Read this article in Hindi to learn about the phases and evaluation of white revolution.
श्वेत क्रान्ति के चरण (Phases of White Revolution):
दुध के प्राप्तिकरण (Procurement), प्रसंस्करण (Processing) तथा विपणन (Marketing) को सुगम बनाने तथा दुग्ध उत्पादकों के पशुओं का दुग्ध उत्पादन बढाने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए देश के प्रत्येक भाग में दुग्ध सहकारी समितियों की स्थापना एवं उनका विकास करने के उद्देश्य से इस योजना का शुभारम्भ 1970 में किया गया ।
इस कार्यक्रम को तीन चरणों में बांट कर प्रारम्भ किया गया:
1. स्वेत क्रान्ति-प्रथम चरण (Operation Flood-Phase First):
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संयुक्त राज्य विश्व खाद्य कार्यक्रम (U.N./W.F.R.) के द्वारा 1,26,000 टन सप्रेटा दुग्ध चूर्ण तथा 42,000 टन बटर आयल की आपूर्ति को सहमति के साथ यह चरण 1970 में शुरू किया गया । इस योजना का यूरोपीयन आर्थिक समुदाय (European Economic Community) के साथ गहरा सम्बन्ध रहा है ।
विश्व खाद्य कार्यक्रम (W.F.P.) के अन्तर्गत E.E.C. ने ही अधिकतम खाद्य सहायता प्रदान की है । इस योजना का उद्देश्य दुग्ध विपणन का आधुनिकीकरण करके तथा चार मेट्रोपोलिटन शहरों (मद्रास, बम्बई, कलकत्ता तथा दिल्ली) के दुग्ध विपणन को नियन्त्रित करने के लिए देश के 10 राज्यों में स्थित 13 दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों से दूध की आपूर्ति इन शहरों में करना था ।
इसके लिए आवश्यक था कि दुग्ध परिवहन के साथ-साथ दुग्ध ठोस पदार्थों के परिरक्षण का प्रबन्धन तथा आनन्द पद्धति पर दुग्ध सहकारिता का विकास किया जाये । आनन्द पद्धति का अर्थ किसानों के एक ऐसे संगठन से है जो उनके द्वारा उत्पादित दूध का प्राप्तिकरण (Procurement), प्रसंस्करण (Processing) तथा विपणन (Marketing) स्वयं करता हो ।
यह संगठन उनके द्वारा सामूहिक रूप से स्वीकृत कार्यान्वित तथा नियंत्रित होना चाहिए । इसके द्वारा वे दूध की गुणवत्ता के आधार पर अपने द्वारा उत्पादित दूध का उचित मूल्य प्राप्त करते हैं तथा उसका प्रसंस्करण करके स्वयं ही उसका विपणन करते है ।
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इसमें गाव के स्तर पर दुग्ध सहकारिता जिला स्तर पर दुग्ध संघ तथा राज्य स्तर पर दुग्ध फैडरेशन बनाये गये । इस प्रकार 3 स्तरों (Three Tier System) का यह संगठन बनाया गया ।
गांव के स्तर पर दुग्ध एकत्रीकरण (Milk Collection), जिला स्तर पर दुग्ध प्रसंस्करण (Milk Processing) तथा विपणन (Marketing) एवं राज्य स्तर पर प्रदेश में दुग्ध व्यवसाय सम्बन्धी नीति निर्धारण तथा इस व्यवसाय पर नियन्त्रण के लिए दुग्ध उत्पादकों में से तीनों स्तरों पर चुनाव द्वारा संगठन बनाये गये ।
इस प्रकार आनन्द पद्धति सहकारिता में नीचे से ऊपर तक तीनों स्तरों पर नियन्त्रण स्वयं उत्पादकों का ही होता है । अब देश में लगभग 70,000 दुग्ध सहकारी समितियां हैं जिनमें सदस्य संख्या लगभग 10 मिलियन है (Indian Dairyman, 49,5,97)
योजना के इस चरण में दुग्ध परिवहन के लिए आनन्द से दिल्ली व मुम्बई, जलगाँव से मुम्बई घुले से मुम्बई तथा इरोडे से मद्रास के मध्य रेल टैकर्स चलाये गये । राष्ट्रीय मिल्क ग्रेड (National Milk Grid) उद्देश्य से दिल्ली, कलकत्ता व मद्रास में संग्रह टैंकों का निर्माण भी किया गया ।
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2. श्वेत क्रान्ति द्वितीय चरण (Operation Flood-Phase IInd):
O.F.I. में कार्य को आधार मान कर आगे बढाने के लिए 1981 से 1985 के मध्य श्वेत क्रान्ति का द्वितीय चरण चलाया गया । छठी पंच वर्षीय योजना में इस प्रोग्राम पर रु. 273 करोड की धन राशि का आबंटन किया गया जिसमें U.S. $150 मिलियन की सहायता विश्व बैंक से प्राप्त हुई तथा शेष यूरोपियन आर्थिक समुदाय (E.E.C.) से पदार्थ सहायक के रूप में प्राप्त पदार्थों से पूरे किये गये । इस प्रोग्राम को लागू करने का दायित्व N.D.D.B. तथा I.D.C. को समान रूप से सौंपा गया ।
इस योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड के द्वारा लगभग 15 मिलियन जनसंख्या वाले 148 कस्बों व शहरों में 1985 तक 136 ग्रामीण दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों से दूध एकत्र करके आपूर्ति करना था । कार्यक्रम का एक उद्देश्य यह भी था कि इसके अन्तर्गत 10 मिलियन किसान परिवारों तथा 15 मिलियन दूधारू पशुओं को लाभ पहुंचाना है । विभिन्न राज्यों में आनन्द पद्धति पर आधारित दुग्ध समितियों का गठन तथा विकास करना भी इसके उद्देश्यों में प्रमुख था ।
1985 में OF-II की समाप्ति के समय यह योजना देश के 136 दुग्ध क्षेत्रों में (290 छोटे कस्बों में) किर्यान्वित थी । O.F.II योजना काल में 244 डेरी संन्यत्र काल (Dairy Plants) 244 संयन्त्र (Dairy Plants) देश में कार्य कर रहे थे । इनमें निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र (Private and Public Sector) के संयन्त्र भी सम्मिलित हैं ।
3. स्वेत क्रान्ति-तीसरा चरण (Operation Flood-IIIrd Phase):
भारत सरकार ने जून 1987 में रु. 681 करोड की यह योजना अनुमोदित की । यह सातवीं पच वर्षीय योजना के मध्य लागू की गयी । इसके लिए विश्व बैंक तथा यूरोपियन आर्थिक समुदाय (World Bank and EEC) ने क्रम आर्थिक मदद तथा पदार्थ सहायता के रूप में वर्ष 1987 से 1994 तक के लिए रु 915 करोड का अनुमोदन किया ।
विस्व बैक ने इस योजना का नाम परिवर्तन करके World Bank’s National Dairy Project-II (विश्व बैंक की राष्ट्रीय दुग्ध परियोजना-द्वितीय) कर दिया है । इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य द्वितीय चरण मे दुग्ध प्राप्ति विपणन के क्षेत्र में वनाये गये आधार का अग्रसर करना है ।
कार्यक्रम का एक उद्देश्य ग्रामीण दुग्ध प्राप्ति को 18.2 MLPD तक बढाना भी है जो 6.7 मिलियन दुग्ध उत्पादको के दूध से वर्ष 1994 तक पूरा करना था । साथ ही 1994 तक 13 MLPD दूध की बिक्री शहरी क्षेत्र में करने का उद्देक्ष्य भी था । एक प्रमुख उद्देश्य यह भी था कि दूध के मूल्य के रूप में रु. 20 मिलियन सहकारी प्रणाली द्वारा किसानों को बांटा जाये ।
इस परियोजना के लिए विश्व बैंक ने U.S. $360 मिलियन तथा E.E.C. ने 75,000 टन वसा रहित दूध चूर्ण (SMP) एवं 25,000 टन Butter Oil पदार्थ सहायता के रूप में प्रदान करने की सम्मति प्रदान की । OF IInd तक दुग्ध परिवहन हेतु चालू किये गये 98 रेल टैंकर्स की संख्या बढा कर 192 कर दी गयी जो N.M.G. योजना के अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में दूध की अर्शित के लिए प्रयोग हो रहे है ।
रोड टैंकर्स की संख्या 1987 में 862 थी जो अब बढकर लगभग 1080 तक पहुंच चुकी है । शुष्क दुग्ध चूर्ण संग्रहण क्षमता 11,300 टन तथा Butter Oil एवं मक्खन सग्रहण क्षमता को 2200 टन तक विकसित किया जा चुका है ।
श्वेत क्रान्ति का मूल्यांकन (Evaluation of White Revolution/Operation Flood):
प्राचीन काल में देश में पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध था । पशुओं की उत्पादन क्षमता भी अच्छी थी परन्तु बीच में महाभारत काल के बाद देश में शिक्षा की काफी कमी हो गयी अत पशुओं की उत्पादन क्षमता निम्न श्रेणी के प्रबन्धनके कारण बहुतकम हो गयी ।
जैसे-जैसे शिक्षा का विकास हुआ दुग्ध उत्पादन व्यवस्था की तरफ ध्यान दिया गया परन्तु ब्रिटिश शासन काल में अयेजों का उद्देश्य देश से पैसा कमाना रहा है न कि देश का विकास करना । अतः उस काल में दुग्ध व्यवसाय विकास पर भी विशेष ध्यान नही गया ।
आजादी के तुरन्त बाद दूध की कमी को दृष्टिगत रखते हुए दुग्ध उत्पादन बढाने हेतु कई कार्यक्रम बनाये व चलाये गये । श्वेत क्रान्ति भी इन कार्यक्रमों में से ही एक है । इस योजना को तीन चरणों में पूरा किया गया । इस योजना काल में वास्तव में दुग्धोत्पादन, प्रति व्यक्ति उपभोग की मात्रा, संसाधन व संग्रहण क्षमता में काफी उन्नति हुई ।
इस योजना का मूल्यांकन करने हेतु निन्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है:
(क) योजना की आवश्यकता (Need of the Programme):
देश की आजादी से पूर्व दूध उत्पादन व प्रति व्यक्ति दुग्ध उपभोग के कड़े देश को विभाजन के कारण तुलनात्मक दृष्टि से नहीं देखे जा सकते हैं । देश में 1951 में दूध का उत्पादन 16.93 मिलियन टन था जो 1961 में बढ्कर 19.84 मिलियन टन तथा 1971 में 20.79 मिलियन टन हुआ ।
वृद्धि की यह दर पर्याप्त कम था । इसके अतिरिक्त देश की आबादी दूध में हुई बढौतरी की तुलना में काफी अधिक बढी तथा प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 1951 की 1971 पाम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से घट कर 1971 में 104 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन रह गयी ।
1961 में यह मात्रा 124 याम प्रति व्यक्ति प्रति दिन थी । इस प्रकार प्रतिदिन प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता की घटती दर से सरकार चिन्तित हुई तथा एक ऐसे कार्यक्रम की आवश्यकता महसूस की गयी जो दुग्ध उद्योग का चहूंमुखी विकास कर सके यद्यपि दुग्ध उत्पादन में बढौतरी हेतु 1951 से 1971 के मध्य भी सरकार ने कई योजनाए लागू की थी जिनमें मूल ग्राम योजना (Key Village) तथा सघन पशु विकास योजना (Intensive Cattle Development Project) प्रमुख थी इनके अतिरिक्त शहरी दुग्ध आपूर्ति योजना तथा दूग्ध बस्ती योजना भी शहरों में दूध की उपलब्ध मात्रा को बढाने के लिए चलाई गयी ।
परन्तु ये योजनाएँ डेरी उद्योग का पूर्ण विकास नहीं कर सकीं । अतः 1970 में श्वेत क्रान्ति कार्यक्रम (Operation Flood Programme) के नाम से इस कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया ।
(ख) योजना की उपलब्धियां (Achievements of the Programme):
इस योजना की उपलब्धियों को कम वार निन्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है:
1. देश में दूध का उत्पादन 1970 के 20.79 मिलियन टन प्रति वर्ष से बढकर 1996 में लगभग भाग 70 मिलियन टन प्रति वर्ष हो गया है । इस थोड़े समय में लगभग 3.5 गुना दुग्ध उत्पादन वृद्धि इस कार्यक्रम के कारण ही सम्भव हो पायी है । आज भारत का दुनिया में दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान है तथा 1999 से भारत दुनिया का सर्वाधिक दूध उत्यादन करने वाला देश बन गया है ।
2. दुग्ध उत्पादन में वृद्धि की दर जनसंख्या में वृद्धि की दर से अधिक रही है अतः प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 1970 की 104 ग्राम से बढ कर 1996 में लगभग 202 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन तक पहूंच गयी है ।
3. दुग्ध उद्योग का संगठित क्षेत्र (Organized Sector) 1970 में कुल उत्पादन का लगभग 5 प्रतिशत दूध प्राप्त कर रहा था जब कि अब यह मात्रा लगभग 17 प्रतिशत से ऊपर तक जा चुकी है ।
4. दुग्ध उद्योग में लगा सरकारी तन्त्र 1972 में उत्पादन का 1.03 प्रतिशत दूध का प्रसस्करण कर रहा था जबकि श्वेत क्रान्ति के मध्य यह 8.00 प्रतिशत से अधिक तक जा चुका है ।
5. सन् 1970-71 में सहकारी समितियों में मात्र 0.2 मिलियन सदस्य थे जबकि 1996 में यह सख्या बढकर लगभग 10 मिलियन तक पहूँच गयी थी ।
6. श्वेत क्रान्ति के समय दश में सन्तुलित पशु आहार (Balanced Cattle Feed) की उत्पादन क्षमता बढी है । यह क्षमता वर्तमान में 4 MT/Day से भी अधिक है जबकि 1980 में यह 2 MT/Day था ।
7. राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड (National Milk Grid) के अन्तर्गत लगभग 15 मिलियन जनसंख्या वाले 148 कस्बों व शहरों में 136 ग्रामीण दुग्ध उत्पादन क्षेत्रों से दूध एकत्र कर वितरित किया । दूध के परिवहन के लिए रेल टैंकर्स तथा रोड टैंकर्स की सख्या में काफी वृद्धि हुई ।
8. योजना काल में सहकारी समितियों की संख्या बढी है जो अब लगभग 70,000 तक पहूँच चुकी है । दूध का प्राप्तिकरण मूल्य जो सहकारी संघों/समितियों द्वारा किसानों को दिया जा रहा है, पूरे देश में लगभग 11 प्रतिशत वार्षिक औसत गति से बढ़ रहा है ।
9. अब देश में दुग्ध चूर्ण संग्रहण क्षमता 11,300 टन तथा मक्खन संग्रहण क्षमता 2200 टन तक बढाई जा चुकी है ।
10. राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड यौजना के अन्तर्गत लगभग 155 शहरों को ग्रामीण क्षेत्र से सडकों या रेल मार्गों द्वारा जोडा गया है ।
11. देश में दुग्ध उत्पादन स्थिर रूप से लगभग 4 प्रतिशत वार्षिक गति से लगातार बढ रहा है ।
12. दुग्ध उद्योग का आर्थिक क्षेत्र में योगदान कुल कृषि अर्थव्यवस्था (Agriculture Economy) का 26 प्रतिशत तक पहूँच गया है । इस उद्योग का G.D.P. में 8 प्रतिशत का योगदान है ।
(ग) कार्यक्रम की सीमाएं (Limitations of Programme):
इसमें सन्देह नहीं है कि श्वेत क्रान्ति योजना की उपलब्धिया काफी रही हैं परन्तु व्यवहारिक रूप से योजना की अनेक सीमाएं भी रही है ।
इनका सक्षिप्त विवरण निन्नलिखित प्रकार से है:
1. श्वेत क्रान्ति का उद्देश्य देशव्यापी क्रान्ति लाना था परन्तु यह क्रान्ति केवल चार महानगरों (दिल्ली, बम्बई, मद्रास, कलकत्ता) तक ही सीमित रह गयी । इसका कार्य क्षेत्र तो अवश्य 10 राज्यों तक रहा परन्तु दूध को व्यवहार केवल इन चार महा-नगरों तक सिमट कर रह गया ।
2. इस योजना की सबसे बड़ी सीमा राह रही है कि यह पूरा प्रोयाम खाद्य सहायता (Food Aid) पर निर्भर करता था । दुग्ध पदार्थों का उपहार स्वरूप मिलने से कुछ समय तक तो दुग्ध उपलब्धता बढी परन्तु यह लम्बे समय तक नहीं चल पायेगी ।
हमें खाद्य सहायता के रूप में मिलने वाले सप्रेटा दुग्ध चर्ण (SMP) तथा बटर आयल (Butter Oil) पर निर्भर न रहकर अपना उत्पादन बढाना चाहिए । हालांकि 1960-70 के दशक में आयातित SMP की मात्रा 37,000 टन प्रति वर्ष से घट कर 1970-88 के समय में 20,000 टन प्रति वर्ष रह गयी थी तथा दुग्ध उपलब्धता प्रति वर्ष बढ़ रही है ।
3. राष्ट्रीय नमूना सर्वे (National Sample Survey) की 1975 की रिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष का दूध का उत्पादन 20 मिलियन था जबकि N.D.D.B के आंकडे 25 मिलियन टन बता रहे थे ।
4. योजना को पूरे देश में लागू करना था परन्तु यह योजना 10 राज्यों तक ही सीमित रही । कुल 4,12,000 गावों को स्वेत क्रान्ति के कार्यक्षेत्र में लिया गया परन्तु वास्तव में केवल 9,000 गाँव ही लाभान्वित हो पाए जबकि देश में 5,76,000 गाँव है ।
इन 10 राज्यों के 9,000 गांवों में से भी कार्यक्रम मात्र लगभग 3,000 गावों में पूर्णतया लागू हुआ । इन 3000 गांवों में 2642 गांव केवल 2 राज्यों में आते है (गुजरात के 1202 तथा तमिलनायडु के 1440 गांव) । शेष 358 गाँव बाकी 8 राज्यों से लिये गये । इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया की यह योजना देश की न होकर केवल तमिलनाडु तथा गुजरात के लिए हो गयी ।
5. योजना काल में सप्रेटा दुग्ध चूर्ण तथा Butter Oil के मिश्रण को प्रसंस्करित करने के लिए बड़े-बड़े डेरी संयन्त्र (Dairy Plants) लगाये गये । इन दुग्ध पदार्थों का उत्पादन देश में पर्याप्त मात्रा में नहीं है अतः इन यत्रों को चलाने के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड सकता है ।