कीड़ों में रूपांतर की प्रक्रिया | Process of Metamorphosis in Insects in Hindi.
कीटों को अण्डे से वयस्क तक के विकास के दौरान अनेक अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है । इस प्रकार कीटों के जीवन चक्र में अण्डे से लेकर वयस्क अवस्था तक पहुँचने के दौरान होने वाले ये परिवर्तन, रूपांतरण या भ्रूणोपरान्त विकास कहलाता है ।
कीटों में विकास के दौरान अनेक बार त्वचा गिरायी जाती है अर्थात् पुरानी त्वचा को हटाकर उसके स्थान पर नयी त्वचा आ जाती है इस प्रक्रिया को निर्मोचन कहते हैं । प्रत्येक निर्मोचन के बीच की कीट अवस्था को इन्सटार तथा दो निर्मोचन के बीच के समय को स्टेडियम कहते हैं । पुरानी त्यागी गयी त्वचा को निर्मोचित त्वचा कहते हैं । कीटों में रूपान्तरण में विविधता पायी जाती है ।
एसिग नामक वैज्ञानिक ने कीट रूपान्तरण को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया है:
1. एमेटायोला (Ametabola):
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इस प्रकार के रूपान्तरण में केवल कीट के आकार में वृद्धि होती है तथा अन्य कोई बाहरी अन्तर मालूम नहीं पडता है । इस प्रकार का रूपान्तरण एटेरीगोटा तथा फैसमिडा, आइसीप्टोरा एवं एनाप्लूरा समूह के कीटों में पाया जाता है ।
उदाहरण- सिल्वर फिश ।
2. मेटाबोला (Metabola):
इस प्रकार के रूपान्तरण में कीटों में स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देते है ।
इसे पुनः निम्नलिखित भागों के विभक्त किया गया है:
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(i) पारोमेटाबोला (Paurometabola):
इस प्रकार के रूपान्तरण में कीट धीमे-धीमे परिवर्तन के बाद शिशु से वयस्क में बदलता है । इसे साधारण रूपान्तरण कहते हैं । शिशु निम्फ कहलाता है ये प्रायः वयस्क से मिलता-जुलता है केवल इसमें जनन उपांग व पंखों का अभाव होता है । इस प्रकार का रूपान्तरण एक्सोप्टेरीगोटा कीटों में पाया जाता है ।
उदाहरण – आर्थ्रोप्टेरा, हेमीप्टेरा इत्यादि कीट गण ।
(ii) हेमीमेटाबोला (Hemimetabola):
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यह भी एक प्रकार का साधारण रूपान्तरण है यहाँ पर शिशु निम्फ नहीं कहलाते हैं वरन् वे नोएड कहलाते हैं तथा ये जलीय जीवन के अनुकूल होते हैं जबकि वयस्क कीट जमीन पर रहने वाले या वायुवीय होते हैं ।
उदाहरण – ओडोनाटा गण (बेगन फ्लाई) ।
(iii) होलोमेटाबोला (Holometabola):
इस प्रकार का रूपान्तरण पूर्ण रूपान्तरण कहलाता है । इसमें शिशु को लारवा कहते हैं तथा ये वयस्क कीट से बिल्कुल ही भिन्न होता है । इसमें विकास के दौरान चार अवस्थाएँ – अण्डा, लारवा, प्यूपा तथा वयस्क पायी जाती है । लारवा अवस्था प्रायः पत्तियाँ, अनाज या अन्य वस्तुएँ खाता है ।
पूर्ण विकसित लारवा, प्यूपा में बदल जाता है । प्यूपा अक्रियाशील होता है एवं भोजन नहीं करता है । प्यूपा से वयस्क कीट निकलता है । लारवा अपने आकार प्रकार के आधार पर कई तरह की होती है जिसके बारे में आगे जानकारी दी गयी है ।
उदाहरण- लेपिडोप्टेरा गण के कीट ।
(iv) हाड़परमेटाबोला (Hypermetabola):
इस प्रकार के रूपांतरण में लारवा कि विभिन्न अवस्थाएँ एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होती है । जैसे प्रथम अवस्था लारवा में टांगें या आँख पायी जाती है जबकि द्वितीय अवस्था में ये अंग अनुपस्थित रहते हैं ।
उदाहरण – हायमनोप्टेरा गण के कुछ कीट ।
(v) पोलीमेटाबोला (Polymetabola):
इस प्रकार के कीटों में एक अण्डे से कई लारवी निकलती हैं, इसे बहुभ्रूणियता कहते हैं तथा इस प्रकार के रूपान्तरण को पोलीमेटाबोला कहते हैं ।
उदाहरण – चेल्सीडिडी व आइटोनिडिडी कुल के कुछ कीट ।
लार्वा के प्रकार (Types of Larvae):
अण्डों से निकलने वाले लार्वा कई प्रकार के होते हैं:
I. ओलिगोपाड़ (Oligopod):
इस प्रकार के लारवी में वक्षीय टाँगें पूर्ण विकसित तथा सरसाई को छोड्कर शेष सभी उदरीय उपांग अनुपस्थित होते हैं ।
ओलिगोपाड लारवी पुन: दो भागों में विभक्त की गयी है:
(a) कम्पोडीफार्म:
इस प्रकार के लार्वा का शरीर कुछ लम्बा व चपटा होता है । इनमें सरसाई व एन्टीनी पूर्ण वकसित होती है तथा पंख कलिकायें व संयुक्त नेत्र अनुपस्थित होते हैं ।
उदाहरण – न्यूरोप्टेरा व कोलियोप्टेरा गण के कीट ।
(b) स्केरेबीफार्म (Scarabaei Form):
इस प्रकार के लार्वा ‘सी’ (C) आकार के तथा झुके सिर वाले होते हैं । इनकी वक्षीय टांगें छोटी होती हैं ।
उदाहरण – कोलियोप्टेरा गण के स्केरेबिडी कुल के कीट ।
II. प्रोटोपाड (Protopod):
इस प्रकार के लार्वा कुछ हायमेनोप्टेरा परजीवियों में पाये जाते हैं । इन कीटों के अण्डों में अण्डपीत की मात्रा कम होती है अतः ये अण्डे भ्रूणावस्था में जल्दी ही फूट जाते हैं । लार्वा, पोषी कीट के ऊपर विकसित होते हैं ।
III. पोलीपाड़ (Polypod):
इनको ईरुसीफार्म लारवी भी कहते हैं । इस प्रकार के लार्वा का शरीर बेलनाकार, सिर पूर्ण विकसित तथा छोटे एन्टीनीयुक्त होता है । इनमें वक्षीय व उदरीय टाँगें सुस्पष्ट होते हैं । इन लार्वा को कैटरपीलर भी कहते हैं तथा लैपीडोप्टेरा गण के कीटों में इस प्रकार की लार्वा पायी जाती है ।
IV. एपोडस (Apodous):
इन लार्वा का शरीर लम्बा व बेलनाकार होता है । इनमें सिर व टाँगें अनुपस्थित होती है इस प्रकार की लार्वा डिप्टेरा गण के कीटों में पायी जाती है ।
प्यूपा के प्रकार (Types of Pupae):
उपागों की स्थिति के अनुसार प्यूपा को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है:
1. डेक्टिकल प्यूपा (Decticous Pupae):
इस प्रकार के प्यूपा में अपेक्षाकृत मजबूत व कठोर मेंडिबल पाया जाता है । प्यूपा के उपांग इसके शरीर से चिपके हुए न होकर मुक्त होते हैं तथा इनका उपयोग प्रायः चलने में किया जाता है ।
उदाहरण – न्यूरोप्टेरा, मेकोप्टेरा गण व लेपिडोप्टेरा गण के कुछ कीट ।
2. एडेक्टिकस प्यूपा (Adecticous Pupae):
इस प्रकार के प्यूपा में मेन्डीबल कमजोर तथा प्रायः निष्क्रिय अवस्था में होता है ।
ऐडेक्टिकस प्यूपा दो प्रकार के होते हैं:
(क) एक्सारेट प्यूपा (Exarate Pupae):
इस प्रकार के घूमा में उपांगों का शरीर से कोई संबंध नहीं होता है तथा ये स्वतंत्र होते हैं ।
उदाहरण – गण सायफेनोप्टेरा, स्ट्रेप्सीप्टेरा, कोलियोप्टेरा आदि ।
(ख) आवटेक्ट (Obtect Pupae):
इन प्यूपा में उनके उपांग शरीर से चिपके हुए रहते हैं तथा अन्तिम निर्मोचन के समय उत्पन्न स्राव की सहायता से प्यूपा के शरीर से जुड़े रहते हैं । उदाहरण उच्चतर लेपिडोप्टेरा गण के अधिकांश कीट ।