Here is an essay on ‘Unemployment’ for class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Unemployment’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. बेरोजगारी का परिचय (Introduction to Unemployment):
एक भयानक संकट जो किसी भी राष्ट्र के जीवन को प्रभावित कर सकता है वह है बेरोजगारी की समस्या । हमारे देश में बेरोजगारी विश्व के उन्नत देशों से बिल्कुल भिन्न है । सुविकसित देश जैसे यू.एस.ए. और यू.के. प्रायः संघर्ष अथवा चाक्रिक बेरोजगारी से पीड़ित होते हैं, परन्तु भारत में यह एक स्थायी लक्षण है । वास्तव में यह एक बहुपक्षीय परिदृश्य है तथा हाल ही के वर्षों में इसने एक गम्भीर रूप धारण कर लिया है ।
इसलिये भारत में बेरोजगारी का स्वरूप बहुत जटिल है । भूतपूर्व राष्ट्रपति वी. वी. गिरी के अनुसार यह एक रूप से यह मानवीय साधनों की घोर व्यर्थता है जो किसी देश के आर्थिक विकास की गति को रोक देती है और इसके लिये अति शीघ्र सुधारक कार्यवाही की आवश्यकता है ।
Essay # 2. बेरोजगारी का अर्थ और स्वरूप (Meaning and Nature of Unemployment):
सामान्य रूप से बेरोजगारी वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति किसी उत्पादक कार्य में लाभप्रद रूप से नियोजित नहीं होता । इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति बेरोजगार है जो मजदूरी के लिये कोई काम ढूंढ रहा है परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार कार्य खोजने में असमर्थ है । इस दृष्टिकोण से स्वैच्छिक और अनैच्छिक बेरोजगारी का अनुमान लगाया जा सकता है ।
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स्पष्टतया किसी अर्थव्यवस्था में, कार्यरत जनसंख्या का एक भाग होता है जो किसी लाभप्रद कार्य में रुचि नहीं रखता तथा कुछ लोग ऐसे होते हैं जो श्रम बाजार में प्रचलित मजदूरी दर से ऊंचे दरों पर कार्य करने में रुचि रखते हैं । केन्ज ने इस किस्म की श्रम-शक्ति को स्वैच्छिक बेरोजगारी कहा है ।
उसके मतानुसार, अनैच्छिक बेरोजगारी ऐसी स्थिति से सम्बन्धित है, जिसमें लोग प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने को तैयार होते हैं परन्तु उन्हें वह मजदूरी नहीं मिलती । ऐसी स्थिति प्रायः विश्व के पूंजीवादी देशों में विद्यमान होती है ।
विकासशील देशों में बेरोजगारी की समस्या दो प्रकार की है अर्थात् अनैच्छिक बेरोजगारी और संघर्षात्मक (Involuntary and Frictional) बेरोजगारी । यह प्रभावपूर्ण माँग के अभाव कारण होती है । अल्प-विकसित देशों में, इसके विपरीत बेरोजगारी लगभग संरचनात्मक होती है । उत्पादन के कारकों का, जाने हुये ज्ञान की सीमाओं के भीतर सदा अल्प नियोजन होता है ।
श्रम की माँग कम है तथा कृषि क्षेत्र के पिछड़े होने के कारण रोजगार के अवसरों का अभाव होता है । औद्योगिक क्षेत्र भी पिछड़ा हुआ होता है, पूंजी और निवेश की कमी होती है और सेवा क्षेत्र का आकार सीमित होता है । ऐसी परिस्थितियों में बहुत से लोग प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य स्वीकार करने में खुश होते हैं ।
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मुख्य तौर पर, बेरोजगारी अनेक प्रकार की होती है, जैसे:
(i) चाक्रिक,
(ii) संघर्षात्मक,
(iii) प्रौद्योगिकीय,
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(iv) मौसमी,
(v) संरचनात्मक,
(vi) स्वैच्छिक,
(vii) अनैच्छिक,
(viii) अदृश्य और अस्थायी ।
परन्तु अधिकांश, अल्प विकसित देशों में बेरोजगारी के तीन मुख्य रूप हैं:
(क) खुली बेरोजगारी,
(ख) अदृश्य बेरोजगारी,
(ग) अल्प बेरोजगारी ।
(क) खुली बेरोजगारी (Open Unemployment):
इस श्रेणी के अन्तर्गत, बेरोजगारी ऐसी स्थिति के सन्दर्भ में होती है जहां श्रम शक्ति के बड़े भाग को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त नहीं होते जहां नियमित आय प्राप्त हो । एक प्रकार से श्रमिक काम करने को तैयार होते हैं तथा काम करने के योग्य होते हैं परन्तु इस प्रकार की बेरोजगारी पूरक साधनों विशेषतया पूंजी के अभाव का परिणाम होती है ।
पूंजी निर्माण की दर जनसंख्या वृद्धि दर से पीछे छूट जाती है । भारी संख्या में सुरक्षित श्रम होता है जिसे कार्य नहीं मिलता । मिसेज जॉन रांबिन्सन उन्हें ”मार्क्सवादी बेरोजगारी” कहती हैं । इस प्रकार की बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी के रूप में पहचाना जाता है ।
(ख) अदृश्य बेरोजगारी (Disguised Unemployment):
अदृश्य बेरोजगारी मुख्यतः भारत जैसे कृषि प्रधान अल्प-विकसित देशों से सम्बन्धित होती है । फिर भी, यह औद्योगिक रूप में विकसित देशों में भी पायी जाती है जो चाक्रिक बेरोजगारी से पीड़ित होते हैं । तथापि इसका अर्थ है बेरोजगार जो प्रत्येक व्यक्ति के लिये खुला नहीं तथा छिपा रहता है ।
वास्तव में, ऐसा रोजगार एक कार्य को आपस में बांटने वाला उपकरण है अर्थात् विद्यमान कार्य को अनेक श्रमिकों में बाटा जाता है । ऐसी स्थिति में, यदि बहुत से श्रमिकों को निकाल भी लिया जाता है तो वह कार्य कुछ श्रमिकों के साथ जारी रखा जा सकता है । ऐसे श्रमिकों का उत्पादन में योगदान शून्य तो या शून्य के समीप ही होता है । भारतीय गावो में, बेरोजगारी का यह रूप, एक सामान्य सा लक्षण है ।
(ग) अल्प रोजगारी (Under-Employment):
इस प्रकार के रोजगार को दो प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है:
(क) ऐसी स्थिति जिसमें श्रमिक को उचित कार्यों के अभाव में वह कार्य नहीं मिलता जिसके योग्य वह होता है ।
(ख) क्योंकि श्रमिक को पूरे दिन का कार्य नहीं मिलता, कभी-कभी बेरोजगारी का दूसरा रूप मौसमी बेरोजगारी के रूप में जाना जाता है ।
अल्प रोजगार के पहले रूप को एक उदाहरण की सहायता से व्याख्या की जा सकती है । कल्पना करें कि एक डिग्री प्राप्त इंजीनियर एक उचित कार्य चाहता है, वह एक संचालक के रूप में कार्य करता है तथा उसे अल्प-रोजगार की स्थिति में कहा जा सकता है । उसे उत्पादक गतिविधि में क्रियाशील तथा कमाई करता हुआ माना जा सकता है । परन्तु वास्तव में, वह अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर रहा होता । अतः उसे अल्प रोजगार की स्थिति में कहा जा सकता है ।
सुविधा के लिये हम बेरोजगारी को निम्नलिखित अनुसार वर्गीकृत करेंगे:
(क) ग्रामीण बेरोजगारी अथवा अदृश्य बेरोजगारी (Rural Unemployment or Disguised Unemployment)
(ख) औद्योगिक बेरोजगारी (Industrial Unemployment or Urban Unemployment)
(ग) शिक्षित लोगों की बेरोजगारी अथवा सफेदपोश लोगों की बेरोजगारी (Educated Unemployment or White Collar Unemployment)
(क) ग्रामीण अथवा अदृश्य बेरोजगारी:
ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी और अल्प-रोजगार साथ-साथ विद्यमान होते हैं तथा दोनों में अन्तर करना कठिन होता है । शहरी क्षेत्रों में यह दीर्घकालिक अदृश्य बेरोजगारी के अतिरिक्त मौसमी तथा बारहमासी रूप में दिखाई देती है । यह भूमि पर बढ़ते हुये भारी दबाव, दस्तकारी और ग्रामीण कुटीर उद्योगों में गिरावट, कृषि के पिछड़ेपन और वैकल्पिक व्यस्ताओं की अनुपस्थिति के कारण ।
इसने बडे स्तर पर उपयुक्त श्रम तथा कृषि क्षेत्र में अदृश्य बेरोजगारी की समस्या में योगदान किया है । हाल ही के वर्षों में, कृषि में मशीनों के प्रयोग ने बेरोजगार श्रमिकों की संख्या में और भी वृद्धि कर दी है ।
(ख) ओद्योगिक अथवा शहरी बेरोजगारी:
औद्योगिक बेरोजगारी मुख्यतः ग्रामीण बेरोजगारी की एक है । भूमि पर जनसंख्या के बढते हुये दबाव के कारण, गांवों से जनसंख्या का एक बड़ा भाग नौकरी में शहरों में आ बसता है । ये लोग अशिक्षित तथा अप्रशिक्षित होते हैं । इस प्रकार के प्रवास से शहरों में श्रम शक्ति का आकार बढ़ जाना है जिसे बेरोजगारी श्रमिकों की फौज की संख्या और भी बढ़ जाती है ।
(ग) शिक्षित लोगों की बेरोजगारी अथवा सफेदपोश बेरोजगारी:
शहरी क्षेत्रों में शिक्षा की अधिक सुविधाओं के कारण एक विशेष श्रेणी उत्पन्न होती है और इस शिक्षित श्रेणी में बेरोजगारी की दर अशिक्षित में बेरोजगारी की दर से अधिक होता है । यह, कदाचित, इस कारण भी है कि तृतीयक क्षेत्र उतनी तीव्रता से नहीं बढ पाता जितनी तीव्रता से शहरी क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा प्राप्त होती है । शैक्षिक प्रणाली न केवल पुरानी हो चुकी है बल्कि कुनियोजन का शिकार भी है जो राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है ।
Essay # 3. बेरोजगारी के प्रभाव (Effects of Unemployment):
1. मानवीय साधनों की हानि (Loss of Human Resources):
बेरोजगारी की समस्या के कारण मानवीय साधनों की हानि होती है । श्रमिकों का अधिकतम समय रोजगार की खोज में नष्ट होता है ।
2. निर्धनता में वृद्धि (Increase of Poverty):
बेरोजगारी व्यक्ति को आय के स्रोतों से वंचित कर देती है । फलतः वह निर्धन हो जाता है । इसलिये बेरोजगारी निर्धनता को जन्म देती है ।
3. सामाजिक समस्याएं (Social Problem):
बेरोजगारी से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिसमें बेईमानी, जुएबाजी, रिश्वतखोरी, चोरी आदि सम्मिलित हैं । बेरोजगारी के परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा की हानि होती है ।
4. राजनैतिक अस्थिरता (Political Instability):
बेरोजगारी किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म देती है । बेरोजगार व्यक्तियों को समाज विरोधी तत्व सरलता से गुमराह कर सकते हैं । उनका प्रजातान्त्रिक मूल्यों तथा शांतिपूर्ण साधनों से विश्वास उठ जाता है । वह ऐसी सरकार को व्यर्थ समझते हैं जो उन्हें राय देने में असफल है ।
5. श्रम का शोषण (Exploitation of Labour):
बेरोजगारी की स्थिति में, श्रमिकों का अधिकतम सम्भव शोषण है । जिन श्रमिकों को कार्य मिल जाता है वह कम मजदूरी की विपरीत स्थितियों में कार्य करते हैं जिससे उनकी दक्षता प्रभावित होती है । संक्षेप में बेरोजगारी, आर्थिक शोषण, सामाजिक अव्यवस्था तथा राजनैतिक अस्थिरता का फल है । ऐसी स्थिति में प्रत्येक सरकार का उत्तरदायित्व बनता है कि वह बेरोजगारी को कम करने का प्रयास जुटाये एवं अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराये ।
Essay # 4. चौथी वार्षिक रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण रिपोर्ट (Fourth Annual Employment and Unemployment Survey Report):
चौथी वार्षिक रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण रिपोर्ट (2013-14), श्रम विभाग, भारत सरकार का श्रम और रोजगार मंत्रालय (Fourth Annual Employment and Unemployment Survey Report (2013-14) Labour Bureau, Ministry of Labour and Employment Government of India):
सभी राज्यों/केन्द्रीय शासित प्रदेश में 2013-14 में किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट सभी जलो को कवर करती है यह निम्न मुख्य खोजों को बताती है:
1. श्रम शक्ति और कर्मचारी जनसंख्या अनुपात (Labour Force and Worker Population Ratio):
श्रम शक्ति भागीदारी दर का अनुमान पूर्ण भारत के स्तर पर साधारण मुख्य स्थिति धारणा के तहत 52.5 प्रतिशत लगाया गया ।
कर्मचारी अनुपात दर (The Worker Population Ratio) का अनुमान UPS धारणा के तहत पूर्ण भारत के स्तर पर 49.9 प्रतिशत पर लगाया गया ।
रोजगार स्थिति के बारे में बढिया तस्वीर प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों या नियुक्त व्यक्तियों के वितरण को उनके रोजगार की प्रकृति के अनुसार देखना लाभकारी होगा । पूरे भारत के स्तर पर, 49.5 प्रतिशत व्यक्ति साधारण मुख्य स्थिति धारणा के तरह स्वयं नियुक्त है अनुमाति तौर पर आकस्मिक श्रम के रूप में 30.9 प्रतिशत पर है । केवल 16.5 प्रतिशत मजदूरी/वेतन अर्जक है और बाकी के 3.0 प्रतिशत को अनुबंध कर्मचारियों में कवर किया गया है ।
सर्वेक्षण के नतीजे दिखाते हैं कि व्यक्तियों की बहुसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में नियोजित है । कृषि, वन विभाग पालन के क्षेत्र के अधीन साधारण मुख्य स्थिति धारणा पर पूर्ण भारत में 46.9 प्रतिशत व्यक्ति अनुमानित नियुक्त है ।
केवल 60.5 प्रतिशत व्यक्ति जिनकी आयु 15 वर्ष और ज्यादा है जिन्हें 12 महीनों के लिए कार्य उपलब्ध अवधि के दौरान पूरे भारत के स्तर पर पूरे वर्ष कार्य प्राप्त करते थे । ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में, 53.2 प्रतिशत और 78.5 प्रतिशत क्रमवार है ।
5 प्रतिशत परिवारों में, 15 साल की आयु वाला कोई व्यक्ति नहीं था जो आकस्रिक मुख्य स्थिति धारणा है । 17 प्रतिशत परिवारों में केवल एक कर्मचारी है । 78 प्रतिशत परिवारों में कोई मजदूरी/वेतन कमाने वाले सदस्य नहीं थे । 17 प्रतिशत परिवारों में केवल एक मजदूरी/वेतन कमाने वाला सदस्य था ।
शहरी इलाकों में, 30 प्रतिशत परिवारों में केवल एक मजदूरी/वेतन कमाने वाला था जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में, यह 12 प्रतिशत था ।
2. नौजवान रोजगार-बेरोजगारी परिदृश्य 2013-14 (Youth Employment-Unemployment Scenario 2013-14):
विशेष आयु वर्ग के लिए श्रम शक्ति अनुमान नौजबानों को 15-17 आयु, 18-29 आयु और 30 की आयु को दिखाता है और यह दो धारणाओं पर आधारित है । ये दो धारणाएं-साधारण मुख्य स्थिति (Usual Principle Status) और साधारण मुख्य और सहायक स्थिति (Usual Principal and Subsidiary Status) धारणा है ।
सर्वेक्षण नतीजों के आधार पर, श्रम शक्ति भागीदारी दर 18-29 आयु के वर्गों के लिए अनुमानित पर 49 प्रतिशत है यह पूर्ण भारत स्तर पर साधारण मुख्य स्थिति धारणा पर आधारित है ।
कर्मचारी जनसंख्या अनुपात पूर्ण भारत स्तर पर साधारण मुख्य स्थिति धारणा पर आधारित 18-29 के वर्गों के लिए अनुमानित रूप से 42.7 प्रतिशत है । 18-29 आये के आयु वर्ग के लिए बेरोजगारी दर साधारण मुख्य स्थिति धारणा पर आधारित पूर्ण भारत स्तर पर 12.9 प्रतिशत पर है ।
3. शिक्षा, कौशल विकास और श्रम शक्ति 2013-14 (Education, Skill Development and Labour Force 2013-14):
15 वर्षों की आयु का इससे अधिक आयु वाली जनसंख्या जो वोकेशनल प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है या प्राप्त कर रही हो पूर्ण भारत स्तर पर अनुमानित 68 प्रतिशत पर है । ग्रामीण और शहरी इलाकों में यह 62 और 82 प्रतिशत पर है ।
15 वर्ष या इससे ज्यादा आयु वाले 76 प्रतिशत व्यक्तियों को पूर्ण भारत स्तर पर नियोजित किया गया जिन्होंने संदर्भ अवधि के दौरान वोकेशनल प्रशिक्षण को प्राप्त किया या कर रहे हैं । औरतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा लगभग 39 प्रतिशत ने विभिन्न क्षेत्रों में वोकेशनल प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद श्रम शक्ति में हिस्सा नहीं लिया ।
ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले बेरोजगारों की दर साधारण मुख्य स्थिति धारणा पर आधारित 14 प्रतिशत और 12 प्रतिशत है । जबकि अनपढ़ बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या 2 प्रतिशत से कम थी जो सर्वेक्षण नतीजों पर आधारित हैं ।
औपचारिक और अनौपचारिक वोकेशनल प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके । प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के सर्वेक्षण नतीजे अलग हैं । 6.8 प्रतिशत वोकेशनल प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले व्यक्ति और 2.8 प्रतिशत औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले और बाकी के 4 प्रतिशत को अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित किया गया ।
औपचारिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों का प्रतिशत अनुमानित रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 2.2 और 4.4 प्रतिशत है । अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों का प्रतिशत अनुमानित रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 4.0 और 3.8 था ।
अनौपचारिक प्रशिक्षण की दशा में, रोजगार के लिए प्रशिक्षित किए व्यक्तियों का प्रतिशत सीमांत रूप से 31 प्रतिशत पाया गया था जबकि औपचारिक रूप से रोजगार के लिए प्राप्त किए प्रशिक्षण में बेरोजगारी व्यक्तियों का प्रतिशत अनुमानित तौर पर 14.5 था ।
4. अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार और अनौपचारिक रोजगार 2013-14 की स्थितियां (Employment in Informal Sector and Conditions of Informal Employment 2013-14):
मालिकाना और सांझेदार उद्योगों का इकट्ठे नियोजित व्यक्तियों के 50 प्रतिशत से ज्यादा का हिस्सा है । अन्य शब्दों में, कृषि क्षेत्र और कृषि क्षेत्रों में कर्मचारियों के बीच, लगभग 52 प्रतिशत को अनौपचारिक क्षेत्र उद्योगों में कार्यकारी पाया गया ।
लगभग 39 प्रतिशत कर्मचारियों को मालिकाना उद्योग प्रकार में नियोजित किया गया जिसमें अनौपचारिक कर्मचारियों का उच्च अनुपात ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों दोनों में साझेदारी उद्योगों की तुलना में मालिकाना उद्योगों में जुड़े हुए थे । मालिकाना उद्योग में, लगभग 43 प्रतिशत पुरुष कर्मचारी 23 प्रतिशत महिला कर्मचारियों के विरुद्ध जुड़े हैं । जबकि सांझेदारी उद्योगों में, औरत कर्मचारियों (25 प्रतिशत) का उच्च अनुपात पुरुष कर्मचारियों (98 प्रतिशत) की तुलना में है ।
लगभग 93 प्रतिशत आकस्मिक कर्मचारियों का कोई लिखित कार्य अनुबंध नहीं है, जिसका अर्थ उनमें ज्यादा अनौपचारिक का होना है जिसमें अनुबंध कर्मचारियों को कृषि और गैर कृषि क्षेत्र में किसी सामाजिक सुरक्षा लाभों के लिए योग्य नहीं माना गया । ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा लाभों के लिए गैर-योग्यता का अनुपात शहरी क्षेत्रों की तुलना में (74.1 प्रतिशत) पाया गया, जिसका अर्थ ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च अनौपचारिक स्थितियों का होना है ।