महिला सशक्तिकरण योजनाएं | Women Empowerment Schemes in India in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about the three women empowerment programmes initiated in India. The programmes are:- 1. महिला विकास कार्यक्रम (Women Development Programme) 2. ग्रामीण महिला शिशु विकास कार्यक्रम (Rural Women Child Development Programme) 3. समेकित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Service).

आज के दौर में महिलाएं सामाजिक रूप से सुरक्षित नहीं हैं । आए दिन हम टेलीविजन, समाचार पत्रों आदि में उनसे हो रही छेड़छाड़ व उनके बलात्कार संबंधी खबरें देखते व पड़ते हैं जिससे उनकी दयनीय स्थिति का पता चलता है ।

महिलाएं आज भी जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव सहने को मजबूर हैं चाहे वह कार्यालय हो या घर । विकासशील देशों में डस प्रकार की समस्या अधिक देखने को मिल रही है । लिंग भेद, शारीरिक शोषण आदि विभिन्न संस्कृतियों एवं राष्ट्रों में विभिन्न रूपों में प्रचलित हैं ।

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महिला एवं शिशु विकास मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ें चौंकाने वाले हैं । इसके अनुसार अपहरण, बलात्कार, दहेज, घरेलू हिंसा व मारपीट, मानसिक प्रताड़ना आदि की संख्या बहुत अधिक है और महिलाओं की दशा सुधारने हेतु सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है ।

ऐसे में संवैधानिक एवं सामाजिक सुरक्षा का ध्यान रखा जाना अति आवश्यक है । महिलाओं की शिक्षा पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए । आज समाज में ‘महिला कोष’ व अन्य महिला समूह सक्रिय हैं जो इनकी दशा सुधारने की दिशा में कार्यरत हैं ।

महिलाओं की दशा पर नजर रखने हेतु महिला एवं शिशु विकास मंत्रालय को स्थापित किया गया है । महिलाओं को समाज में समान दर्जा और प्रतिष्ठा दिलाने के लिए सामाजिक परिवर्तन की जरूरत है । महिलाएँ विकास व पूँजीवाद से भी पीड़ित हैं ।

पूँजीपतियों के शोषण के रवैये का प्रभाव महिलाओं के सांस्कृतिक, सामाजिक व घरेलू जीवन पर पड़ा है । जंगलों के काटे जाने और विस्थापन के बाद पुरुष वर्ग शहरों में रोजगार पा लेता है, लेकिन महिलाएं गांवों में ही जीने को मजबूर हैं ।

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खनन आदि में भी पुरुषों को प्रधानता दी जाती है । महिला एवं खनन के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क महिलाओं के समान अधिकारों हेतु संघर्ष कर रहे हैं । विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के अतिरिक्त अनेक समूह जैसे ‘महिला मंडल’ महिलाओं में नई चेतना जगा रहे है और उनके अधिकारों हेतु लड़ रहे हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 1975 से 1985 के दशक को ‘संयुक्त राष्ट्र का महिला दशक’ की संज्ञा दी गई । महिलाओं पर होने वाले शोषण के विरुद्ध 1979 में अन्तर्राष्ट्रीय बैठक महिलाओं के अधिकारों व समानता की दृष्टि से महत्वपूर्ण पहल रही है । यही जरूरी है कि महिलाओं हेतु इन प्रयासों के अतिरिक्त शिक्षा कि उचित व्यवस्था की जाए ।

1. महिला विकास कार्यक्रम (Women Development Programme):

राजस्थान सरकार के एक घोषित कार्यक्रम के रूप में अनेक विद्यमान विकास योजनाओं के एक प्रकरण के रूप में महिला विकास किया गया । इसमें एक स्पष्ट मान्यता को पंजीकृत किया गया कि नया आगम महिलाओं के विकास हेतु आवश्यक है । इस तत्व के बावजूद भी महिलाओं के लाभों को बांटने हेतु कई प्रयत्न किए जाने चाहिए । इससे यह जाहिर था कि उनकी दशा निरन्तर अधीनता व वंचित रहने की बनी हुई है ।

महिला विकास कार्यक्रम का प्रस्ताव बिन्दु उनकी जनन यंत्र की भूमिका से ध्यान हटाने के रूप में देखा जा सकता है जो महिलाओं की और सहानुभूति कल्याण के उद्देश्यों के रूप में उन्हें संगठित करने का एक गंभीर प्रयत्न था । अर्थात् एक ऐसी दृश्य भूमिका को दोहराया गया ।

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जिसमें विकास की प्रक्रिया में पुरुषों के साथ समान भागीदारी तथा समानता के अर्थ की सुस्पष्टता को रोकने वाले कुछ अवरोधों को हटाने में सहायक होने की एक क्रमिक मान्यता थी जिसके द्वारा तथ्य को अनुभव किया गया कि पुरुष आज तक भी परिवार समाज तथा सरकार में महिला के विकास हेतु उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है ।

सभी स्तरों पर महिलाओं के इन उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने की जरूरत महसूस की जाने लगी । इन दोनों उपागमों को साथ-साथ रखने हुए महिला विकास कार्यक्रम का प्रधान लक्ष्य महिला की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में एक परिवर्तन लाने के क्रम में शिक्षा व प्रशिक्षण सूचना का प्रसारण किया गया ।

लक्ष्य एक उद्देश्य (Goal a Purpose):

महिलाओं के विकास हेतु नीति-निर्माण की कार्यात्मकता महिला विकास का प्रमुख लक्ष्य है । यह इस तथ्य की और संकेत करता है कि अधिकांश सरकारी योजनाएं उपलब्ध यांत्रिकी की कमी के कारण महिलाओं को प्राप्य नहीं हैं तथा इस तरह की यांत्रिकी को लचीले तथा विभेदीकृत ढांचे द्वारा भूमिगत स्तर पर महिलाओं की प्रभावित भागीदारी की पृष्ठभूमि में सृजित किया जा सकता है ।

महिला विकास कार्यक्रम इस तथ्य की ओर भी इशारा करता है कि बहुत लम्बे समय तक पुरुषों ने परिवार, सरकार व समाज में महिलाओं के विकास का उत्तरदायित्व को सुनिश्चित किया है एवं सभी स्तरों पर महिलाओं की इन जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करने के क्रम में आवश्यक धोखेपूर्ण परिवर्तन किए हैं ।

महिला विकास कार्यक्रम के विस्तृत उद्देश्यों का दूसरा प्रकरण महिलाओं के विरूद्ध विभेदीकरण, महत्वहीनताओं से स्पष्ट संबद्ध करने हेतु व्यक्ति समूहों तथा संस्थाओं के सृजन व प्रोत्साहन की जरूरत है । इस अर्थ में महिला विकास कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को सूचना प्रसारण, शिक्षा व प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त करना तथा उन्हें उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति की पहचान व सुधार के योग्य बनाना है ।

इन तमाम लक्ष्यों के साथ महिला विकास कार्यक्रम के कुछ विशिष्ट उद्देश्यों पर नीचे प्रकाश डाला गया है:

1. इस तथ्य को मान्यता प्रदान करना कि बाल कल्याण महिला विकास से संबद्ध है, असंबद्ध नहीं है । महिलाओं को बच्चे के जन्म से पूर्व व जन्म के पश्चात की सेवाओं तथा बाल सुरक्षा के संदर्भ में महिलाओं को सूचित, शिक्षित व प्रशिक्षित करना ।

2. जनसंख्या के आकार के आधार पर महिलाओं को यह सीखने योग्य बनाने हेतु एक केन्द्र स्थापित करना कि वे किस प्रकार स्वयं की तथा अपने परिवार की बेहतर देखभाल कर सकती हैं तथा अपने आर्थिक स्तर को सुधार सकती हैं ।

3. इस तथ्य की तरफ संकेत करना कि महिलाओं की समस्याएं पहले की अनेक स्वैच्छिक संस्थाओं, समूहों तथा व्यक्तियों द्वारा स्पष्ट की जा चुकी हैं, उनके लिए वित्तीय व सामग्री संबंधी समर्थन का विस्तार करना ।

4. अनेक महिला विकास योजनाओं की प्रगति का क्रियान्वयन व पुनरावलोकन उसी प्रकार करना जिस प्रकार राज्य में अन्य संबंधित योजनाओं व कार्यक्रमों में महिला विकास के तत्वों का किया जाता है ।

5. उन कार्यक्रमों का परिचय कराना जिनका महिलाओं के विकास हेतु प्रत्यक्ष व निर्णायक महत्व हो तथा महिलाओं के लाभ हेतु इन कार्यक्रमों के प्रचार हेतु यांत्रिकी का निर्माण करना ।

6. यह सुनिश्चित करना कि महिलाओं के विकास से संबंधित कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में उन निर्धन समूहों व महिलाओं के परिवारों पर स्पष्ट प्रकाश डाला गया है जो सामाजिक अत्याचार व शारीरिक अक्षमता के कारण अयोग्यता की शिकार हुई हैं ।

7. पर्यवेक्षकीय तथा सह-अस्तित्वपूर्ण ढांचों की महत्ता के विचार में एक यंत्र की रचना करना जो आधारभूत केन्द्रों का संचालन, समर्थन व मूल्यांकन करेगा तथा अनेक सरकारी संस्थाओं, साख संस्थाओं, स्वैच्छिक संस्थाओं इत्यादि के समर्थन की सुरक्षा करेगा ।

उपरोक्त वर्णित बिन्दुओं में से एक बिन्दु यह स्पष्ट करता है कि जो नीति रूपरेखा में भी दोहराया जाता रहा है कि अनेक कार्यक्रम हैं जिनका प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उद्देश्य महिलाओं की समस्याओं में सुधार लाना है, महिला विकास कार्यक्रम में इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के उत्तरदायित्व का उद्देश्य शामिल नहीं है । यह कार्यक्रम येन-केन प्रकारण इन कार्यक्रमों के प्रयोगों के स्पष्टीकरण तथा प्रभावशाली नियमन से महिलाओं को वास्तविक रूप से विकसित किया जा सकेगा ।

कार्यक्रम के क्षेत्र (Field of Program):

कार्यक्रम के क्षेत्र नीति रूपरेखा के भाग 1 व भाग 2 में वर्ण योजना के रूप में सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्या के विचार को दृष्टिगत रखते हुए, तीन वृहद क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रस्ताव किया गया है । शिक्षा तथा प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, पोषण तथा परिवार कल्याण व रोजगार तथा आर्थिक विकास । ये क्षेत्र नीति रूपरेखा के भाग 3 में वर्णित रणनीति व उपागम को वृहद् रूप से अनुकूल बनाते हैं ।

कार्यक्रमों से संबंधित कुछ विस्तृत बिन्दु जिन्हें इसमें शामिल किया गया है, इस प्रकार होंगे:

i. शिक्षा व प्रशिक्षण (Education and Training):

1. लड़कियों हेतु अनौपचारिक शिक्षा ।

2. युवक नेतृत्व प्रशिक्षण (मनोरंजन व खेलकूद में) ।

3. साक्षरता व सामान्य प्रौढ़ शिक्षा ।

4. स्वरोजगार हेतु दीर्घकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम व उद्यमता ।

5. प्रदत्त सहायक व्यवसायों हेतु कौशल प्रशिक्षण ।

6. शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा सहाकारी संघों इत्यादि में सामुदायिक श्रमिक तैयार करने हेतु ग्रामीण महिलाओं हेतु संक्षिप्त पाठ्यक्रम ।

7. पारिवारिक व्यवसायों में दक्षता में सुधार हेतु प्रशिक्षण पाठ्यक्रम ।

ii. स्वास्थ्य पोषण व परिवार कल्याण (Health Nutrition & Family Welfare):

1. बीमार महिलाओं व बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी नियमित जांच की व्यवस्था करना तथा मध्यस्थ के रूप में कार्य करना ।

2. संबंधित पोषण कार्य जैसे सब्जियों के बगीचे व फलों के वृक्ष लगाना ।

3. सफाई एवं आरोग्य गतिविधियों ।

4. प्राथमिक स्वास्थ्य सुरक्षा पोषण व परिवार कल्याण के प्रति समझ पैदा करना ।

5. रोग मुक्तिकरण व अन्य रोकथाम के कार्यक्रमों का संगठन ।

6. परिवार कल्याण गतिविधियों में सहायता संगठित करना ।

iii. रोजगार व आर्थिक विकास (Employment and Economic Development):

1. आश्वासित विपणन के आधार पर स्व-रोजगार कार्यक्रमों का प्रारम्भ ।

2. विद्यमान परिस्थितियों से उत्पादन में सुधार हेतु उत्पादन योजनाएं तैयार करना ।

3. अनेक सरकारी या अन्य कार्यक्रम के माध्यम से पूर्णकालीन या अंशकालीन रोजगार की सुरक्षा ।

4. वाणिज्यिक बैंकों व सहकारी संस्थाओं के माध्यम से सहायक व्यवसायी हेतु साख प्रदान करना ।

चूंकि उपर्युक्त योजनाओं में से कुछ कार्यक्रम के क्षेत्र से संबंध रखते हैं, अत: महिला विकास कार्यक्रम के तहत क्षेत्र कार्यात्मक व्यवस्थाओं के साथ अनेक

विद्यमान योजनाओं से संबद्ध करने हेतु महत्वपूर्ण हैं ।

iv. संगठनात्मक ढांचा (Organizational Structure):

1984 के प्रारम्भ में महिला विकास कार्यक्रम हेतु निम्नलिखित संगठनात्मक ढांचा अपनाया गया जिसमें उस औपचारिक नमूने को जारी रखा है जिसके चारों और महिला विकास कार्यक्रम अपनी गतिविधियों का संपादन करता है ।

v. ग्राम स्तर (Village Level):

प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक प्रशिक्षित ग्राम स्तर कार्यकर्त्री होती है । जिसे साथिन कहते हैं जो ग्राम पंचायत के गांवों में से किसी भी गांव को ही सकती है । साथिन ग्राम स्तर पर महिला मंचों के निर्माण हेतु उत्तरदायी हैं ।

वह अन्य आस-पास की ग्राम पंचायतों व अन्य साथियों के साथ संबद्ध होकर कार्य करती है । 10 ग्राम पंचायतों की 10 साथिनों का समूह एक प्रचेता द्वारा समन्वित होता है ।

vi. ब्लॉक स्तर (Block Level):

प्रचेता जो कि ब्लॉक स्तर की गैर-सरकारी कार्य प्रणाली है, साथियों को समर्थन व निर्देशन प्रदान करता है । वह जिला स्तर की भी संचार संबंध प्रदान करती है ।

vii. जिला स्तर (District Level):

जिला स्तर पर जिला महिला विकास संस्था जिलाधीश की अध्यक्षता में है । प्रत्येक जिला महिला विकास संस्था का एक योजना निर्देशक होता है जिसे योजना अधिकारी द्वारा सहायता प्रदान की जाती है ।

जिला स्तर पर तकनीकी साधन समर्थन सूचना विकास तथा संसाधन संस्था (इडार) द्वारा प्रदान किया जाता है । ये स्वैच्छिक संस्थाएं प्रौढ़-शिक्षा तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत हैं ।

viii. राज्य स्तर (State Level):

राज्य स्तर पर जिला स्तरीय (सूचना विकास व साधन संस्था) राज्य स्तरीय इडाराज द्वारा समन्वित है । महिला विकास कार्यक्रम के निर्देशक कार्यक्रम के सबसे बड़े अधिकारी व नियंत्रक होते हैं । कार्यक्रम के मूल्यांकन व नेतृत्व को विकास अध्ययन संस्थान, जयपुर द्वारा सुविधाजनक बनाया गया है ।

साथिन की भूमिका ग्रामीण जीवन की कमजोरियों व शक्ति के अध्ययन विश्लेषण व सर्वेक्षण (विशेष तौर पर महिलाओं व बच्चों की समस्याओं के संदर्भ में) हेतु ग्रामीण महिलाओं के साथ घनिष्ठ रूप से कार्य करने की है ।

प्रचेताओं की भूमिका प्राथमिक तौर पर साथियों को समुदाय के साथ उनके कार्य करने में सहायता प्रदान करना तथा दोनों ओर से सूचना का नियमित प्रवाह बनाकर जिला महिला विकास संस्था के साथ संबद्ध कर संचार व्यवस्था को स्थापित करने की है ।

योजना निर्देशक की भूमिका उन अनेक सरकारी विभागों, उन संस्थाओं के साथ एक अनौपचारिक सहयोगपूर्ण संबंध स्थापित करने की है जो महिला विकास कार्यक्रम में सहायक हो सकते हैं । यह ग्राम स्तरीय व ब्लॉक स्तरीय समस्त गतिविधियों की भी एक सामान्य समर्थक के रूप में देखभाल करेगा ।

इडारा जिला महिला विकास संस्था को तकनीकी प्रशिक्षण, समर्थन प्रदान कर रही है । यह महिला विकास कार्यक्रम की कार्यात्मकता में दोहराए गए दृश्य-पटल हेतु नई सामग्री का निर्माण कर रही है ।

महिला विकास कार्यक्रम की विशेषताएं (Features of Women’s Development Programme):

महिला विकास कार्यक्रम की विशेषताओं पर नीचे प्रकाश डाला गया है:

1. महिला मंचों के निर्माण का कार्य गांवों में साथित के माध्यम से किया जाता है । जिनके मूल्यांकन हेतु समर्थित तंत्र ‘जाजम’ है जो कि ग्राम स्तरीय मासिक सभा (मीटिंग) का नाम है ।

वे आधारभूत स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, रोग-मुक्तिकरण, मजदूरी के ढांचे, रोजगार के अवसर, जल, ईंधन की नीति इत्यादि संबंधी सूचनाएं प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते हैं ।

2. इन सूचनाओं का परिमार्जन निदेशक द्वारा प्रचेताओं, जिला महिला विकास संस्था नियोजक तथा निदेशकों इत्यादि के माध्यम से बाद के कार्य हेतु किया जाता है ।

3. इडारा कार्य के तहत् सूचना प्रवाह प्रणाली को निरन्तर बनाए रखते हैं । ‘ज्ञान’ के रूप में सूचना जिसकी सभी स्तरों पर जरूरत है ।

साथिनों की गतिविधियों को ग्रामीण स्तर पर ग्रामीण महिलाओं को स्वयं उनके संबंधों को पहचानने के योग्य बनाने हेतु विचारत: अपरिभाषित छोड़ा गया है । निरन्तर प्रशिक्षण तथा अनुकूलीकरण जो इडारा के माध्यम से प्रदान किया जाता है, साथिनों की उनके कार्य हेतु विशिष्ट रण-कौशलों को हल करने में सहायक होता है ।

इस विधि द्वारा विभेदित क्षेत्रों, न्यूनतम मजदूरी भूमि आवंटन तथा श्रमिकों आदि में निर्णय-प्रक्रिया को प्रभावित करने योग्य बनी है । इस कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित प्रत्येक जिले में 100 महिला विकास केन्द्रों की स्थापना का प्रावधान रखा गया ।

ये प्रावधान भी किये गये कि महिला विकास केन्द्र दस के समूहों में स्थापित किये जाएंगे । दस महिला विकास केन्द्रों के प्रत्येक समूह हेतु एक पर्यवेक्षक होगा जिसे प्रचेता कहा जाएगा ।

एक प्रचेता की नियुक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्णकालिक रोजगार के आधार पर महिला श्रेणी से ही की जाएगी । वे अध्यापक महिला स्वास्थ्य निर्देशक ANMs, LNEOs, ग्राम सेविकाएं इत्यादि हो सकती हैं ।

उसकी नियुक्ति के बाद एक प्रचेता महिला विकास केन्द्र को धीरे-धीरे आयामीय आधार पर इस उद्देश्य के आधार पर व्यवस्थित करेगा कि सभी दस महिला विकास केन्द्र उसकी नियुक्ति से 6 से 9 माह की अवधि में स्थापित किए जाएं ।

जिला स्तर पर एक जिला महिला विकास संस्था (DWDA) जिलाधीश के सभापतित्व में स्थापित करने का प्रावधान रखा गया । यह संस्था एक पंजीकृत संघ होगा तथा स्वायत्त रूप में कार्य करेगी ।

इस विकास संस्था के सदस्यों में कुछ कार्यालय संबंधी व इस कार्यक्षेत्र में कार्यरत कुछ महिलाएं अथवा महिला विकास में सक्रिय रूप से रुचि रखने वाली महिलाओं को शामिल किया जाएगा ।

महिला विकास केन्द्रों हेतु सभी कोषों से तात्पर्य उनका इस संस्था के खाते में स्थानान्तरित किया जाना होगा । प्रत्येक चयनित जिले का एक योजना निदेशक होगा जिसका वेतनमान जिला ग्रामीण विकास संस्था के योजना निदेशक के समान होगा ।

वह संस्था का सचिव सदस्य होगा और जिले में महिला विकास कार्यक्रम हेतु उत्तरदायी होगा । वह राजस्थान प्रशासनिक सेवा में अन्य सेवाओं से या विश्वविद्यालय प्रणाली से अथवा स्वैच्छिक संस्था से लिया जा सकता है ।

उसे एक योजना अधिकारी द्वारा सहायता दी जाएगी तथा कार्यालय कर्मचारियों को साधारणतया सहयोग प्राप्त होगा । योजना निदेशक को एक डीजल जीप कार्यक्रम में गति लाने हेतु प्रदान की जाएगी ।

राज्य स्तर पर महिला विकास कार्यक्रम ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज विभाग का निर्माण करेगा । यह सह-अस्तित्व की सुविधा प्रदान करेगा तथा पंचायती राज संस्थाओं के साथ एक संबंध स्थापित करेगा । एक संयुक्त विकास कमिश्नर इस योजना के अधिकार होंगे ।

उसे कुछ योजना अधिकारियों द्वारा सहायक प्राप्त होगी । आवश्यक मंत्रालय संबंधी तथा श्रेणी 4 का समर्थन प्रदान किया जाएगा । एक कार संयुक्त विकास कमिश्नर को कार्यक्रमों में गति लाने हेतु प्रदान की जाएगी ।

एक निर्णय स्टीयरिंग समिति राज्य स्तर पर मुख्य सचिव अथवा प्रसिद्ध महिला सामाजिक कार्यकर्त्री की अध्यक्षता में स्थापित की जाएगी । स्टीयरिंग समिति में कार्यालय संबंधी, गैर कार्यालय संबंधी तथा समाज कल्याण विभाग यूनीसेफ से एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाएगा ।

प्रगतिपरक कार्य (Progressive Work):

1983-84 के अन्तिम कुछ माह तथा 1984-85 के प्रथम एक दो माह पूर्व प्राथमिक कार्य हेतु प्रयुक्त किये गये जिनमें निम्नलिखित गतिविधियों को शामिल किया गया है:

1. एक महिला विकास केन्द्र की स्थापना व वास्तविक कार्य की विभिन्न शाखाओं का एक गहन अध्ययन ।

2. कर्मचारी चयन की प्रक्रियाओं को कार्य रूप देना तथा जिला स्तर पर कर्मचारी के चयन का निर्वाह ।

3. जिला महिला निकाय संस्थाओं की स्थापना समुदाय के पंजीकरण तथा अनुकूलन (आवास) की पहचान इत्यादि को शामिल करते हुए ।

4. एक या दो प्रारम्भिक सेमिनार । कार्यशालाओं का उपागम के स्पष्टीकरण तथा कार्यालय संबंधी व और कार्यालय पूर्व कार्यक्रमों के संचालन हेतु संगठन ।

5. इडारा की पहचान, उनके कर्मचारियों का चुनाव, कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रारम्भ इत्यादि ।

6. गैर-पुनरावृत्त मदों की खरीद ।

प्रारम्भ में WDP के तहत् छ: जिलों को लिया गया जिसमें से एक जिला द्वारा विकास कार्यक्रम एक अंश निर्माण में तथा उप योजना में लिया गया । शेष पाँच जिलों तथा राज्य स्तरीय व्यय हेतु यूनीसेफ से सहायता दी गई ।

राज्य स्तर पर WDP को अन्य उसी की तरह की योजनाओं के साथ सम्बद्ध करने तथा उनके साथ सह-अस्तित्व बनाने हेतु प्रयत्न किये जाएंगे । इससे इस योजना की प्रभावित व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकेगा । जिला स्तर पर पांचों जिलों हेतु आवश्यक सभी कोषों को योजना में शामिल किया गया है ।

महिला विकास केंद्र स्तर पर गैर-आवृर्त्ती व्यय प्रत्येक MVK हेतु 1300 रु. आता है तथा प्रशिक्षण समेत आवृर्त्ती व्यय 5700 रु. आता है । जैसा कि इस योजना प्रस्ताव के भाग-2 में संकेत किया गया है, MVK आयामीय क्रम में स्थापित किए जाएंगे तथा प्रथम वर्ष में कोषों में महत्वपूर्ण बचत होगी ।

परिणामतः वित्तीय अनुमानों के मूर्तरूप में महिला विकास केन्द्र पर आवर्ती व्यय 18.50 लाख रु. वास्तविक गणना 28.20 लाख रु. के विरुद्ध दिखाया गया । 1985-86 के तथा उसके पश्चात् के अनुमान 1984-85 की गणना पर आधारित है ।

किसी भी तरह इस सम्बन्ध में स्पष्ट हो सकता है कि:

(अ) महिला विकास केन्द्र पर व्यय 25 लाख रुपये लिया गया है यद्यपि सही गणना 28.50 लाख रु. आती है । (जैसा कि भाग-5 में गणनाओं के विस्तार को सम्मिलित करते हुए संकेतों में स्पष्ट किया गया) और

(ब) 1.50 लाख रु. की एक राशि इसके क्रियान्वयन के दूसरे वर्ष से WDP में कार्यक्रम के मूल्यांकन को सम्मिलित करने के उद्देश्य से जोड़ी गई हैं ।

संभवतया राज्य, जिला व महिला विकास केन्द्र के स्तर पर अनेक मदों पर होने वाले व्ययों को इस अवस्था पर नहीं दिखाया गया है जी कि शेष रह गाए हैं । किसी भी तरह कुछ अनिवार्य आवश्यकताएँ इस कार्यक्रम के वास्तविक क्रियान्वयन से उभर कर सामने आएगी ।

स्टेट स्टीयरिंग कमेटी DWDAS तथा कार्यालय संस्थाओं को जरूरत पड़ने पर आन्तरिक पुन: आवंटित करने की शक्तियां प्रदान की जाएगी । कोषों आदि के पुन: आवंटन हेतु शक्तियों के संदर्भ में निर्णय स्टेट स्टीयरिंग समिति द्वारा लिए जाएंगे । योजना का प्रस्ताव सातवीं योजना के अन्त तक यूनीसेफ के समक्ष समर्थन हेतु प्रस्तुत किये जाने का प्रावधान रखा गया ।

प्राप्त किये गये अनुभवों के आधार पर तथा साधन की उपलब्धता को मद्देनजर रखते हुए राज्य सरकार की यह कोशिश होगी कि वह अन्य शेष जिलों में भी इस कार्यक्रम का अधिकारिक विस्तार कर सके । इस योजना के अन्य जिलों में विस्तार में नियुक्त राष्ट्र की अन्य संस्थाओं के समर्थन को भी खोजने की कोशिश की जा सकती है ।

2. ग्रामीण महिला शिशु विकास कार्यक्रम (Rural Women Child Development Programme):

इसे संक्षेप में ‘ग्रामशिविका’ भी कहते हैं । अंग्रेजी में इसका संक्षिप्त नाम DWCRA है । हर जगह-जगह गाँव की औरते इसे बालक को बढ़ाने का काम भी कहा जाता है । यह ग्रामीण परिवेश में रहने वाली, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के निमित्त एक विशेष कार्यक्रम है ।

समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की समीक्षा करने पर पाया गया कि उक्त कार्यक्रम के तहत फायदा पाने वाली महिलाओं की संख्या अत्यन्त कम है जिस कारण पारिवारिक अर्थव्यवस्था की नींव कमजोर रह जाती है ।

यह देखते हुए समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की एक उपयोजना के तहत यह कार्यक्रम सितम्बर, 1982 में शुरू किया गया । इसका खास लक्ष्य औरतों को रोजगार प्रदान करना है ताकि महिलाओं की आय में वृद्धि होने से पारिवारिक आय भी बढ़ेगी तथा शिशु विकास आर्थिक अच्छे प्रकार से हो पाएगा ।

अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जिन परिवारों में पुरुषों के साथ महिलाएं भी धनोपार्जन करके पारिवारिक आय में वृद्धि करनी हैं उन परिवारों का स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षा का स्तर अच्छा होता है । महिला की आय बच्चों की पौष्टिक आहार देने एवं शिक्षा की सुविधाएं जुटाने में मदद पहुँचाती है ।

इसलिए निर्धन परिवारों की औरतों को रोजगार नौकरियों देनी भी जरूरी है । इसी लक्ष्य को समक्ष रखकर यह कार्यक्रम बनाया गया । गाँवों में अतिरिक्त आय का स्रोत सृजित करने से महिलाएं भी पुरुषों के समान बराबरी से आय अर्जित करने वाले उद्यमों में आकर भाग लेती हैं ।

उद्देश्य (An Objective):

महिलाओं को आय बढ़ाने वाले साधन ग्रामशिविका से प्राप्त होते हैं । इस कार्यक्रम का उद्देश्य है महिलाओं को पारिवारिक आय बढ़ाने के मौका प्रदान करके उनके परिवार की आर्थिक तथा पोषणीय स्थिति में सुधार लाना ।

इसके अलावा डस कार्यक्रम के तहत् इस प्रकार की व्यवस्था की जाती है जिससे ग्रामीण महिलाएं उस क्षेत्र में उपलब्ध सेवाओं का फायदा आसानी से उठा सकती हैं । इसी क्रम में विभिन्न विभागों के प्रयासों द्वारा समेकित बाल विकास सेवा (ICDS), प्रौढ़ शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा आदि की सेवाएँ इन्हें उपलब्ध कराई जाती हैं ।

स्वच्छ पेय जल, वातावरण में सुधार के लिए शौचालय तथा रसोईघर को आदर्श, स्वास्थ्यकर बनाने हेतु धूम्ररहित चूल्हे की सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है । महिलाओं को चुने हुए व्यवसायों में प्रशिक्षित की जाती हैं । प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इन्हें ऋण एवं अधिक उत्पादन उन्मुख परिसम्पत्ति पर पूँजी निवेशित करने हेतु प्रेरित किया जाता है ताकि वे प्रशिक्षण का लाभ उठा कर अपनी आय में बढ़ोत्तरी कर सकें ।

ग्रामशिविका में चयन का आधार (Base of Selection in Village Shivika):

उन महिलाओं के लिए कार्यक्रम चलाया गया है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही हैं । इसके चयन का आधार वही है जो समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम का है अर्थात् वैसे परिवारों का चयन करना जिनकी सालाना आय 4,800 रु. से कम हो ।

इन चयनित परिवारों की महिलाओं को समूह के रूप में गठित किया जाता है । हर समूह किसी व्यवसाय का चयन कर लेता है । उसके उपरांत व्यवसाय हेतु प्रशिक्षिण, कच्चे माल की व्यवस्था, तैयार माल की बिक्री, बैंकों एवं कार्यालयों के समन्वय से उस समूह एवं समूह के प्रमुख का दायित्व हो जाता है ।

इसमें कार्यक्रम द्वारा सहायता इसीलिए दी जाती है ताकि समूह आत्मनिर्भर हो जाए । कार्यक्रम हेतु जिले चुनते समय उन परिवारों को प्राथमिकता देते हैं जहाँ शिशु-मृत्यु-दर अधिक है । ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे ग्रामीण समाज के पिछड़े हुए वर्गों को पहले फायदा प्राप्त हो सके ।

चयन के अन्य आधार हैं क्षेत्र का पिछड़ापन, अनुसूचित जाति-जनजाति की संख्या, महिलाओं में निरक्षरता, जनसंख्या वृद्धि दर, शादी होने की कम उम्र पर किया जाता है । चयनित जिलों के हर प्रखण्ड में 30 समूहों का गठन किया जाता है । ये 30 समूह प्रखण्ड की हर पंचायत 6-6 समूह के हिसाब से 5 चयनित पंचायतों में गठित होते हैं । हर समूह में 15-20 महिलाएं होती हैं ।

पंचायत का चयन पंचायत में अनूसूचित जाति-जनजाति की जनसंख्या, बाजार की उपलब्धता, दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति आदि के साथ समन्वय, समेकित बाल विकास सेवा के साथ समन्वय को देखते हुए किया जाता है । प्राथमिकता के आधार पर साधारणतया हरिजन बस्ती की महिलाओं को चुना जाता है ।

ग्रामशिविका हेतु प्रशिक्षण (Training for Village Camp):

ग्रामशिविका में नीति विषयक मार्गदर्शिकाओं के सम्बन्ध में कर्मचारियों का कार्यक्रम की जानकारी देने हेतु उन्हें प्रशिक्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है । राष्ट्रीय गाँव विकास हेतु अनेक संस्थाएं खोली गई जैसे हैदाराबाद की मॉडल एजेंसी गाँव को विकास से जुड़े कार्यों को सौंपा गया ।

राष्ट्रीय विकास संस्थान, अपने परिसर में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है । ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम राज्यों के ग्रामीण विकास संस्थानों में भी आयोजित किए जाते हैं । हर स्तर के कर्मचारियों हेतु प्रशिक्षण प्रक्रियाओं हेतु मानक सुनिश्चित करने हेतु वर्ष के दौरान व्यापक प्रशिक्षण मैनुअल का संकलन तैयार किया गया है ।

पूरी तरह तैयार करने वाली संस्था महिलाओं को गाँव के कार्यों के विषय में निपुण बनाती हैं कि किस तरह समूह का गठन किया जाए, बाजार का सर्वेक्षण किया जाए, कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, व्यवसाय-विशेष में प्रशिक्षण देने हेतु किस प्रकार प्रशिक्षण का चयन किया जाए, बैंकों से ऋण किस प्रकार प्राप्त किया जाए एवं चयनित महिलाओं में से ऐसी महिला को किस तरह चुना जाए जो बिक्री कर सके ।

शिशु विकास तथा मातृ-शिशु स्वास्थ्य व पोषण के सम्बन्ध में भी प्रशिक्षण दिया जाता है । सभी महिला कार्यकर्ताओं को हर वर्ष में कम से कम एक बार प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है ।

ग्रामशिविका का प्रशासनिक स्वरूप (Administrative Structure of Village Shivika):

ग्रामशिविका को भारत सरकार संरक्षण प्राप्त है । यह समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम की एक उप-परियोजना है । इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा युनिसेफ के सहयोग से किया जाता है ।

ग्रामशिविका के तहत राज्य स्तर पर परियोजना निदेशक का पद सृजित है जिसके पदाधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरीय वेतनमान के पदाधिकारी होते हैं । जिला स्तर पर जिला विकास अभिकरण (D.R.D.A) में सहायक परियोजना पदाधिकारी का पद सृजित है जिस पर प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी पदस्थापित किए जाते हैं ।

प्रखण्ड स्तर पर समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत् महिला प्रसार दाधिकारी का पद होता है । इनकी सेवाएँ इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु प्रयोग में लाई जाती हैं । सामुदायिक विकास के तहत् हर प्रखण्ड में ग्राम सेविका के दो पद सृजिन हैं ।

उन पदों पा पदस्थापित ग्रामसेविकाओं में की सेवाएं भी इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में प्रयुक्त की जाती हैं । इसके अलावा हर ग्रामशिविका जिले में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत् एक ग्राम सेविका का पद सृजित किया गया है,  जिसके वेतन की प्रतिपूर्ति यूनिसेफ द्वारा की जाती है ।

इसी तरह सहायक परियोजना पदाधिकारी तथा परियोजना निदेशक के वेतन की प्रतिपूर्ति भी यूनिसेफ करता है । हाल ही में कार्यों के नए मास्टर प्लान में यह निर्धारित किया गया है कि अब भविष्य में यूनिसेफ पद के निर्माण की तारीख से लेकर सिर्फ 5 वर्षों की अवधि हेतु ही कर्मचारियों के वेतन की लागत को वहन करेगा ।

ग्रामशिविका व अन्य विभाग (Gramshivika and Other Departments):

यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामशिविका महिलाओं को बढ़ती हुई आय हेतु अवसर उपलब्ध कराने का एक आर्थिक कार्यक्रम है फिर भी इसमें एक महत्वपूर्ण कल्याण घटक भी निहित है । महिलाओं एवं बच्चों के सभी कार्यक्रमों में उचित समन्वय होना चाहिए ताकि प्रसार की पुनरावृत्ति से बचा जा सके ।

इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे अन्य कार्यक्रमों के अधिकारियों के साथ सम्पर्क बनाने हेतु राज्य, जिला, प्रखण्ड स्तर पर समन्वय समितियों का गठन करें ताकि ग्रामशिविका, आई. सी डी. एस., राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, माँ एवं शिशु की देखभाल आदि जैसे कार्यक्रमों के लाभों का आपसी आदान-प्रदान किया जा सके ।

अनेक राज्यों से आई. सी. डी. एस. की परियोजनाओं को समन्वित रूप से चलाया जा रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं-कहीं अन्धविश्वास भी काफी ज्यादा देखने को मिलता है । गाँवों में आज भी रूढ़ियों, परम्पराओं व सामाजिक रीति रिवाजों की वजह से अनेक प्रकार की कुरीतियाँ विद्यमान हैं जिनका कुप्रभाव महिलाओं को झेलना पड़ रहा है ।

महिलाएं ग्रामीण समाज में प्रचलित विभिन्न बाधाओं और कुरीतियों से, जो उन्हें समाज में सही दर्जा प्राप्त करने हेतु अड़चन पैदा करती हैं, अपने को मुक्त करने हेतु पुर्णरूप से तैयार नहीं हो पाई है ।

अत: ग्रामीण महिलाओं में सामाजिक कार्यकत्ताओं, स्वयंसेवी एजेंसियों, उत्प्रेरकों के माध्यम से जागृति पैदा करने की आवश्यकता है । इसके अलावा अकस्मिक खर्चों को पूर्ण करने हेतु महिलाओं को ऋण उपलब्ध कराने की आवश्यकता है । इसके लिए थ्रिफ्ट एवं क्रेडिट ग्रुप बनाने की कोशिश की जा रही है ।

इससे महिलाएँ अपनी तत्काल वित्तीय जरूरतों की पूर्ति करने में आत्मनिर्भर बन जाएंगी । उनमें आत्म-विश्वास उत्पन्न होगा । इस सम्बन्ध में प्रयत्न बढ़ाने हेतु जिलों ग्रामीण विकास एजेन्सियों को अधिकार दिया गया है कि वे किसी समूह को उसकी बचत के बराबर 15000 रुपये तक अनुदान दे सकती हैं ।

महिलाओं में ग्रामशिविका की रुचि बनी रहे इसके लिए आवश्यक है कि उनकी गति पद्धतियां आर्थिक रूप से सक्षम हों । महिला समूहों द्वारा तैयार किए उत्पादों का विपणन महत्व रखता है । इस दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं ।

कुछ राज्य सरकारों ने सरकारी विभागों द्वारा अपेक्षित अनेक वस्तुओं की सप्लाई हेतु ग्रामशिविका समूहों को अनुमोदित किया है । कापार्ट ने गाँव की वस्तुओं की बिकने से वृद्धि हेतु ग्राम श्री मेले शुरू किए गए ।

3. समेकित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Service):

समेकित बाल विकास सेवा (I.C.D.S) अपने आप में ही एक खास योजना है जो भारत द्वारा अपने बच्चों को उपहार स्वरूप दी गई है । यह स्कूल पूर्व बच्चों और उनकी माताओं को जीवित रहने की दर बढ़ाने और उन्हें स्वास्थ्य, पौष्टिक भोजन एवं सीखने के मौका प्रदान कराने वाली एक महत्वाकांक्षी योजना है ।

बहुत से विकासशील देशों की तरह हमारे भारत में भी कुपोषण रोग की समस्या गंभीर है । शिशुओं तथा छोटे बच्चों की इतनी ऊँची मृत्यु-दर होने से मानव संसाधनों की बर्बादी होती है ।

समेकित बाल विकास सेवा के तहत् छ: वर्ष तक के बच्चों तथा गर्भवती स्त्रियों हेतु- पोषाहार तथा स्वास्थ-शिक्षा, सहायक पोषाहार, स्वास्थ्य परीक्षण, बीमारियों से मुक्ति, शाला-पूर्व शिक्षा, एवं विशेषज्ञ सुविधाएं आदि विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध हैं ।

(1) पोषाहार तथा स्वास्थ्य शिक्षा (Nutrition and Health Education):

सभी महिलाओं को पोषाहार तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा दी जाती है । शिक्षा देते समय गर्भवती स्त्रियों तथा धात्री माताओं को प्राथमिकता दी जाती है । जिनके बच्चे कुपोषण अथवा अन्य रोगों से पीड़ित होते हैं उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है । पोषण तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देने हेतु गाँवों में विभिन्न पाठ्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ।

आँगनबाड़ी (Anganwadi):

समेकित बाल विकास सेवा योजना की समस्त सेवाएँ एक ही केन्द्र में उपलब्ध कराई जाती हैं, जिसे ‘आँगनबाड़ी’ कहते हैं । बच्चों हेतु देखभाल की इन केन्द्रों की स्थापना गांवों तथा गन्दी बस्तियों में ही की जाती है । ये केन्द्र आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री चलाती हैं ।

आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री बदलाव लाने वाली एक बहुदेशीय कार्यकर्त्री होती है जो उसी समुदाय में से ली जाती है और इस कार्यक्रम के तहत बच्चों और माताओं से सीधा सम्पर्क रखने की कड़ी है ।

दिन के समय में आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री गाँव के अलग-अलग घरों में जाती हैं । वहाँ वह बच्चों और विशेष रूप से माताओं को पोषाहार तथा स्वास्थ्य के सम्बन्ध में बताती है और उन्हें केन्द्र में मिलने वाली सेवाओं से फायदा उठाने हेतु प्रेरित करती है ।

सरकारी आँगनबाड़ी की रूचिकर्त्ता औरतों को एकचित करके 15 वर्ष से 45 वर्ष तक की महिलाएँ ही आँगनबाड़ी की सदस्य बन सकती है । इनमें बच्चों और माँ की देखभाल के विभिन्न विषयों की चर्चा की जाती है और उनके संबंध में प्रशिक्षण दिया जाता है ।

गाँव अथवा शहर में प्रति 1000 जनसंख्या पर एवं आदिवासी क्षेत्र में प्रति 700 जनसंख्या पर एक ‘आँगनबाड़ी’ खाली जाती है । आँगनबाड़ी बाल कल्याण केन्द्र होता है ।

30 जून, 1990 तक दो लाख से भी अधिक ‘आँगनबाड़ी’ कार्यकर्त्रियों और उनकी इतनी ही सहायिकाएँ देश भर से स्कूल पूर्व बच्चों और उनकी माताओं को स्वास्थ्य, पौष्टिक आहार और शिक्षा के बारे में सेवाएं प्रदान कर रही थीं ।

इस प्रणाली के तहत् छ: वर्ष से कम उम्र के एक करोड़ 24 लाख बच्चों और 23.5 लाख गर्भवती स्त्रियों और दूध पिलाने वाली माताओं को पूरक पौष्टिक आहार दिया जा रहा था । आँगनबाड़ी केन्द्रों में 65.5 लाख बच्चों को स्कूलपूर्व शिक्षा दी जा रही थी ।

अपने सभी प्रयासों में आँगनबाड़ी कार्यकर्त्ता को परियोजना स्तर पर कार्यकर्ताओं की टोली का सहयोग मिलता है । इसमें पर्यवेक्षक और बाल-विकास परियोजना अधिकारी होते हैं । कुछ बड़ी परियोजनाओं में बाल विकास परियोजना अधिकारियों की सहायता हेतु सहायक बाल विकास परियोजना अधिकारी भी होती हैं ।

स्वास्थ्य के संबंध में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सुपरवाइजरों की एक टोली इन परियोजना क्षेत्रों की समेकित बाल विकास सेवा की टोली को अपना सहयोग और समर्थन देती है ।

आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री सामान्य पढ़ी-लिखी होती है और विशेष प्रशिक्षण संस्थाओं में उसे गाँव में माँ और बच्चे की देखभाल करने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है । सुपरवाइजर पर 17 से 25 आँगनबाड़ी केन्द्रों का उत्तरदायित्व होता है ।

वह आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के कामकाज की देखभाल करती है और उनकी मित्र, विचारक और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है एवं रिकॉर्ड रखने, सभी घरों में जाने एवं स्त्रियों की बैठकें आदि बुलाने में उन्हें मदद देती है । उसके द्वारा उनके काम का ओरिएन्टेशन भी किया जाता है । बाल-विकास परियोजना अधिकारी समेकित बाल-विकास सेवा की कार्यकर्त्रियों और सरकारी प्रशासन के बीच कड़ी का कार्य करती है ।

(2) सहायक पोषाहार (Assistant Nutrition):

कम आय वाले परिवार या जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं उनकी गर्भवती स्त्रियों तथा दूध पिलाने वाली माताओं को अतिरिक्त पोषाहार प्रदान किया जाता है ।

खाद्य सामग्री क्या हो, यह अनेक बातों पर निर्भर है, जैसे स्थानीय उपलब्धता, फायदा पाने वाले लोग, परियोजना के स्थान, प्रशासनिक सम्भावना आदि । यह प्रयास किया जाता है कि स्थानीय उपलब्ध खाद्य सामग्री का ही उपयोग किया जाए ।

इसका उद्देश्य यह है कि एक वर्ष से कम आयु को बच्चों को करीब 200 कैलोरी 8-10 ग्राम प्रोटीन, एक से छ: वर्ष के बच्चों को लगभग 300 कैलोरी, 10-12 ग्राम प्रोटीन और गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को 500 कैलोरी एवं 25 ग्राम प्रोटीन वाला अतिरिक्त आहार सुलभ कराया जाए ।

वर्ष में 300 दिन सहायक पोषाहार की व्यवस्था की जाती है । जो बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषित होते हैं उन्हें विशेष आहार दिया जाता है । भोजन का प्रकार हर राज्य में भिन्न-भिन्न होता है ।

केन्द्र में ही तैयार करके गर्म भोजन दिया जाता है । इस भोजन में विभिन्न प्रकार के अनाजों का मिश्रण, दालें, सब्जियाँ, तेल और चीनी रहते हैं । कुछ केन्द्रों में तुरन्त खाने हेतु तैयार भोजन दिया जाता है ।

जो बच्चे घोर कुपोषण से ग्रस्त होते हैं उन्हें अन्य बच्चों को दिए जाने वाले भोजन से दुगुना भोजन दिया जाता है । छोटे बच्चों के भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी से अन्धापन आ सकता है ।

बच्चों में विटामिन ‘ए’ की कमी रोकने के लिए हर छठे माह बच्चे को विटामिन ‘ए’ की बहुत बड़ी खुराक अथवा मेंगाडोज दी जाती है । रक्ताल्पता नियन्त्रण कार्यक्रम के तहत खून की कमी से बचने हेतु बच्चों को वर्ष में एक बार सौ दिनों तक निरंतर लौह-गोलियाँ खिलाई जाती है ।

(3) स्वास्थ्य परीक्षण (Health Test):

आँगनबाड़ी में उपकेन्द्र से आई हुई नर्स और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के डॉक्टरों द्वारा सभी बच्चों के स्वास्थ्य का नियमित रूप से परीक्षण किया जाता है, उनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का पता लगाकर उनका इलाज करते हैं । इसके लिए केन्द्र को नियमित रूप से दवा का बक्सा अथवा किट भेजा जाता है ।

आँतों के कीड़ों को समाप्त करने हेतु बच्चों को नियमित रूप से दवा दी जाती है । इसके अतिरिक्त आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री दस्त अथवा अतिसार होने पर उसकी चिकित्सा के बारे में उचित सलाह देती हैं और ओ. आर एस. के पैकेट केन्द्र में आते हैं तो उनसे घोल तैयार करके बच्चों की चिकित्सा करना सिखाती है ।

(4) बीमारियों से मुक्ति (Freedom from Diseases):

एक आँगनबाड़ी केन्द्र के तहत् आने वाले सारे क्षेत्र में सभी बच्चों को छ: जानलेवा बीमारियों से बचाने हेतु टीके लगाए जाते हैं । ये बीमारियां हैं- गलघोंटू अथवा डिप्थीरिया, काली खाँसी, धनुष्टंकार अथवा टिटेनस, पोलियो, खसरा और तपेदिक (क्षय) ।

क्षेत्र में रहने वाली गर्भवती स्त्रियों को टिटेनस टॉक्साइड के दो इंजेक्शन लगाए जाते हैं । महिलाओं को प्रसव-पूर्व तथा प्रसवोपरांत देखभाल की शिक्षा की जाती है । गर्भवती महिलाओं को प्रोटीन बहुत आहार के अतिरिक्त लोह-लवण तथा फोलिक एसिड की गोलियाँ भी दी जाती हैं ।

इस अवधि में चार बार उनकी स्वास्थ्य जाँच होती है । खतरे की सम्भावना वाली गर्भवती स्त्री को उपयुक्त संस्थानों में भेजा जाता है । इस इंजेक्शन के द्वारा तथा शिशु दोनों ही भयानक बीमारियों से बच सकते हैं ।

शहरों में बच्चे अस्पतालों तथा ग्रामों में घर में ही बच्चे जन्म लेते हैं उस समय माता की रक्षा जरूरी है, इसलिए कम से कम 1-2 बार घर पहुंचे उनके स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है । छ: से आठ सप्ताह उपरांत माँ को प्रसवोपरांत परीक्षण हेतु स्वास्थ्य केन्द्र में आने हेतु प्रेरित किया जाता है ।

(5) शालापूर्व शिक्षा (Pre-School Education):

तीन से छ: वर्ष की उम्र के बच्चों को अनौपचारिक तरीके से विभिन्न तरह की बातें सीखने के विशेष अवसर दिए जाने चाहिए । आँगनबाड़ी छोटे-छोटे बच्चों को खेलों में ही शिक्षा प्रदान करती है । ताकि बच्चे का मानसिक विकास हो और बच्चे की उत्सुकता को शांत किया जा सके ।

बच्चे मिलकर खेलना सीखते हैं, शिशु-कविताएं और गीत गाते हैं और रंगों की पहचान एवं पास-पड़ोस के वातावरण के सम्बन्ध में सीखते हैं । इस प्रकार आगे के वर्षों में प्राथमिक शिक्षा पाने की उनकी नींव मजबूत होती है ।

इस शिक्षा हेतु औपचारिक रूप से कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया है । आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री को प्रोत्साहित किया जाता है कि वह अपने तरीके से अनूठी पद्धतियों का प्रयोग करके लोगों को शिक्षित करें ।

(6) विशेषज्ञ सुविधाएँ (Expert Features):

समेकित बाल विकास सेवा के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं शहरी स्वास्थ्य प्रणाली के डॉक्टरों और नर्सों की स्वास्थ्य टोली द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं । गम्भीर मामलों को अस्पतालों और अन्य विशेष संस्थानों में भेजने की व्यवस्था भी है ।

बच्चों के स्वास्थ्य का विवरण कार्डों पर दर्ज किया जाता है । माताओं को शिक्षित करने और बच्चे के स्वास्थ्य विकास में उनकी रुचि बनाए रखने हेतु कार्ड उन्हें भी दिया जाता है । इसी तरह एक कार्ड पर गर्भवती स्त्रियों का विवरण लिखा जाता है जो प्रसवपूर्व देखभाल करने में सहायता करता है ।

समेकित बाल विकास सेवा से लाभ उठाने वाले लोग:

किसी देश के सामाजिक तथा आर्थिक विकास हेतु मानवीय संसाधनों का विकास महत्वपूर्ण है, सामाजिक विकास की योजना बनाने वालों हेतु शिशुओं और बच्चों की मृत्यु-दर और रोग-दर में कमी लाना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है ।

भारत में शिशुओं और बच्चों में मृत्यु और रोग दर ऊँची होने का सबसे प्रमुख कारण कुपोषण है । देश की 40-6 प्रतिशत जनता गरीब है । भोजन पर 80 प्रतिशत राशि व्यय करने पर भी वे सन्तुलित आहार प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।

बालकों का भविष्य उत्तम रहने के उद्देश्य से उन्हें अवश्य सेवाएं प्रदान की जाती हैं । इसका कारण यह है कि बचपन में ही बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास की आधारशिला रखी जाती है ।

यह भी अनुभव किया गया है कि अगर बच्चों को सभी सुविधाएँ एक साथ उपलब्ध कराई जाएँ तो उसका प्रभाव अलग-अलग सेवाएँ प्रदान करने से बेहतर होगा । ऐसा इसलिए है कि किसी एक सेवा की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि दूसरी सम्बन्धित सेवाओं से इसे कितना सहारा मिलता है ।

इन्हीं विचारों को लेकर भारत सरकार ने 2 अक्टूबर, 1975 में समेकित बाल-विकास सेवा की स्थापना की । इसे एकीकृत बाल-विकास सेवा भी कहते हैं । अंग्रेजी में इसका संक्षिप्त नाम I.C.D.S है । भारत में पहले 33 परियोजनाओं का प्रायोगिक आधार पर आरम्भ किया गया ।

यह भारत सरकार द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय बाल-नीति के उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है । इनमें से 18 परियोजनाएं ग्रामीण खण्डों में, 11 आदिवासी खण्डों में और 4 झुग्गी-झोंपड़ी वाले इलाके में आरम्भ की गईं । सन् 1990 तक यह योजना 2200 से अधिक खण्डों में शुरू हो गई थी ।

उद्देश्य (An Objective):

समेकित बाल विकास सेवा के उद्देश्यों पर नीचे प्रकाश डाला गया है:

1. मृत्यु, रोग, कुपोषण और स्कूल छोड़ देने की प्रवृत्ति में कमी लाना ।

2. पोषण तथा स्वास्थ्य-शिक्षा द्वारा माताओं में बच्चों की स्वास्थ्य ओर पोषण सम्बन्धी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता को बढ़ाना ।

3. बच्चों के उचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव रखना ।

4. एक से छ: वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती स्त्रियों के आहार तथा स्वास्थ्य में सुधार लाना ।

5. बाल विकास को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न विभागों की नीति और कार्यों में प्रभावी सामंजस्य स्थापित करना ।

प्रशिक्षण (Training):

आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री ज्यादातर आठवीं अथवा दसवीं पास होती हैं । देश के सैकड़ों प्रशिक्षण केन्द्रों में से किसी एक में उसे तीन महीने का बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाता है ।

इसके अलावा उसे आई. सी. डी. एस. परियोजना स्तर के एवं स्वास्थ्य कर्मचारी नियमित मासिक सतत् शिक्षा भी देते हैं । समय-समय पर प्रत्यास्मरण पाठ्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है । सुपवाइजर किसी भी सामाजिक विज्ञान विषय में स्नातक होती है ।

उन्हें दो महान की अवधि का सेवापूर्व प्रशिक्षण दिया जाता है । बाल-विकास परियोजना अधिकारियों को जन-सहयोग और बाल विकास की राष्ट्रीय संस्थान के बंगलौर, गुवाहाटी, लखनऊ स्थित तीन क्षेत्रीय केन्द्रों में से किसी एक में अपने कार्य का प्रशिक्षण दिया जाता है ।

मूल्यांकन (Evaluation):

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा संस्थान स्थित सेंट्रल टैक्निकल कमेंटी देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों द्वारा नियमित रूप से मूल्यांकन अध्ययन कराती है ।

अनुश्रवण का मॉनिटरिंग (Monitoring Observation):

प्रत्येक माह आँगनबाड़ी कार्यकर्त्री द्वारा कार्यक्रम की मॉनिटरिंग की जाती है । इन रिपोर्टों का उपयोग परियोजना, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर कार्यक्रमों की विवेचना करने और उसमें समुचित परिवर्तन करने के किया जाता है ।