Read this article in Hindi to learn about:- 1. मधुमक्खी का अर्थ (Meaning of Honeybee) 2. मधुमक्खी के प्रकार (Types of Honeybee) 3. आर्थिक महत्व (Economic Importance) and Other Details.
Contents:
- मधुमक्खी का अर्थ (Meaning of Honeybee)
- मधुमक्खी के प्रकार (Types of Honeybee)
- मधुमक्खी का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Honeybee)
- मधुमक्खी का सामाजिक जीवन और परिवार (Social Life and Family of Honeybee)
- मधुमक्खी का जीवन-चक्र (Life Cycle of Honeybee)
- मधुमक्खियों के रोग (Diseases of Honeybees)
1. मधुमक्खी का अर्थ (Meaning of Honeybee):
मधुमक्खी सामाजिक कीट का एक सर्वोत्तम उदाहरण है जो शहद एकत्र करके अपने परिवार का भरण-पोषण करती है । यह कीट हाइमेनोप्टेरा गण के एपिस वंश के अन्तर्गत आता है । मधुमक्खियों की तीन जातियां भारतीय मधुमक्खी (एपिस इण्डिका), चट्टानी मधुमक्खी (एपिस डोर्सोटा) व छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिया) भारतवर्ष में पायी जाती हैं । एक विदेशी मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) जिसे इटालियन या यूरोपियन मधुमक्खी कहते हैं, अब भारत में स्थापित हो गयी हैं एवं इसका प्रयोग व्यवसायिक दृष्टि से मधुमक्खी पालन के लिये किया जा रहा है ।
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2. मधुमक्खी के प्रकार (Types of Honeybee):
मधुमक्खियों की उक्त चारों प्रजातियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित प्रकार से है:
(i) भारतीय मधुमक्खी (एपिस सिराना इण्डिका):
यह मधुमक्खी सम्पूर्ण भारतवर्ष में पायी जाती है । यह पीलापन लिए हुए भूरे रंग की होती है । अंधेरे स्थानों जैसे पुरानी इमारतों, जंगलों, पेड़ों के खोखलों दीवारों, गुफाओं आदि में यह 6-8 समांतर छत्ते बनाती है । ये मधुमक्खी स्वभाव से नम्र व शान्त होती हैं और इसे सरलता से पाला जा सकता है ।
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मधुमक्खी पालक इसे प्राकृतिक घरों से पकड़ कर मधुमक्खी पेटिका में रखकर पालते हैं । यह एक उद्यमशील मधुमक्खी है एवं अच्छी मात्रा में शहद एकत्रित करती है । इसकी एक कालोनी से औसतन 2-3 किलोग्राम शहद प्रतिवर्ष प्राप्त होता है ।
(ii) चट्टानी मधुमक्खी (एपिस डोर्सोटा):
इस मधुमक्खी के भंवर अथवा भौवरा के नाम से भी जाना जाता हैं यह सम्पूर्ण भारतवर्ष में पायी जाती है । पहाडी क्षेत्रों में यह समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई तक मिलती है । इसकी कालोनियाँ कम तापक्रम पर एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर चली जाती हैं ।
ये मधुमक्खियाँ एक ही छत्ता बनाती हैं जो लगभग 1.5 से 2.1 मीटर चौड़ा व 0.6 से 1.2 मीटर लम्बा होता है । इसका छत्ता प्रायः चट्टानों पर लटकता रहता है । ये मधुमक्खियाँ अत्यन्त उग्र प्रवृत्ति की होती हैं और छेड़छाड़ करने पर मानव का दूर तक पीछा कर आक्रमण करती हैं ये बड़ी मात्रा में शहद एकत्रित करती हैं । ये अपना कार्य प्रातः जल्दी आरम्भ कर देती हैं इनके एक छत्ते से 40 किलोग्राम तक शहद प्रतिवर्ष प्राप्त होता है । शहद प्रायः छत्ते के अगले भाग में पाया जाता है ।
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(iii) छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिया):
यह मधुमक्खी सम्पूर्ण देश में पायी जाती है मगर समुद्र तल से 335 मीटर की ऊंचाई पर बहुत कम पायी जाती है । यह जल्दी-जल्दी स्थान बदलती है एवं एक स्वान पर इसकी कॉलोनी 5 माह से अधिक नहीं रहती है । ये मधुमक्खी एक छत्ता बनाती है जिसका आकार हथेली के बराबर होता है ।
यह शाखाओं, बाड़ों, पेड़ों, गुफाओं, घरों की चिमनियों, खाली बक्सों, लकड़ियों के ढेरों आदि पर अपना छत्ता बनाती है । इसकी रानी सुनहरी भूरी व नर काले होते हैं । श्रमिक, रानी एवं नरों की अपेक्षा छोटे होते हैं जो चमकीले नारंगी रंग का आभास देती हैं । ये मधुमक्खियाँ शहद एकत्रित करने में कमजोर होती हैं और इसके छत्ते से प्रतिवर्ष लगभग 1 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है ।
(iv) यूरोपियन या इटालियन मधुमक्खी (एपिस मेलीफेरा):
यह मधुमक्खी यूरोप, अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया की निवासी है जो भारत में पूर्ण रूप से स्थापित हो गयी है । इसका स्वभाव नम्र होता है । यह बंद स्थानों पर समांतर छत्ते बनाती है । इसकी रानी भारी मात्रा में अण्डे देती है । यह एक अच्छी शहद एकत्रित करने वाली मधुमक्खी है । इसकी एक कालोनी का औसतन शहद उत्पादन 40 से 50 किलोग्राम प्रतिवर्ष है ।
3. मधुमक्खी का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Honeybee):
मधुमक्खियां मानव समाज के लिये बहुत उपयोगी कीट है ।
इससे निम्नलिखित आर्थिक महत्व की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं:
i. शहद (Honey):
शहद मीठा द्रव्य है जिसे मधुमक्खियाँ फूलों से लाए मकरंद से बनाती हैं । मधुमक्खियां फूलों की मकरंद ग्रन्थियों से मकरंद एकत्रित करती है और उसे गाढ़े द्रव्य के रूप में संसाधित करती हैं यह द्रव्य या तरल छतो के कोष्ठों में संचित रहता है जहां इसे भविष्य के उपयोग के लिये संसाधित किया जाता है ।
मधुमक्खियों को शहद का संग्रहण, संसाधित करने और छत्तों को बन्द करने में 2-3 सप्ताह का समय लगता है । शहद पर मौसम तथा मकरंद देने वाले फूलों की किस्मों का गहरा प्रभाव पड़ता है । शहद में भारी मात्रा में शर्कराएँ, खनिज, विटामिन, एंजाइम एवं पराग होता है । शर्कराओं में लेबुलोस फक्टोस) व डेक्ट्रोस (ग्लूकोस) प्रमुख है । शहद का सापेक्षित घनत्व 14 होता है जो तापमान के बदलाव से बदल जाता है ।
शहद का संगठन:
शहद का उपयोग भोजन के रूप में अच्छे स्वास्थ्य तथा दीर्घ जीवन के लिए किया जाता है ।
शहद के निम्नलिखित उपयोग हैं:
(1) यह भूख बढ़ाने वाला है तथा अन्य भोजन पदार्थों के पाचन में सहायक होता है ।
(2) इसमें शीघ्रता से पचने वाली शर्कराएँ होती हैं अतः यह अच्छी भोजन सामग्री है ।
(3) शहद में लोहा व कैल्शियम जैसे अति आवश्यक खनिज होते हैं जो शरीर की बढ़वार व विकास के लिये अति आवश्यक होते हैं ।
(4) शहद में कई रोगों व विकारों के दूर करने के गुण भी होते हैं । मधुमेह, उल्टी, दस्त, पेट व यकृत के रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है ।
(5) शहद का प्रयोग अनेक प्राकृतिक प्रसाधन बनाने में किया जाता है ।
ii. मोम:
श्रमिक मधुमक्खियाँ शहद खाने के बाद अपनी मोम ग्रंथियों से मोम का उत्पादन करती है जो ”मधुमक्खी-मोम” कहलाता है । इसका उपयोग पॉलिश, प्रसाधन, पेंटिंग आदि बनाने में किया जाता है । भारत में मधुमक्खी मोम का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत चट्टानी मधुमक्खी एपिस डोर्सटा है ।
iii. रॉयल जैली:
नई श्रमिक मधुमक्खियों के सिर पर स्थित हाइपो फेरेन्वीयल तथा मेन्डीबुलर ग्रन्थियों द्वारा उत्पन्न स्राव रॉयल जैली कहलाता है । रॉयल जैली को मधुमक्खियाँ अपने लावों को खिलाती है । रॉयल जैली में अनेक प्राकृतिक पदार्थ व हार्मोन पाये जाते हैं और यह अत्यधिक सान्द्रित खाद्य है । चीन, रॉयल जैली का सबसे बड़ा उत्पादक व निर्यातक है ।
iv. पराग:
मधुमक्खियों के लिए वसा और मुख्यतः प्रोटीन का स्रोत पराग है । पराग का उपयोग अनेक दवाओं व औषधियों के निर्माण में किया जाता है । इसके अतिरिक्त मधुमक्खियों से प्रोपोलिस, विष, क्वीन, सबस्टेन्स भी प्राप्त होता है जिनके बाजार में अनेक उपयोग किये जाते हैं ।
4. मधुमक्खी का सामाजिक जीवन और परिवार (Social Life and Family of Honeybee):
मधुमक्खियाँ समूह में रहती हैं । एक समूह में दस से साठ हजार मधुमक्खियाँ होती हैं । पूरा समूह एक इकाई है जिसे मधुमक्खी परिवार या मौन वंश कहते हैं । यदि कोई मधुमक्खी अपने परिवार से अलग हो जाती है तो एक अथवा दो दिन में मर जाती है ।
प्रत्येक मधुमक्खी परिवार में एक से अधिक छत्ते होते हैं । प्रत्येक छत्ता एक-दूसरे के समांतर अपने आधार से नीचे की ओर लटका रहता है । मधुमक्खियाँ छत्तों के निर्माण से पूर्व आधार का निर्माण करती है फिर नीचे की ओर बढ़ती है । नये बने छत्तों का रंग सफेद होता है मगर पुराने होने पर इनका रंग काला हो जाता है ।
छत्ते के मध्य पतली दीवार के दोनों ओर असंख्य छ: कोणों वाले कोष्ठ होते हैं । जिनमें ”रानी” अण्डे देती है तथा श्रमिक मधुमक्खियां शिशुओं के लिये भोजन, मकरंद व पराग एकत्रित करती है । माप के अनुसार कोष्ठ दो प्रकार के होते हैं । छत्ते के मध्य में छोटे-छोटे कोष्ठ, ”श्रमिक कोष्ठ” होते हैं, जिनमें ”रानी” होती है ।
इन कोष्ठों से थोड़े बड़े कोष्ठों में रानी द्वारा दिये गये अण्डे से नर मधुमक्खियाँ पैदा होती हैं एवं इन्हीं कोष्ठों में कालोनी के लिए खुराक आदि एकत्रित की जाती है । मधुमक्खी परिवार में अनेक छत्ते होते हैं । मध्य के छतों में मुख्यतः अण्डे व शिशुओं (लार्वा) का पालन-पोषण होता है और किनारों के छत्तों में आपातकाल के लिए पुष्परस व पराग का भण्डारण किया जाता है ।
मधुमक्खी परिवार के सदस्य:
मधुमक्खी की कॉलोनी में तीन प्रकार के सदस्य होते हैं । सभी सदस्य कालोनी के विभिन्न कार्य आपस में मिल-जुलकर पूरा करते हैं । प्रत्येक सदस्य का कार्य एवं दायित्व निर्धारित होता है जिसे वे कालोनी के हित में ईमानदारी व परिश्रम से निभाते हैं । प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे पर आश्रित होता है । किसी एक के आभाव में कालोनी का कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है तथा पूरी कॉलोनी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है ।
i. रानी मधुमक्खी (Queen):
प्रत्येक कॉलोनी में सदैव एक रानी होती है । रानी पूर्ण रूप से विकसित मादा मधुमक्खी होती है एवं पूरी मधुमक्खी कॉलोनी की मां होती है । यदि किसी कारण से कॉलोनी में दो रानियां हो जायें तो दोनों आपस में तब तक लड़ेगी जब तक कि दोनों में से एक की मौत न हो जाये । रानी छत्ते के दूसरे सदस्यों से बड़ी, सुन्दर, चमकदार तथा अपने लंबे पेट के कारण आसानी से पहचानी जाती है ।
यह अपना भोजन स्वयं नहीं कर सकती । श्रमिक मधुमक्खियां ही इसे भोजन कराती हैं । इसका भोजन भी विशेष प्रकार का होता है जिसे ‘रॉयल जैली’ कहते हैं । जो युवा श्रमिक मधुमक्खियों की लार ग्रंथियों द्वारा पैदा किया जाता है ।
रानी का कार्य केवल अण्डे देना है । सक्रिय अवधि में यह 800-2000 अण्डे प्रतिदिन तक देती है । यह अपनी इच्छा तथा आवश्यकतानुसार निषेचित व अनिषेचित अण्डे दे सकती है । निचित अण्डे से निकली इल्लियां को जब ”रॉयल जैली” खिलाई जाती है तो रानी मधुमक्खी पैदा होती है । जब ”रॉयल जैली” के साथ-साथ मकरंद व पराग का मिश्रण खिलाया जाता है तो श्रमिक मधुमक्खियाँ पैदा होती हैं ।
ii. श्रमिक (Worker):
यह मादा मधुमक्खियाँ ही होती है मगर इनके प्रजनन अंग पूर्ण विकसित नहीं होते हैं । ये ‘श्रमिक कोष्ठ’ से पैदा होती है । इस मधुमक्खी में मातृत्व की भावना बहुत अधिक होती है । सभी ज्ञानेन्द्रियाँ पूर्ण विकसित होती हैं । इसके पेट अथवा उदर के अंतिम सिरे पर एक आरी के समान डंक होता है जिसे ये अपने व अपनी कॉलोनी के बचाव के लिये ही प्रयोग में लाती है ।
श्रमिक मधुमक्खियाँ डंक का प्रयोग करने के उपरांत कुछ समय बाद मर जाती है । अतः ये अपने डंक का प्रयोग बहुत ज्यादा मजबूरी आने पर ही करती है । मधुमक्खी कॉलोनी में श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या सर्वाधिक (95 से 99 प्रतिशत) होती है ।
सक्रिय समय मार्च-अप्रैल तथा सितम्बर-अक्टूबर में इनकी आयु 6 से 7 सप्ताह एवं सर्दियों में 6 माह तक होती है । ये अपने जीवन का पहला आधा भाग कॉलोनी में रहकर विभिन्न कार्य जैसे-अण्डे, लार्वा का पालन-पोषण, रानी व नरों को भोजन कराने, मोम पैदा कर नये छत्ते बनाने, पुराने छत्तों की मरम्मत करने बड़ी मक्खियों द्वारा लाये गये मकरंद को विभिन्न कोष्ठों में रखने मकरंद से शहर तैयार करने तथा शत्रुओं से कॉलोनी की रक्षा करने आदि में व्यतीत करती है । ये सर्दी या गर्मी में अपनी कॉलोनी का तापमान 32-36० से के मध्य रखती है ।
जीवन के शेष समय में ये कालोनी से बाहर का कार्य करती है, जैसे फूलों से पराग एवं मकरंद लाना, अधिक पराग व मकरंद देने वाले पौधों की खोज करना तथा दूरी आदि के विषय में कालोनी के अन्य सदस्यों को जानकारी देना इत्यादि । ये अपनी पूरी जिन्दगी कुंवारी रहती हैं ।
अधिक समय तक रानी रही तो कॉलोनियों में ये अण्डे देने का कार्य आरंभ कर देती है और एक कोष्ठ में एक से अधिक अण्डे देती है । इस प्रकार के श्रमिकों को ‘लेइंग कर्मी’ कहते हैं । संभोग न कर सकने के कारण इनके अण्डे अनिषेचित होते हैं जिसके कामनमें अण्डे से केवल नर ही पैदा होते हँ । इस प्रकार की कॉलोनियां धीरे-धीरे पूर्णतया नष्ट हो जाती है ।
iii. नर (Drone):
ये मधुमक्खी कॉलोनी के नर सदस्य होते हैं । ये शरीर में श्रमिक व रानी मधुमक्खियों से अधिक मोटे, मजबूत व बड़े होते हैं परन्तु लम्बाई में छोटे होते हैं । उदर व पेट का पिछला सिरा कुछ गोलाई लिए होता है । इनमें डंक, पराग व मकरंद एकत्रित करने के अंग व मोम ग्रन्थियाँ आदि नहीं होती हैं इनकों श्रमिक मधुमक्खियाँ भोजन व पोषण इत्यादि कराती है ।
इनका प्रमुख कार्य रानी के साथ संभोग करना है । नर केवल एक बार संभोग करते हैं व इसके उपरान्त मर जाते हैं । इनकी आयु 57 दिन की होती है । अण्डे से पूर्व विकसित नर बनने में 24 दिनों का समय लगता है । वर्षा व सर्दी में इनकी संख्या नगण्य रहती है ।
जब नई रानी कॉलोनी में ठीक ढंग से अण्डे देना आरंभ कर देती है तब कॉलोनी में इनकी आवश्यकता नहीं होती है तब श्रमिक मधुमक्खियाँ इनको भोजन देना बंद कर देती है तथा कॉलोनी से इनका निष्कासन कर दिया जाता है । इस कारण भूख व ठण्ड से इनकी मृत्यु हो जाती है । इन्हें निखट्टू के नाम से भी जाना जाता है ।
5. मधुमक्खी का जीवन-चक्र (Life Cycle of Honeybee):
मधुमक्खी के जीवन-चक्र में चार अवस्थाएं-अंडा, लार्वा, प्यूपा व वयस्क होती है । मधुमक्खियों की रानी दो प्रकार के अण्डे देती है- निषेचित और अनिषेचित । अंडो का स्फ़ुटन 3 दिनों में होता है और लार्वा बाहर आता है ।
मधुमक्खियां अपना काम करना प्रारंभ कर देती है जो छत्ते की सफाई के साथ-साथ विकसित होते लार्वा को आहार खिलाना है इसी बीच श्रमिक मधुमक्खियों के सिर क्षेत्र में ‘रॉयल-जैली’ बनना शुरू हो जाता है जिसे वे छोटे लार्वों को 2 दिनों तक एवं रानी लावों को 6 दिनों तक खिलाती है ।
रॉयल जैली का बनना 10-13 दिनों तक जारी रहता है । लगभग 12 दिनों पश्चात् मधुमक्खी के उदर की निचली ओर मोम ग्रंथियों बनती हैं जिससे निकले मोम का प्रयोग छत्ते के कोष्ठों के निर्माण में होता है । मधुमक्खी के जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में जानकारी तालिका 13.1 में दी जा रही है । रानी की जीवन अवधि 2-4 वर्षों की हो सकती है मगर श्रमिक एवं नर मधुमक्खियों की आयु अधिकांशतः वातावरण की अवस्थाओं पर निर्भर करती है जो तालिका 13.2 में दिखायी गयी है ।
6. मधुमक्खियों के रोग (Diseases of Honeybee):
i. एकरइना रोग:
यह रोग एक विशेष प्रकार की माइट एकेरस वुड़ी के संक्रमण द्वारा होता है । ये माइट मधुमक्खी की श्वासनली में घुसकर रस चूसती है फलस्वरूप मधुमक्खी को श्वास लेने में परेशानी होती है । इस रोग के अत्यधिक प्रकोप की दशा में सम्पूर्ण कॉलोनी नष्ट हो जाती है ।
उपचार:
इस रोग से बचाव के लिये प्रतिदिन 5 मिली फार्मेलिन को पात्र में 21 दिनों तक छत्ते के निकट रखने से इस माइट का प्रकोप कम हो जाता है ।
ii. नोसेमा रोग:
यह रोग एक प्रोटोजोआ, नोसेमा एपिस के कारण होता हैं रोग से प्रभावित मधुमक्खियाँ छत्ते को छोड़ कर बक्से के बाहर एकत्रित होने लगती हैं । वे उड़ नहीं पाती । शरीर चमकीला व चिकना दिखाई देता है व उनकी अति में सूजन आ जाती है ।
उपचार:
फ्यूमेजिन औषधि 0.5 से 3.0 मिलीग्राम को 100 ग्राम चीनी के धोल में मिलाकर मधुमक्खियों को देना चाहिये ।
iii. थाईसेकब्रूड रोग:
यह विषाणु जनित रोग है । मधुमक्खियाँ पराग व शहद एकत्रित करने में असमर्थ हो जाती हैं । वे तीन माह के अंदर मर जाती हैं ।
उपचार – फ्यूमेजिन औषधि से उपचार करना चाहिए ।
शत्रु:
इसके अन्तर्गत ऐसे कीट आते हैं जो शहद खाते हैं तथा कुछ छत्तों में घुसकर मोम को खाते हैं एवं शहद चूसते हुए सुरंगें बनाते हैं । इसमें मोमी माथ, चीटियाँ शामिल है । इसी प्रकार कुछ चिडिये व बर्र इनका शिकार करती हैं । इसमें मुख्यतः कौआ व बर्र प्रमुख हैं ।