलती है ।

तलों के अतिभारण से फिल्म की मोटाई बढ़ जाती है जिसकी वजह से निस्पंदन माध्यम में अवरोध और सतह पर जल का जमाव होने लगता है । हाल ही में मीडिया और प्रक्रिया सूक्ष्म जीव विज्ञान की डिजाइन में हुई उन्नति से रिसाव फिल्टर डिजाइनों से जुड़े कई मुद्दों पर काबू पा लिया गया है ।

iv. मिट्टी जैव प्रौद्योगिकी (Soil Biotechnology):

आईआईटी बच्चे में विकसित मिट्टी जैव-प्रौद्योगिकी नामक एक नूतन प्रक्रिया की सहायता से 50 जूल प्रति किलोग्राम प्रशोधित जल से कम जल की अत्यधिक न्यून संचालन शक्ति आवश्यकताओं की वजह से कुल जल पुनर्प्रयोग को सक्षम बनाने वाली प्रक्रिया की क्षमता में जबरदस्त सुधार देखा गया है ।

आम तौर पर एसबीटी प्रणालियां 400 मिलीग्राम प्रति लीटर सीओडी के मल-जल निविष्टि से 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम सीओडी प्राप्त कर सकती हैं । मीडिया में बहुत ज्यादा मात्र में उपलब्ध सूक्ष्मजीविय घनत्वों के परिणामस्वरूप एसबीटी संयंत्र सीओडी के मानों और जीवाणुओं की संख्या में बहुत ज्यादा कमी का प्रदर्शन करते हैं ।

पारंपरिक प्रशोधन संयंत्रों के विपरीत एसबीटी संयंत्र अन्य प्रौद्योगिकियों के लिए जरूरी कीचड़ निपटान क्षेत्रों की आवश्यकता को बाधित करने वाले नगण्य कीचड़ का उत्पादन करते हैं ।

मुंबई शहर के बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में परिनियोजित 3 मिलियन लीटर प्रति दिन प्रशोधन क्षमता वाले एसबीटी संयंत्र के विवरण वाले एक वृत्तचित्र को यहां बीएमसी मुंबई स्थित एसबीटी देखा जा सकता है ।

भारतीय सन्दर्भ में पारंपरिक मल-जल प्रशोधन संयंत्र प्रणालीगत जीर्णता की श्रेणी में आते हैं जिसके निम्नलिखित कारण हैं:

(1) उच्च परिचालन लागत,

(2) मिथेनोजिनेसिस और हाइड्रोजन सल्फाइड की वजह से उपकरणों का संक्षारण,

(3) उच्च सीओडी (30 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक) और उच्च मलीय कॉलिफोर्म (3000 एनएफयू/ NFU से अधिक) संख्या की वजह से प्रशोधित जल की गैर-पुनर्प्रयोज्यता,

(4) कुशल परिचालन कर्मियों का अभाव और

(5) उपकरण प्रतिस्थापन के मुद्दे ।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 1986 में बड़े पैमाने पर गंगा बेसिन की सफाई कराने के प्रयास की प्रणालीगत विफलताओं के उदाहरणों को संकट मोचन फाउंडेशन द्वारा प्रलेखित किया गया है जिसके लिए भारत सरकार ने गंगा एक्शन प्लान के तहत मल-जल प्रशोधन संयंत्रों की स्थापना की थी लेकिन नदी के जल गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए किया गया यह प्रयास विफल रहा ।

v. जैविक वातित फिल्टर (Biological Aerated Filters):

जैविक वातित (या एनोक्सिक) फिल्टर या जैव फिल्टर जैविक कार्बन कटौती, नाइट्रीकरण या अनाइट्रीकरण के साथ निस्पंदन को संयुक्त करता है । बीएएफ में आम तौर पर एक फिल्टर मीडिया से भरा हुआ एक रिएक्टर होता है ।

मीडिया या तो प्रसुप्त अवस्था में होता है या फिल्टर के निचले हिस्से की बजरी परत द्वारा समर्थित होता है । इस मीडिया का दोहरा उद्देश्य इससे जुड़े अत्यधिक सक्रिय जैव पदार्थों को सहायता देना और प्रसुप्त ठोस पदार्थों को निस्पंदित करना है ।

कार्बन कटौती और अमोनिया रूपांतरण वायवीय मोड में होता है और कभी-कभी केवल एक रिएक्टर में प्राप्त किया जाता है जबकि नाइट्रेट रूपांतरण एनोक्सिक मोड में होता है । बीएएफ का संचालन निर्माता द्वारा विनिर्देषित डिजाइन के आधार पर या तो उर्धवप्रवाह या निम्नप्रवाह विन्यास में होता है ।

vi. मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर (Membrane Bioreactor):

मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर एक झिल्ली तरल-ठोस अलगाव प्रक्रिया के साथ उत्प्रेरित कीचड़ प्रशोधन को संयुक्त करते हैं । झिल्ली घटक निम्न दबाव सूक्ष्म निस्पंदन या परा निस्पंदन का इस्तेमाल करता है और निर्मलक और तृतीयक निस्पंदन की जरूरत को खत्म कर देता है । ये झिल्लियां आम तौर पर वातन टंकी में डूबी हुई होती है ।

हालांकि, कुछ अनुप्रयोगों में एक अलग झिल्ली टंकी का इस्तेमाल किया जाता है । एक एमबीआर प्रणाली के मुख्य लाभों में से एक लाभ यह है कि यह बड़े ही प्रभावशाली ढंग से पारंपरिक उत्प्रेरित कीचड़ प्रक्रियाओं में कीचड़ की खराब जमाव से जुड़ी सीमाओं पर काबू पा लेता है ।

यह प्रौद्योगिकी काफी हद तक सीएएस प्रणालियों की तुलना में अधिक मिश्रित रसायन प्रसुप्त ठोस पदार्थ संकेन्द्रण के साथ बायोरिएक्टर के उपयोग की सुविधा प्रदान करता है, जो कीचड़ जमाव द्वारा सीमित होते हैं ।

इस प्रक्रिया का संचालन आम तौर पर 8,000 से 12,000 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा के भीतर एमएलएसएस द्वारा किया जाता है, जबकि सीएएस का संचालन 2,000 से 3,000 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा में होता है ।

एमबीआर प्रक्रिया में उन्नत जैव पदार्थ संकेन्द्रण से बहुत अधिक मात्रा में घुलित और कणीय स्वाभाविक रूप से सड़नशील दोनों तरह की सामग्रियों को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से हटाने में आसानी होती है ।

इस तरह आम तौर पर 15 दिन से अधिक वर्धित कीचड़ प्रतिधारण बारी से अत्यंत ठण्ड के मौसम में भी सम्पूर्ण नाइट्रीकरण को सुनिश्चित किया जाता है । एक एमबीआर के निर्माण और संचालन की लागत आम तौर पर पारंपरिक अपशिष्ट जल प्रशोधन की तुलना में अधिक होता है ।

झिल्ली फिल्टर ओंगन से ढंके जा सकते हैं या प्रसुप्त कंकड़ द्वारा घिस सकते हैं और इनमें ऊपरी प्रवाह को प्रवाहित करने के लिए निर्मलक की अस्थिरता का अभाव हो सकता है ।

विश्वसनीयतापूर्वक पूर्व प्रशोधित अपशिष्ट धाराओं के लिए यह प्रौद्योगिकी उत्तरोत्तर लोकप्रिय बनता गया है और इसे व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई है जहां अन्तःनिस्पंदन और अन्तःप्रवाह को नियंत्रित किया जाता है, हालांकि और जीवन-चक्र लागत लगातार कम होता गया है । एमबीआर प्रणालियों के छोटे-छोटे पदचिह्न और उत्पन्न उच्च गुणवत्ता वाले उत्प्रवाही पदार्थ विशेष रूप से उन्हें जल पुनर्प्रयोग अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी बनाते हैं ।

vii. द्वितीयक अवसादन (Secondary Sedimentation):

द्वितीयक प्रशोधन चरण का अंतिम चरण- जैविक फ्लोक या फिल्टर पदार्थों का बंदोबस्त करना और निम्न स्तर वाले कार्बनिक पदार्थ और प्रसुप्त पदार्थ युक्त मल-जल का उत्पादन करना ।

आवर्ती जैविक मेलक (Recurring Biological Mailer):

आवर्ती जैविक मेलक यांत्रिक द्वितीयक प्रशोधन प्रणालियां हैं, जो काफी मजबूत और कार्बनिक भारण की लहर का सामना करने में सक्षम होती हैं । आरबीसी को सबसे पहले वर्ष 1960 में जर्मनी में स्थापित किया गया था ओर उसके बाद से एक विश्वसनीय संचालक इकाई के रूप में इसे विकसित और प्रशोधित किया जा रहा है ।

आवर्ती डिस्क मल-जल में मौजूद जीवाणु और सूक्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायता करते हैं, जो कार्बनिक प्रदूषकों को नष्ट और स्थिर करते हैं । अपने काम में कामयाब होने के लिए सूक्ष्म जीवों को जीने के लिए ऑक्सीजन ओर बढ़ने के लिए खाद्य की जरूरत पड़ती है ।

इस ऑक्सीजन को डिस्क के घूमने के समय वायुमंडल से प्राप्त किया जाता है । बड़े हो जाने पर ये सूक्ष्म जीव तब तक मीडिया पर वृद्धि-विकास करते रहते हैं जब तक मल-जल में आवर्ती डिस्कों द्वारा प्रदत्त कतरनी बलों की वजह से उनका केंचुल नहीं उतर जाता है ।

आरबीसी से उत्पन्न होने उत्प्रवाही पदार्थों को तब अंतिम निर्मलक से होकर प्रवाहित किया जाता है जहां प्रसुप्त सूक्ष्म जीव कीचड़ के रूप में नीचे बैठ जाते हैं । आगे के प्रशोधन के लिए निर्मलक से इस कीचड़ को निकाल लिया जाता है । कार्यात्मक ढंग से इसी तरह एक जैविक निस्पंदन प्रणाली घरेलू जल जीवशाला निस्पंदन और शुद्धिकरण के भाग के रूप में काफी लोकप्रिय हो गई है ।

जल जीवशाला के जल को टंकी से बाहर निकल लिया जाता है और उसके बाद मीडिया फिल्टर के माध्यम से प्रवाहित करने और जल जीवशाला में वापस भेजने से पहले इस जल को मुक्त रूप से घूमते हुए एक नालीदार फाइबर के जाल वाले पहिया पर जहाराने की तरह गिराया जाता है ।

यह घूमता हुआ जाल वाला पहिया सूक्ष्म जीवों का एक जैवफिल्म आवरण विकसित करता है जो जल जीवशाला के जल में मौजूद प्रसुप्त अपशिष्ट पदार्थों को खाते हैं ओर पहिये के घूमने पर वायुमंडल के समक्ष अनावृत भी हो जाते हैं ।

विशेष रूप से जलजीवशाला के जल में मछली और अन्य जीवों के मल-मूत्र रूपी अपशिष्ट यूरिया ओर अमोनिया को हटाने के लिए यह एक अच्छी प्रक्रिया है ।

3. तृतीयक प्रशोधन (Tertiary Treatment):

तृतीयक प्रशोधन का प्रयोजन- प्रापक वातावरण (समुद्र, नदी, झील, भूमि, इत्यादि) में निष्कासित करने से पहले उत्प्रवाही पदार्थ की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक अंतिम प्रशोधन चरण प्रदान करना है ।

किसी भी प्रशोधन संयंत्र में एक से अधिक तृतीयक प्रशोधन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है । यदि कीटाणुशोधन किया जाता है, तो यह सदैव अंतिम प्रक्रिया होती है । इसे उत्प्रवाही चमकाव भी कहा जाता है ।

निस्पंदन (Filtration):

रेत निस्पंदन से अधिकांश अवशिष्ट प्रसुप्त पदार्थ हट जाता है । उत्प्रेरित कार्बन के निस्पंदन से अवशिष्ट विषाक्त पदार्थ हट जाते हैं ।

4. लैगून द्वारा मल-जल प्रशोधन (Waste Water Treatment by Lagoon):  

लैगून द्वारा मल-जल प्रशोधन के तहत मानव-निर्मित बड़े-बड़े तालाबों या लैगूनों में मल-जल भंडारण के माध्यम से जमाव और आगे चलकर जैविक सुधार का कार्य किया जाता है । ये लैगून बहुत ज्यादा वायवीय होते हैं और देशी मैक्रोफाइट, खास तौर पर नरकट, के औपनिवेशीकरण को अक्सर प्रोत्साहित किया जाता है ।

डैफ्निया और रोटिफेरा की प्रजातियों जैसे रीढ़ रहित प्राणियों के लिए भोजन का प्रबंध करने वाला छोटा फिल्टर महीन कणों को हटाकर प्रशोधन की क्रिया में बहुत ज्यादा सहायता करता है ।

i. निर्मित आर्द्र प्रदेश (Built Humid Region):

निर्मित आर्द्र प्रदेशों में इंजीनियरिकृत नरकट तल और इसी तरह की कई कार्यप्रणालिया शामिल हैं जिनमें से सभी एक उच्च स्तरीय वायवीय जैविक सुधार प्रदान करती हैं ओर अक्सर छोटे-छोटे समुदायों के लिए द्वितीयक प्रशोधन की जगह इनका इस्तेमाल भी किया जा सकता है,  फाइटोरिमेडिएशन, इसका एक उदाहरण- इंग्लैण्ड के चेस्टर जू में हाथियों के प्रांगण की नालियों की सफाई करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक छोटा नरकट भूमि है ।

ii. पोषक तत्वों का निष्कासन (Removal of Nutrients):

अपशिष्ट जल में पोषक तत्वों के नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की अधिक मात्रा निहित हो सकता है । पर्यावरण में इनकी अत्यधिक निष्कासन की वजह से पोषक तत्वों का निर्माण हो सकता है जिन्हें यूट्रोफिकेशन कहते हैं जिससे घास-फूस, शैवाल और सायनोबैक्टीरिया (नीली-हरी शैवाल) की अतिवृद्धि में इजाफा हो सकता है ।

इसकी वजह से शैवाल फलन हो सकता है, अर्थात् शैवाल की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगती है । शैवालों की संख्या ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकता है और अंत में उनमें से अधिकांश मर जाते हैं ।

जीवाणुओं द्वारा शैवाल के अपघटन में इतना अधिक जलीय ऑक्सीजन इस्तेमाल होता है कि अधिकांश या सभी जंतु मर जाते हैं, जिससे जीवाणुओं द्वारा विघटित होने के लिए और अधिक कार्बनिक पदार्थों का निर्माण हो जाता है ।

अनॉक्सीजनीकरण करने के अलावा, शैवाल की कुछ प्रजातियां विषैले तत्व उत्पन्न करती हैं जो पेयजल की आपूर्ति को दूषित कर देते हैं । विभिन्न प्रशोधन प्रक्रियाओं के लिए नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को हटाना आवश्यक है ।

iii. नाइट्रोजन का निष्कासन (Nitrogen Removal):

नाइट्रोजन को हटाने की क्रिया पर अमोनिया (नाइट्रीकरण) से नाइट्रेट में नाइट्रोजन के जैविक ऑक्सीकरण के माध्यम से असर पड़ता है, जिसके बाद अनाइट्रीकरण अर्थात् नाइट्रेट से नाइट्रोजन गैस में न्यूनीकरण होता है । नाइट्रोजन गैस को वातावरण में मुक्त कर दिया जनता है ओर इस प्रकार जल से हटा दिया जाता है ।

नाइट्रीकरण अपने आप में दो चरणों वाली एक वायवीय प्रक्रिया है, जिसमें से प्रत्येक चरण को विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं द्वारा सहज बनाया जाता है । अमोनिया का नाइट्राइट में ऑक्सीकरण को सबसे ज्यादा प्राय: नाइट्रोसोमोनस एसपीपी द्वारा सहज बनाया जाता है (नाइट्रोसो एक नाइट्रोसो कार्यात्मक समूह के गठन को संदर्भित करता है) ।

नाइट्रोबैक्टर एसपीपी, (नाइट्रो एक नाइट्रो क्रियात्मक समूह के गठन को संदर्भित करता है) द्वारा सहज बनाए जाने की पारंपरिक मान्यता के बावजूद नाइट्रेट में नाइट्राइट के ऑक्सीकरण को अब प्राय: विशेष रूप से नाइट्रोस्पिरा एसपीपी. द्वारा पर्यावरण में सहज बनाए जाने के रूप में जाना जाता है ।

उपयुक्त जैविक समुदायों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए अनाइट्रीकरण को एनोक्सिक हालातों की जरूरत पड़ती है । इसे जीवाणु के एक व्यापक विविधता द्वारा सहज बनाया जाता है ।

रेत फिल्टर, लैगूनीकरण एवं नरकट तलों को नाइट्रोजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उत्प्रेरित कीचड़ प्रक्रिया (यदि अच्छी तरह से बनाया गया) इस काम को सबसे ज्यादा आसानी से कर सकती है । चूंकि अनाइट्रीकरण डिनाइट्रोजन गैस में नाइट्रेट का न्यूनीकरण है, इसलिए एक इलेक्ट्रान दाता की जरूरत है ।

अपशिष्ट जल के आधार पर यह कार्बनिक पदार्थ (मल से), सल्फाइड, या मिथेनॉल की तरह का एक शामिल दाता हो सकता है । अकेले नाइट्रेट में विषैले अमोनिया के रूपांतरण को कभी-कभी तृतीयक प्रशोधन के रूप में संदर्भित किया जाता है ।

कई मल-जल प्रशोधन संयंत्रों में अनाइट्रीकरण के लिए वातान क्षेत्र से एनोक्सिक क्षेत्र में नाइट्रिकृत मिश्रित रसायन को स्थानांतरित करने के लिए अक्षीय प्रवाह पम्पों का इस्तेमाल किया जाता है । इन पम्पों को अक्सर आंतरिक मिश्रित रसायन पुनर्चक्रण पम्पों के रूप में संदर्भित किया जाता है ।

iv. फॉस्फोरस का निष्कासन (Phosphorus Removal):

फॉस्फोरस को हटाने की क्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई ताजा जल प्रणालियों में शैवालों की वृद्धि को सीमित करने वाला एक पोषक तत्व है । यह खास तौर पर जल पुनर्प्रयोग प्रणालियों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है जहां अधिक फॉस्फोरस संकेन्द्रण की वजह से अनुप्रवाही उपकरण खघ्राब हो सकता है, जैसे-विपरीत परासरण ।

फॉस्फोरस को जैविक तौर पर वर्धित जैविक फॉस्फोरस निष्कासन नामक एक प्रक्रिया में हटाया जा सकता है । इस प्रक्रिया में, बहुफॉस्फेट संग्राहक जीव (पीएओ) नामक विशिष्ट जीवाणु चयनात्मक ढंग से समृद्ध होते हैं और अपनी कोशिकाओं के भीतर बहुत अधिक मात्रा में (अपने द्रव्यमान का 20 प्रतिशत तक) फॉस्फोरस का संग्रह करता हैं ।

जब इन जीवाणु में संग्रहित जैव पदार्थों को प्रशोधित जल से अलग किया जाता है, तब इन जैव ठोस पदार्थों का उर्वरक मूल्य काफी अधिक होता है । फॉस्फोरस हटाने की क्रिया को रासायनिक अवक्षेपण द्वारा, आम तौर पर लौह लवण (जैसे- फेरिक क्लोराइड), एल्यूमीनियम (जैसे- फिटकिरी), या चूना के साथ, भी किया जा सकता है ।

इसकी वजह से हाइड्रॉक्साइड तलछट के रूप में बहुत ज्यादा कीचड़ उत्पन्न हो सकता है ओर मिलाए गए रसायन महंगे हो सकते हैं । रासायनिक फॉस्फोरस को हटाने के लिए जैविक निष्कासन की अपेक्षा काफी छोटे उपकरण की जरूरत पड़ती है, जैविक फॉस्फोरस निष्कासन की तुलना में इसे संचालित करना ज्यादा आसान और अक्सर बहुत ज्यादा भरोसेमंद भी होता है ।

फॉस्फोरस को हटाने का एक ओर तरीका बारीक लेटराइट का इस्तेमाल है । फॉस्फेट युक्त कीचड़ के रूप में हटाए जाने के बाद इस फॉस्फोरस को किसी भूमि भरण में जमा करके रखा जा सकता है या उर्वरक में इस्तेमाल करने के लिए इसे फिर से बेचा जा सकता है ।

v. कीटाणुशोधन (Disinfection):

अपशिष्ट जल के प्रशोधन में कीटाणुशोधन का उद्देश्य-पर्यावरण में वापस मुक्त किए जाने वाले जल में सूक्ष्मजीवों की संख्या को काफी हद तक कम करना है । कीटाणुशोधन की प्रभावशीलता प्रशोधित किए जा रहे जल की गुणवत्ता (जैसे- मटमैलापन, पीएच, आदि), इस्तेमाल किए जाने वाले कीटाणुशोधन के प्रकार, कीटाणुशोधन की मात्रा (एकाग्रता और समय) और अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनीय तत्वों पर निर्भर करती है ।

मटमैले जल को प्रशोधित करने में कम कामयाबी मिलेगी क्योंकि ठोस पदार्थ जीवों को, खास तौर पर पराबैंगनी प्रकाश से, ढंक सकते हैं, या यदि इनसे संपर्क करने की आवृत्ति कम हो । आम तौर पर, कम संपर्क आवृत्ति, कम मात्रा ओर उच्च प्रवाह आदि सभी कारक प्रभावी कीटाणुशोधन में बाधक होते हैं ।

कीटाणुशोधन के आम तरीकों में शामिल हैं- ओजोन, क्लोरीन, पराबैंगनी प्रकाश, या सोडियम हाइपोक्लोराईट । पेयजल के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले क्लोरमीन के सातत्य की वजह से क्लोरमीन का इस्तेमाल अपशिष्ट जल प्रशोधन में नहीं किया जाता है ।

क्लोरीनीकरण अपनी कम लागत और प्रभावशीलता के दीर्घकालिक इतिहास की वजह से उत्तर अमेरिका में अपशिष्ट जल कीटाणुशोधन का सबसे आम रूप बना हुआ है । इसका एक नुकसान यह है कि अवशिष्ट कार्बनिक पदार्थ के क्लोरीनीकरण से क्लोरीन युक्त कार्बनिक यौगिक उत्पन्न हो सकते हैं जो कैंसरकारी या पर्यावरण के हानिकारक हो सकते हैं ।

अवशिष क्लोरीन या क्लोरमीन में प्राकृतिक जलीय वातावरण में कार्बनिक पदार्थों का क्लोरीनीकरण करने की क्षमता भी हो सकती है । चूंकि अवशिष्ट क्लोरीन जलीय प्रजातियों के लिए विषैला होता है, इसलिए प्रशोधित गंदे जल को रासायनिक दृष्टि से क्लोरीनविहीन कर देना चाहिए, जिससे प्रशोधन की जटिलता और लागत बढ़ जाती है ।

क्लोरीन, आयोडीन, या अन्य रसायनों की जगह पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश का इस्तेमाल किया जा सकता है । रसायनों का इस्तेमाल न होने की वजह से प्रशोधित जल का बाद में उपभोग करने वाले जीवों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि अन्य तरीकों के साथ कुछ और मामला सामने आ सकता है ।

यूवी विकिरण की वजह से जीवाणु, विषाणु और अन्य रोगाणुओं की आनुवंशिक संरचना क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे उनमें प्रजनन शक्ति समाप्त हो जाती है ।

यूवी कीटाणुशोधन के प्रमुख नुकसान यह हैं कि लैम्प के रख-रखाव ओर प्रतिस्थापन की बार-बार जरूरत पड़ती है और यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यधिक प्रशोधित उत्प्रवाही पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है कि लक्षित सूक्ष्मजीव यूवी विकिरण से बचे नहीं हैं (जैसे- प्रशोधित उत्प्रवाही पदार्थ में मौजूद कोई भी ठोस पदार्थ यूवी प्रकाश से सूक्ष्मजीवों की रक्षा कर सकता है) ।

ब्रिटेन में, अपशिष्ट जल में अवशिष्ट कार्बनिक पदार्थों के क्लोरीनीकरण और प्रापक जल में कार्बनिक पदार्थों के क्लोरीनीकरण में क्लोरीन के प्रभाव के बारे चिंताओं की वजह से प्रकाश कीटाणुशोधन का सबसे आम साधन बनता जा रहा है ।

एडमॉन्टन और कैलगरी, अल्बर्टा और केलोना, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा भी अपने उत्प्रवाही जल कीटाणुशोधन के लिए यूवी प्रकाश का इस्तेमाल करते हैं । संलग्न होने और O3 का निर्माण करने वाले ऑक्सीजन के तीसरे परमाणु में परिणत करने वाले एक उच्च वोल्टेज विभव से होकर ऑक्सीजन O2 के गुजरने पर ओजोन O3 उत्पन्न होता है ।

ओजोन बहुत अस्थिर और प्रतिक्रियाशील होता है और यह संपर्क में आने वाले अधिकांश कार्बनिक पदार्थों को ऑक्सीकृत कर देता है, जिससे कई रोगजनक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं ।

क्लोरीन की तुलना में ओजोन को ज्यादा सुरक्षित माना जाता है क्योंकि साइट पर संग्रहित किए जाने वाले क्लोरीन के विपरीत (आकस्मिक रूप से मुक्त हो जाने की स्थिति में बहुत ज्यादा विषैला होता है), ओजोन को आवश्यकतानुसार साइट पर ही उत्पन्न किया जाता है ।

क्लोरीनीकरण की तुलना में ओजोनीकरण में कम कीटाणुशोधन उपोत्पाद उत्पन्न होते हैं । ओजोन कीटाणुशोधन से होने वाला एक नुकसान यह है कि ओजोन उत्पन्न करने वाले उपकरण की लागत अधिक होती है और विशेष परिचालकों की जरूरत पड़ती है ।

vi. दुर्गन्ध नियंत्रण (Deodorant Control):

मल-जल प्रशोधन से उत्सर्जित होने वाला दुर्गन्ध आम तौर पर एक अवायवीय या सेप्टिक स्थिति का एक संकेत है । प्रसंस्करण के प्रारंभिक चरणों में बदबूदार गैस, सबसे आम तौर पर हाइड्रोजन सल्फाइड, उत्पन्न होने लगते हैं ।

शहरी क्षेत्रों में बड़े-बड़े प्रसंस्करण संयंत्रों में इन दुर्गंधों को अक्सर कार्बन रिएक्टर, जैव-चिकनी मिट्टी वाले एक संपर्क मीडिया, क्लोरीन की कम मात्र से, या अप्रिय गैसों को जीव विज्ञान के अनुसार नियंत्रित ओर चयापचय द्वारा उत्पन्न करने के लिए तरल पदार्थों को परिसंचरित करके प्रशोधित किया जाता है ।

दुर्गन्ध नियंत्रण के अन्य तरीकों के तहत हाइड्रोजन सल्फाइड के स्तर को प्रबंधित करने के लिए इसमें लौह लवण, हाइड्रोजन परॉक्साइड, कैल्शियिम नाइट्रेट, इत्यादि मिलाया जाता है ।

vii. पैकेज संयंत्र एवं बैच रिएक्टर (Package Plant & Batch Reactor):

कम स्थान का इस्तेमाल करने के लिए और मुश्किल अपशिष्ट पदार्थों को प्रशोधित करने के लिए और आंतरायिक प्रवाह के लिए, संकर प्रशोधन संयंत्रों के कई डिजाइन बनाए गए हैं । ऐसे संयंत्र अक्सर प्रशोधन के तीन मुख्य चरणों में से कम-से-कम दो चरणों को एक संयुक्त चरण में संयुक्त कर देते हैं ।

ब्रिटेन में, जहां बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल प्रशोधन संयंत्र छोटी-छोटी जनसंख्या की सेवा करते हैं, वहां प्रत्येक प्रसंस्करण चरण के लिए एक बड़ी संरचना का निर्माण करने के लिए पैकेज संयंत्र एक व्यवहार्य विकल्प है ।

द्वितीयक प्रशोधन एवं निपटान को एक साथ संयुक्त करने वाली एक प्रकार की प्रणाली क्रमबद्ध बैच रिएक्टर है । आमतौर पर, उत्प्रेरित कीचड़ को अपरिष्कृत आगत मल-जल के साथ मिश्रित कर दिया जाता है और फिर इसे मिश्रित और वातित कर दिया जाता है ।

मुख्य कार्य के लिए तली में बैठे हुए कीचड़ के अंश के वापस आने से पहले उसे बहा दिया जाता है और फिर से वातित कर दिया जाता है । एसबीआर संयंत्रों को अब दुनिया के कई हिस्सों में स्थापित किया जा रहा है ।

एसबीआर प्रसंस्करण से यही नुकसान है कि इसके लिए समय, मिश्रण एवं वातान के एक सटीक नियंत्रण की जरूरत है । इस परिशुद्धता को आम तौर पर सेंसरों से जुड़े कंप्यूटर नियंत्रणों से हासिल किया जाता है ।

इस तरह की एक जटिल और नाजुक प्रणाली ऐसी जगहों के लिए अनुपयुक्त होती है जहां शायद अविश्वसनीय ढंग से नियंत्रण किया जाता हो, खराब ढंग से रख-रखाव किया जाता हो, या जहां बिजली की आपूर्ति रूक-रूक कर होती हो ।

पैकेज संयंत्रों को उच्च आवेशित या निम्न आवेशित के रूप में संदर्भित किया जा सकता है । यह उस तरीके को संदर्भित करता है जिस तरीके जैविक भार को प्रसंस्कृत किया जाता है ।

उच्च आवेशित प्रणालियों में, जैविक चरण को एक उच्च कार्बनिक भार एवं संयुक्त फ्लोक के साथ प्रस्तुत किया जाता है और उसके बाद कार्बनिक पदार्थ को एक नए भार के साथ फिर से आवेशित करने से पहले इसे कुछ घंटों तक ऑक्सीजनीकृत किया जाता है । निम्न आवेशित प्रणाली में जैविक चरण में एक निम्न कार्बनिक भार शामिल होता है और यह लम्बे समय के लिए गुफ्दार से संयुक्त होता है ।

viii. कीचड़ प्रशोधन और निष्कासन (Mud Treatment & Removal):

एक अपशिष्ट जल प्रशोधन प्रक्रिया में एकत्र किए गए कीचड़ को प्रशोधित करके एक सुरक्षित एवं प्रभावी तरीके से निष्कासित कर देना चाहिए । अपघटन का उद्देश्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ओर ठोस पदार्थों में मौजूद रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या को कम करना है ।

सबसे आम प्रशोधन विकल्पों में अवायवीय अपघटन, वायवीय अपघटन और खाद निर्माण शामिल है । यद्यपि बहुत कम हद तक भस्मीकरण का भी इस्तेमाल किया जाता है ।

कीचड़ प्रशोधन उत्पन्न ठोस पदार्थों की मात्रा ओर अन्य स्थान-विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करता है । खाद-निर्माण की क्रिया अक्सर सबसे ज्यादा लघु स्तरीय संयंत्रों के लिए मध्यम आकार वाले संचालनों के लिए वायवीय अपघटन ओर दीर्घ स्तरीय संचालनों के लिए अवायवीय अपघटन के साथ लागू की जाती है ।

ix. अवायवीय अपघटन (Anaerobic Decomposition):

अवायवीय अपघटन एक जीवाण्विक प्रक्रिया है जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता है । यह प्रक्रिया या तो थर्मोफिलिक अपघटन हो सकती है, जिसमें कीचड़ को 55 डिग्री सेल्सियस तापमान पर टंकियों में किण्वित किया जाता है, या यह प्रक्रिया मेसोफिलिक अपघटन हो सकती है, जिसमें कीचड़ को लगभग 36 डिग्री सेल्सियस तापमान पर किण्वित किया जाता है ।

हालांकि इसका प्रतिधारण समय बहुत कम होता है (और इस तरह छोटी-छोटी टंकियां), थर्मोफिलिक अपघटन, कीचड़ को गर्म करने के लिए ऊर्जा के खपत की दृष्टि से अधिक महंगा होता है ।

अवायवीय अपघटन, सेप्टिक टंकियों में घरेलू मल-जल का सबसे आम (मेसोफिलिक) प्रशोधन है, जो आम तौर पर एक दिन से दो दिन तक मल-जल को प्रतिधारित करता है और बी.ओ.डी. में लगभग 35 से 40 प्रतिशत तक की कटौती करता है ।

सेप्टिक टंकी में वायवीय प्रशोधन इकाई को स्थापित करके अवायवीय एवं वायवीय प्रशोधन के एक संयोजन के साथ इस कटौती में वृद्धि की जा सकती है । अवायवीय अपघटन की एक प्रमुख विशेषता- जैव गैस का उत्पादन है (जिसका सबसे उपयोगी घटक मीथेन है), जिसका इस्तेमाल जनरेटरों में बिजली उत्पन्न करने के लिए और/या बॉयलरों में गर्म करने के लिए किया जा सकता है ।

x. वायवीय अपघटन (Pneumatic Decomposition):

वायवीय अपघटन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होने वाली एक जीवाण्विक प्रक्रिया है । वायवीय परिस्थितियों के तहत, जीवाणु तेजी से कार्बनिक पदार्थों का उपभोग करता है और इसे कार्बन-डाइऑक्साइड में बदल देता है । वायवीय अपघटन के लिए संचालन खर्च बहुत ज्यादा होता है क्योंकि ब्लोवर, पम्प और मोटरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ऊर्जा के लिए इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है ।

हालांकि, ऑक्सीजनीकरण के लिए प्राकृतिक वायु धाराओं का इस्तेमाल करने वाली पत्थर फाइबर फिल्टर प्रौद्योगिकी के आगमन के बाद से इसका इस्तेमाल अब नहीं किया जाता है । कीचड़ को ऑक्सीकृत करने के लिए विसारक प्रणालियों या जेट वातकों का इस्तेमाल करके भी इस वायवीय अपघटन की क्रिया को पूरा किया जा सकता है ।

xi. खाद-निर्माण (Composting):

खाद-निर्माण भी एक वायवीय प्रक्रिया है जिसके तहत कीचड़ को कार्बन के स्रोतों, जैसे- लकड़ी का बुरादा, भूसा या लकड़ी का टुकड़ा, के साथ मिश्रित किया जाता है । ऑक्सीजन की उपस्थिति में, जीवाणु अपशिष्ट जल के ठोस पदार्थों और मिलाए गए कार्बन स्रोत दोनों का अपघटन करता है और ऐसा करते समय बहुत बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न करता है ।

xii. भस्मीकरण (Incineration):

निम्न उष्मीय गुण वाले कीचड़ को जलाने और अवशिष्ट जल को वाष्पीकृत करने के लिए आवश्यक पूरक ईंधन (आम तौर पर प्राकृतिक गैस या ईंधन तेल) और वायु उत्सर्जन की चिंताओं की वजह से कीचड़ के भस्मीकरण की प्रक्रिया का इस्तेमाल बहुत कम होता है । अपशिष्ट जल के कीचड़ के दहन में सबसे ज्यादा उच्च टिकाव अवधि वाले चरणयुक्त बहु-चूल्हों वाली भट्टियों और द्रवीकृत तल वाली भट्टियों का इस्तेमाल किया जाता है ।

नगरपालिका के अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों में कभी-कभार सह-अग्निकरण किया जाता है, कम महंगा होने की वजह से इस विकल्प को ठोस अपशिष्ट के लिए पहले से मौजूद सुविधाओं के रूप में अपना लिया गया है ओर इसके लिए किसी सहायक ईंधन की जरूरत नहीं है ।

xiii. कीचड़ निष्कासन (Sludge Evacuation):

जब तरल कीचड़ उत्पन्न होता है, तो अंतिम निष्कासन के लिए इसे उपयुक्त बनाने के लिए आगे के प्रशोधन की जरूरत पड़ सकती है । आमतौर पर, निष्कासन के लिए स्थान से दूर ले जाने के लिए कीचड़ की मात्रा को कम करने के लिए इसे गाढ़ा (जलशून्य) किया जाता है ।

ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जो जैव ठोस पदार्थों के निष्कासन की जरूरत को पूरी तरह से खत्म कर सके । हालांकि, कीचड़ को बहुत ज्यादा गर्म करने और इसे छोटे-छोटे गोलीनुमा दानों में परिवर्तित करने के लिए कुछ शहरों में एक अतिरिक्त कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें बहुत अधिक नाइट्रोजन और अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं ।

न्यूयार्क शहर में, उदाहरण के लिए, कई मल-जल प्रशोधन संयंत्रों में जलशून्यीकरण सुविधाएं उपलब्ध हैं जहां कीचड़ में से अतिरिक्त द्रव निकालने के लिए बहुलक जैसे रसायनों के योग के साथ-साथ बड़े-बड़े अपकेंद्रित का इस्तेमाल किया जाता है ।

सेंट्रेट नामक इस निष्कासित तरल पदार्थ को आम तौर पर अपशिष्ट जल प्रशोधन प्रक्रिया में फिर से प्रशोधित किया जाता है । शेष पदार्थ को ‘केक’ कहा जाता है जिसे कई कंपनियां कम दाम पर खरीद लेती हैं और इसे उर्वरक गुटिकाओं में रूपांतरित कर देती हैं ।

उसके बाद इस उत्पाद को एक मिट्टी संशोधन या उर्वरक के रूप में स्थानीय किसानों और तृखाच्छादित खेतों को बेच दिया जाता है, जिससे भूमि भरण क्षेत्रों में कीचड़ को निष्कासित करने के लिए कम स्थान की जरूरत पड़ती है ।

5. प्रापक पर्यावरण में प्रशोधन (Treatment in Receptor Environment):

एक अपशिष्ट जल प्रशोधन संयंत्र में कई प्रक्रियाओं को पर्यावरण में होने वाली प्राकृतिक प्रशोधन प्रक्रियाओं की नकल करने के लिए बनाया जाता है, चाहे वह पर्यावरण एक प्राकृतिक जल निकाय हो या जमीन ।

यदि अतिभारित न हो, तो पर्यावरण में मौजूद जीवाणु कार्बनिक संदूषित पदार्थों का उपभोग करेंगे, हालांकि इससे जल में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाएगा और प्रापक जल की समग्र पारिस्थितिकी में काफी बदलाव आ सकता है ।

मूल जीवाण्विक जनसंख्या कार्बनिक संदूषित पदार्थों पर अपना भरण-पोषण करती हैं ओर रोगोत्पादक सूक्ष्मजीवों की संख्या पराबैंगनी विकिरण के शिकार या जोखिम जैसी प्राकृतिक पर्यावरणीय परिस्थितियों द्वारा कम हो जाती हैं ।

परिणामस्वरूप, जिन मामलों में प्रापक पर्यावरण एक उच्च स्तरीय तनुकरण की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, उन मामलों में उच्च स्तरीय अपशिष्ट जल प्रशोधन की जरूरत नहीं पड़ सकती है ।

हालांकि, हाल ही में प्राप्त सबूतों से इस बात का पता चला है कि यदि जल को पेयजल के रूप में फिर से इस्तेमाल किया जाता है तो अपशिष्ट जल में बहुत कम मात्रा में पाए जाने वाले हार्मोन (पशुपालन से और मानव हार्मोन सम्बन्धी गर्म निरोध की विधियों से अवशेष) और अपने कार्यों में हार्मोन की नकल करने वाले फ्थालेट जैसी सिंथेटिक सामग्रियों सहित विशिष्ट संदूषित पदार्थों का प्राकृतिक जीव जगत और संभवत: मानव जाति पर अप्रत्याशित रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है ।

अमेरिका ओर यूरोपी संघ में, कानून के तहत पर्यावरण में अपशिष्ट जल के अनियंत्रित निष्कासन की अनुमति नहीं है और कठोर जल गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है । आने वाले दशकों में तीव्र विकासशील देशों के भीतर अपशिष्ट जल का बढ़ता हुआ अनियंत्रित निष्कासन एक बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा ।

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