कीड़े का वर्गीकरण | Read this article in Hindi to learn about the Classification of Insects!
जन्तुओं को दो मुख्य भागों में बांटा गया । उच्चकोटि के जन्तु जिनमें सभी मेरुदंडीय जन्तु शामिल है और शेष मेरुदंड विहीन जन्तु है ।
वैज्ञानिकों द्वारा जन्तुओं को निम्नलिखित शाखाओं में विभाजित किया गया है:
1. इन्सेक्टा (Insecta):
इन्सेक्टा या कीट वर्ग के जन्तुओं को अनेक गणों में विभाजित किया गया है । यह जन्तुशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अंग है इसके अंतर्गत लगभग 50 लाख कीट जातियाँ संपूर्ण विश्व में पायी जाती हैं ।
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कीट वर्ग की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है, इनका शरीर तीन मुख्य भागों में विभक्त होता है:
i. सिर
ii. वक्ष
iii. उदर
ADVERTISEMENTS:
वक्ष पर 3 जोड़ी पैर पाए जाते हैं । इस कारण कीटों को षटपदीय भी कहा जाता है । वयस्कों में दो जोड़ी पंख भी पाए जाते हैं । कीटों के सही प्रकार से अध्ययन हेतु उनका वर्गीकरण करना अत्यंत आवश्यक होता है । कीटों का वर्गीकरण मुखांगो, पंखों शारीरिक लक्षणों तथा रूपांतरण के आधार पर किया जाता है ।
कीटों का आधुनिक वर्गीकरण ए.डी. इम्स ने किया जिसका वर्णन निम्नलिखित है:
I. उपवर्ग-एप्टेरीगोटा (Apterygota):
इस उपवर्ग के अन्तर्गत वे कीट आते हैं जो अंशतः या पूर्णरुपेण पंखहीन होते हैं । वयस्क कीटों में मैण्डीबल्स प्रायः घूम सकने वाले होते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नलिखित गण पाए जाते हैं:
1. थाइसेन्यूरा
2. डिप्लूरा
3. प्रोट्यूरा
4. कोलेम्बोला
II. उपवर्ग-टेरीगोटा (Pterygota):
इस उपवर्ग के अन्तर्गत पंखयुक्त कीट शामिल किए गये हैं इनमें विभिन्न प्रकार का रूपांतरण होता है । प्रौढ कीटों में मेन्डीबलस दो स्थानों में जुड़े होते हैं ।
इस उपवर्ग के दो विभाग किए गए हैं:
श्रेणी-1:
एक्सोप्टेरीगोटा (Exopterygota):
रूपांतरण साधारण होता है । पंख बाहर की ओर विकसित होते हैं । शिशु अवस्था निम्फ कहलाती है, स्वभाव व संरचना में प्रौढ़ के समकक्ष होते हैं मगर इनमें जननांग अविकसीत होते है ।
इस उपविभाग के अन्तर्गत निम्नलिखित गण पाए जाते हैं:
i. इफीमेरोप्टेरा
ii. ओडोनाटा
iii. प्लीकोप्टेरा
iv. ग्राइलीब्लाटोडिया
v. आर्थोप्टेरा
vi. फेस्मीडा
vii. डर्मोप्टेरा
viii. इम्बियोप्टेरा
ix. डिक्टियोप्टेरा
x. आइसोप्टेरा
xi. जूरीप्टेरा
xii. सोकोप्टेरा
xiii. मैलोफेगा
xiv. साइफनकुलाटा
xv. हेमिप्टेरा
xvi. थाइसेनोप्टेरा
श्रेणी-2:
इंडोप्टेरीगोटा (Endopterygota):
इन्हें होलोमेटाबोला भी कहते है । इनमें रूपांतरण जटिल होता है जिसमें एक प्यूपावस्था पायी जाती है । पंखों का विकास आंतरिक होता है । इनकी अविकसित अवस्था लारवा कहलाती है जो संरचना तथा स्वभाव में वयस्क से भिन्न होती है ।
इस उपविभाग के अन्तर्गत निम्नलिखित गण पाए जाते हैं:
i. न्यूरोप्टेरा
ii. मिकोप्टेरा
iii. लेपिडोप्टेरा
iv. ट्राइकोप्टेरा
v. डिप्टेरा
vi. साइफोनोप्टेरा
vii. हाइमेनोप्टेरा
viii. कोलिओप्टेरा
ix. स्ट्रैप्सीप्टेरा
प्रत्येक गण अनेक कुलों में विभक्त होता है । प्रत्येक कुल में अनेक जीनस तथा प्रजाति पायी जाती है । इस प्रकार से प्रत्येक कीट का नाम दो खंडों का होता है, प्रथम खंड जीनस को इंगित करता है तथा दूसरा खंड स्पीशिज का जैसे हैलियोथिस आर्मीजेरा इस प्रकार के नामांकरण को द्विनाम पद्धति कहते हैं इस पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग 1758 में लिनियस ने किया था ।
कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण कीट गणों व महत्वपूर्ण कुलों के बारे में संक्षेप में जानकारी निम्नलिखित है:
(a) गण-आर्थोप्टेरा (Orthoptera):
(आर्थो-सीधा, टेरा-पंख)
लक्षण:
i. सिर सीधा जबडायुक्त
ii. मुखांग काटने-चबाने वाले
iii. पश्च पाद कूदने के लिए उपयुक्त
iv. टिबिया पर कर्णपटक विद्यमान
(b) कुल-टेट्टीगोनिडी (Tettigonidae):
टेग्मिना शरीर के किनारे नीचे की ओर बढ़ा हुआ होता है । नर कैटी-डिड जैसी घनी उत्पन्न करते हैं इसलिए ये कैटीडिड् के नाम से भी जाने जाते है ।
उदाहरण- होलोक्लोरा एल्बिडा
मेकोपोडा एलोनोटा
(c) कुल-शिजोडेक्टायलिड़ी (Schizodactylidae):
पंख लंबे व घड़ी की स्प्रिंग के आकार में मुड़े होते हैं ।
उदाहरण- शिजोडैक्टायलस मोन्स्ट्रासस ।
(d) कुल-ग्रायलिडी (Gryllidae):
सिर बड़ा, अग्रवक्ष स्पष्ट व टेग्मिना अपनत होते हैं । उदाहरण ग्रायलोडेस मेलैनोसेफैलस ।
(e) कुल-ग्रायलोटैल्पिड़ी (Gryllotalpidae):
इनका आकार बड़ा (25 मि.मि. से भी अधिक लंबा) आगे वाले पैर मिट्टी खोदने के लिए रूपान्तरित होते हैं ।
उदाहरण – ग्रायलोटैल्पा एफ्रिकैनस
ग्रा. ग्रायोटैल्पा
(f) कुल-एक्रिडिडी (Acrididae):
एन्टीनी छोटी, पिछली टांगें सुविकसीत व पुष्ट तथा फीमर लम्बी, अग्रवक्ष नीचे किनारे की ओर आगे वाले पैरों तक बढ़ा हुआ, टार्साई तीन खंडीय होती है ।
उदाहरण – लोकस्टा माइग्रेटोरिया, शिस्टोसर्का ग्रेगेरिया, हायरोग्लायफस बेनियान, हा. निग्रोरेप्लेटस ।
2. गण-आइसोप्टेरा (Isoptera):
(आइसो (Iso) – सम: टेरा-पंख)
लक्षण:
a. पंख समविधिक
b. कम विकसित शिरा विन्यास
c. अनुप्रस्थ शिराएँ अनुपस्थित
d. सामाजिक कीट, श्रम का विभाजन ।
(i) कुल-मस्टोटरमिटिड़ी:
टारसाई अधिकांशतः 4 खंडीय परन्तु यदाकदा 5 खंडीय होती है । पश्च पंखों में एनल लोब नहीं होता है । वक्ष चौड़ा होता है ।
उदाहरण – मेस्टोटर्मस डावेंन्सीस ।
(ii) कुल-कैलोटरमिटिड़ी:
इनमें उपनेत्र प्रायः उपस्थित होते हैं, श्रमिक नहीं होते तथा निम्फ श्रमिकों का कार्य करते हैं । टारसाई 4 खंडीय होती है । प्रोनोटम चौड़ा तथा चपटा होता है ।
उदाहरण- केलोटर्मस स्पी., नियोटर्मसस्पी
(iii) कुल-टरमिटिड़ी:
श्रमिकों व सैनिकों में प्रोटोटम सकरा होता है । श्रमिक पाए जाते है, संयुक्त नेत्र उपस्थित होते हैं ।
उदाहरण – ओडेन्टोटर्मीस ओबीसस, माइक्रोटर्मस स्पी. ।
(iv) कुल-होडोटरमिटिड़ी:
संयुक्त नेत्र व उपनेत्र अनुपस्थित होते हैं । प्रोनोटम सिर से संकरा होता है । एन्टीनी 24 से 28 खंडीय होते है । कुछ कीटों में श्रमिक पाए जाते हैं ।
उदाहरण- होडोटर्मस स्पी.
(v) कल-रहाड़नोटरमिटिड़ी:
संयुक्त नेत्र उपस्थित होते हैं, श्रमिकों व सैनिकों में प्रोनोटम चपटा होता है । श्रमिक कीट उपस्थित होते हैं ।
उदाहरण- राइनोटर्मस स्पी.
3. गण-हेमीप्टेरा (Hemiptera):
(हेमी – आधा: टेरा-पंख)
लक्षण:
1. सूक्ष्म से लेकर मध्यम आकार के कीट ।
2. मुखांग चुभाने तथा चूसने वाले होते हैं ।
3. एन्टीनी प्रायः 2 से 10 खंडीय ।
4. संयुक्त नेत्र बड़े व उपनेत्र उपस्थित या अनुपस्थित होते हैं ।
5. पंख दो जोड़ी व कभी-कभी अनुपस्थित ।
6. टारसाई एक से तीन खंडीय ।
गण हेमीप्टेरा को पंखों की उपस्थिति व स्थिति के अनुसार दो उपगण २०६- होमोप्टेरा व हेट्रोप्टेरा में विभक्त किया गया है ।
उपगण- होमोप्टेरा (Homoptera):
इसके अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण कीट कुल निम्नलिखित हैं:
(1) कुल-फल्गोरिडी:
सिर गोल व काफी बढ़ा हुआ होता है, श्रृंगिकाएँ तीन खंडीय एवं पंख झिल्लीदार होते हैं ।
उदाहरण – पायरिला परपुसिला, धान का भुरा फुदका, नीलापर्वता लुगेन्स ।
(2) कुल-सिकैडिडी:
सिकाडा अपनी विशिष्ट ध्वनि के लिए जाने जाते हैं । नर में उदर के आधार पर ध्वनि उत्पन्न करने वाले अंग पाए जाते हैं । पंख झिल्लीदार व आँखों के त्रिकोणों के बीच तीन नेत्रक पाए जाते है । ये कीट प्रायः जंगलों में पाए जाते हैं व इनका जीवन चक्र कई वर्षों में पूर्ण होता है ।
उदाहरण- सिकाडा स्पी.
(3) कुल-मेम्ब्रैसिडी:
ये छोटे तथा सुस्त कीट होते है । सिर ऊर्ध्वाधर होता है, प्रोनोटम इतना बढ़ा हुआ होता है आगे की ओर सिर तथा पीछे स्कूटेलम को ढंकता है ।
उदाहरण – आक्सीरैंकिस टेरेन्डस ।
(4) कुल-जैसिडी:
छोटे आकार के कीट, प्रायः फुदकने वाले हरे, पीले, या धूसर रंग युक्त, पश्च टिबीया पर शूल पाए जाते हैं ।
उदाहरण – इडिओसेरस ऐटकिन्सोनी
(5) कुल-ऐल्युरोडिडी:
शरीर एवं पंख सफेद मोम जैसे चूर्ण से डंका रहता है, अपरिपक्व अवस्था शल्क के समान होती है । ये सफेद मक्खी के नाम से जानी जाती है ।
उदाहरण- एल्यूरोलोबस बरोडेन्सिस, डाइएल्यूरोडेस युजिनी ।
(6) कुल-एफिडिड़ी:
शरीर कोमल, हरापन/पीलापन/कालापन लिए होता है, श्रृंगीकाएँ तथा पैर पूर्ण विकसित होते हैं, पंख युक्त व पंखहीन अवस्थाएँ विद्यमान होती हैं । पंख युक्त अवस्थाओं में दो जोड़ी पारदर्शी पंख पाए जाते हैं । छठे उदर खंड के पृष्ठ पर एक जोडी नलिका जैसी रचना पायी जाती है जो कार्निकिल कहलाती है । इनसे हनी ड्यू स्रावित होता है ।
उदाहरण- माइजस पर्सिकी, लाइफैफिस एराइसिमी ।
(7) कुल-डासस्पिडी:
ये कीट कवचित शल्क कहलाते हैं ।
उदहारण – पैरेलेटोरिया जिजिफस, ऐस्पिडिओटस हार्टाई ।
(8) कुल-कोक्सिड़ी:
ये कीट प्रायः झुण्डों में पाया जाता है । मादा पंखरहित होती है, एन्टीनी छोटी व आठ खंडीय होती हैं, टाँग छोटी व टारसाई एक खंडीय होती है । नरों में मुखांग नहीं होते हैं ।
उदाहरण – ड्रोसिवा मैन्जीफेरा ।
(9) कुल-लैक्रिकेरिड़ी:
ये कीट अति सूक्ष्म एवं लाख द्वारा ढंकी टहनियों पर चिपके रहते हैं । मादा आकार में अर्द्धगोलाकार होती है, टाँगें व उदरीय श्वसन छिद्र नहीं होते हैं, रोस्ट्रम द्विखंडीय होती है नर कीट पंखयुक्त व पंखहीन होते हैं ।
उदाहरण – लेसिफर लेक्का ।
उपगण- हेट्रोप्टेरा:
इस उपगण के अन्तर्गत कुछ महत्वपूर्ण कीट कुल निम्नलिखित है:
(i) कुल-स्कुटेलेरिडी:
शरीर ढाल के आकार का होता है, स्कुटेलम इतना बड़ा होता है कि उदर तथा पंखों को भी ढक लेता है ।
उदाहरण- स्कूटेलेरा नोबिलिस ।
(ii) कुल-पेन्टाटोमिडी:
पंख उदर को पूर्ण रूप से नहीं ढकता, कुछ कीट जातियों में गंधक युक्त ग्रंन्थियाँ विद्यमान होती हैं । (चित्रित मत्कुण/बग)
उदाहरण- बगराड़ा क्रूसीफेरेम, नेजारा विरिडुला ।
(iii) कुल-कोरिडी:
मध्यम आकार वाले बग या मत्कुण होते हैं, इनकी श्रृंगिकाएँ चार खंडीय होती हैं, नेत्र व नेत्रक पूर्ण विकसित होते है, सिर अग्रवक्ष की अपेक्षा बहुत अधिक पतला व छोटा, पैरों में टिबीया व फीमर पर पत्ती के आकार की फैली हुई रचनाएँ पायी जाती हैं ।
उदाहरण – लेप्टोकोराइजा एक्यूटा, ले. वेरीकार्निस, क्लैवीग्रेला स्पी. ।
(iv) कुल-लाइजिड़ी:
गहरे घूसर अथवा चमकीले रंग के कीट, लंबे आकार के मत्कुण/बग, श्रृंगिकाएँ चार खंडीय एवं सिर के किनारे से जुड़ी हुई होती है ।
उदाहरण – ओक्सीकैरेन्स लीटस ।
(v) कुल- पाड़रोकोरिडी:
मुखांग चोच के समान होते हैं श्रृंगिकाएँ चार खंडीय होती हैं, नेत्रक का अभाव होता है । टाँगों में एरोलियम पाए जाते हैं, टारसोई तीन खंडीय होती है ।
उदाहरण – डिस्कर्कस सिंगुलेटस ।
(vi) कुल- टिंजिंड़ी:
छोटे अथवा बहुत छोटे आकार के मत्कुण होते है सिर का पृष्ठ (डोरसम) अग्रवक्ष तथा हेमीइलाइट्रा जालिकाकार होते हैं । शरीर चपटा व कांटेदार व श्रृंगिकाएँ चार खडीय होती है । नेत्रकों का आभाव होता है । पंजों पर एरोलियम नहीं होते हैं ।
उदाहरण- स्टफैनिटिस टिपिकस, लेप्टोफार्सा अय्यराई ।
(vii) कुल- सिमिसिड़ी:
अंडाकार, चपटे शरीर वाले मत्कुण, पंखहीन बाह्य परजीवी है इनमें श्रृंगिकाएँ चार खंडीय होती हैं व नेत्रकों का पूर्ण अभाव होता है । मेटाप्लूरल खंड में गंधयुक्त ग्रन्धियाँ पायी जाती हैं । ये कीट प्रायः रात्रिचर होते हैं ।
उदारहण – साइमेक्स रेटेन्डस (खटमल) ।
(viii) कुल- बेलेस्टोमिड:
ये दीर्घाकार जल मत्कुण होते हैं । नवजात मछलियों तथा टैडपोल आदि का शिकार करते हैं । इनका शरीर चपटा तथा पश्च पैर तैरने के लिए अनुकूलित होते हैं ।
उदाहरण – लेथोसर्कस गैडिंस ।
(ix) कुल- नेपिडी:
दो खांचेदार तन्तुओं से मिलकर बनी एक खोखली श्वास नलिका इस कुल के कीटों की विशिष्ट पहचान है । इन्हें जल बिच्छू भी कहते हैं ।
उदाहरण – रैनेट्रा इलॉनोटा, लेक्टोट्रेफिस मैकुलेटस ।
4. गण- थाइसैनोप्टेरा (Thysonoptera):
(थायसे (Thyso) – झालर; टेरा-पंख)
1. सिर अधरहनु होता है ।
2. मुखांग रेतने व चूसने वाले होते हैं ।
3. श्रृंगिकाएँ फ्रांस से जुड़ी होती हैं ।
4. दो जोड़ी झालरदार पंख विद्यमान होते हैं ।
कुल-थ्रिपिड़ी:
उदाहरण- थ्रिप्स टैबेसाई
5. गण-लेपिडोप्टेरा (Lepidoptera):
(लेपिडो (Lepido) – शल्क; टेरा पंख)
i. मुखांग घुमावदार लपेटी जाने वाली सूँड के आकार के होते है ।
ii. शृंगिकाओं का सिरा मुगदर के आकार का तितलियों पर, शलभों में इससे भिन्न होता है ।
iii. शल्कों से ढके दो जोड़ी पंख विद्यमान होते हैं ।
iv. सिर छोटा व हायपीग्नेथस होता है तथा गर्दन द्वारा वक्ष से जुड़ा रहता है ।
v. संयुक्त नेत्र बड़े व दो जोड़ी नेत्रक होते हैं ।
vi. टारसाई 5 खंडीय होती है ।
vii. उदर 10 खंडों वाला होता है ।
viii. पूर्ण रूपांतरण होता है ।
इस गण को निम्नलिखित तीन उपगणों में विभक्त किया गया है:
(a) उपगण-ज्यूग्लोप्टेरा:
I. वयस्कों में कार्यशील मैंडीबल्स होते हैं ।
II. लैसिनिया पूर्ण विकसित तथा गैलिया, होस्टेलम युक्त नहीं होता है ।
III. मादा जनन कक्ष मूल अंडवाहिनी में खुलती है । इस उपगण में कृषि महत्व की दृष्टि से कोई कुल नहीं है ।
(b) उपगण-मोनोट्राड़सिया:
I. वयस्क कीटों में मेंडीबल्स कार्यशिल नहीं होते हैं ।
II. लैसिनिया नहीं होता है ।
III. मादा में प्रायः 9वें र्स्टनाइट पर एक ही जनन छिद्र होता है ।
इस उपगण के अंतर्गत भी कृषि महत्व का कोई कुल नहीं है ।
(c) उपगण- डाइट्राइसिया:
I. इन कीटों की मादाओं में 8वें र्स्टनाइट पर एक मैथुन छिद्र तथा 8वें व 9वें र्स्टनाइट पर एक अंड छिद्र होता है ।
II. अगली जोड़ी पंख बिना जुगम के एवं पिछली जोड़ी पंखों में फ्रेनुलम विद्यमान होता है ।
कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण कुल इस उपगण में आते हैं ।
कुछ महत्वपूर्ण कुल निम्नलिखित है:
(i) कुल- गैलीचिड़ी:
लेबिअल पैल्पाई ऊपर की ओर मुड़ी होती हैं । अगले पंख, पिछली जोड़ी पंखों की अपेक्षा अधिक संकरे होते हैं ।
उदाहरण – पेक्टिनोफोरा गासिपिएला, थोरीमिया ओपरकुलेला ।
(ii) कुल- ग्रैसिलैरिड़ी:
पंख लंबे झालरदार होते हैं । कैटरपिलर सामान्यतः पर्ण सुरंगक होते हैं ।
उदाहरण – फाइलोनिस्टिक सिट्रेला ।
(iii) कुल- प्लुटेलिडी:
विश्राम की अवस्था में श्रृंगिकाएँ आगे की ओर रहती हैं । नर में जब पंख पर्त किए हुए होते हैं तो पंखों के मिलने की रेखा पर तीन पीले रंग के हीरे जैसी आकृति के निशान एक क्रम/श्रृंखला में दिखाई देते हैं । इसीलिए इन्हें हिरक पृष्ठ शलभ कहते है ।
उदाहरण – प्लूटेला जायलोस्टेला ।
(iv) कुल- टिनिडी:
मैक्सिलरी पैल्पाई लंबे होते हैं, टिबिया पर बाल पाए जाते हैं । सूँडियाँ कोष बनाकर उसी के अन्दर रहती है ।
उदाहरण – टीनिया पैकीस्पिला ।
(v) कुल- ओरनिओडिड़ी:
दोनों जोड़ी पंख कटकर पिच्छक बनते हैं तथा घने बालों से युक्त झालरदार होते हैं ।
उदाहरण – पिच्छक शलभ, ओर्निओडेस ।
(vi) कुल-यूकोस्मिड़ी:
शलभ का रंग भूरा अथवा घूसर होता है, पंख पर धारियाँ होती हैं । क्यूबिटस के मूल में लंबे बालों की झालर विद्यमान होती है । अग्रपंख में R3 व R4 पृथक-पृथक होती है ।
उदाहरण: – कार्पोकेप्सा पोमोनेला, लैस्पेरेसिया, ल्यूकोस्टोमा, लै. ट्राइसेन्ट्रा ।
(vii) कुल-गैलेरिड़ी:
अग्र पंखों का रंग धूसर होता है, मैक्सिली पैल्पाई तंतु के समान होती है ।
उदाहरण – गैलेरिया मेलोनेला, कोरसायरा सिफेलोनिका ।
(viii) कुल-क्रैम्बिड़ी:
शलभ का आकार छोटा होता है । अग्र पंख पतले व लंबे होते हैं । लेबिअल पैल्पाई पोरेक्ट तथा मैक्सिलरी पैल्पाई शल्क युक्त फैले हुए होते हैं ।
उदाहरण – काइलो पार्टेलस, डायट्रिया सैकेरैलिस ।
(ix) कुल-फाइसिटिड़ी:
शलभ छोटे व कोमल होते हैं । अग्र पंख लंबे होते हैं इनमें R5 का अभाव होता है । पश्च पंख के पृष्ठ पर बालों का गुच्छा पाया जाता है ।
उदाहरण – एफेस्टिया केटुला, प्लोडिया इंटरपंक्टेला ।
(x) कुल-पायरौस्टिडी:
फैले पंखों की लम्बाई 25 मि.मी. से भी अधिक होती है । पंखों का रंग पीलापन लिए धूसर होता है जिन पर गहरी धारियाँ होती हैं । अग्र पंख में R3 स्वतंत्र होती है ।
उदाहरण – ल्यूसिनोडेस ओर्बेनेलिस, एन्टीगैस्ट्रा, कैटेलौनेलिस ।
(xi) कुल-पायरैलिडी:
इनके अग्र पंख लंबे या तिकोने R5, R3 व R4 के साथ मिली हुई होती है । Cu शाखाओं में विभाजित होती है । लेबिअल पैल्पाई लंबे व बाहर निकलते हुए चोंच बनाते है ।
उदाहरण – पायरैलिस फैरिनैलिस, हेलुला अन्डैलिस ।
(xii) कुल-शीनोबिडी:
पतंगों का रंग सफेद होता है । अग्र पंख के केन्द्र में एक काला निशान हो सकता है । गुदा के अंत में नारंगी रंग के बालों का गुच्छा पाया जाता है ।
उदाहरण – सिर्पोफेगा निवेला ।
(xiii) कुल-सैटर्निडी:
पतंगा बड़े आकार का होता है, पंखों के आरपार की लंबाई लगभग 25 मि.मी. होती है । प्रायः एक गुदीय शिरा ताड़ होती है । लार्वा अपनी लार से रेशम पैदा करते हैं ।
उदाहरण – ऐन्थेरिया पैफिया, फिलोसोमिया रिसिनाई, ऐटेकस ऐटलस ।
(xiv) कुल-बोम्बोसिडी:
श्रृंगिकाएँ स्पष्ट: द्विकंधाकार होती है । SC, R3 कोशिका से एक अनुप्रस्थ शिरा से जुड़ी हुई होती है ।
उदाहरण – बोम्बीक्स मोराई ।
(xv) कुल-निम्फैलिडी:
नर-मादा दोनों में आगे वाले पैर अत्यंत क्षीण होते हैं, ये चलने के लिए प्रायः अनुपयुक्त होते हैं । ये ब्रश के समान पैरों वाली तितलियाँ भी कहलाती है ।
उदाहरण – डैनेस प्लोक्सिपस, एर्गोलिस मेरिओने ।
(xvi) कुल-लायकैनिडी:
पंख का ऊपरी हिस्सा चमकीला नीला, ताम्र के समान होता है । नीचे का हिस्सा धुंधले रंग का होता है तथा गहरे आँख युक्त धब्बे पाए जाते हैं । सूंडियाँ चपटी व सिर युक्त होती है ।
उदाहरण – विरोकोला आइसोक्रेट्स ।
(xvii) कुल-पायरिडी:
तितलियों का रंग सफेद होता है । सामान्यतः नर व मादाओं में लैंगिक द्विरूपता पाया जाता है । सूँडियाँ प्रायः हरे रंग की होती है ।
उदाहरण – पाइरिस रैपी ।
(xviii) कुल-पैपिलिओनिड़ी:
पश्च पंख में पुंछ के समान रचना पायी जाती है । तितलियों का आकार बड़ा व रंग चमकदार होता है । इन्हें स्वोलन टेल तितलियाँ भी कहते हैं । पश्च पंख में केवल एक शिरा पायी जाती है ।
उदाहरण – पेपीलियो डेमोलियस, पे. पोलेटेस ।
(xix) कुल-स्किजिंड़ी:
शलभ का शरीर पुष्ट तथा आकार बड़ा होता है । पंख रंगीन व सुंदर शल्कों से आच्छादित होते है । श्रृंगिकाएँ मोटी, ऊपर की ओर नुकीली व अंत में अंकुशयुक्त होती है । इन शलभों को हाक मॉथ कहते हैं ।
उदाहरण – ऐकेरोन्शिया स्टिक्स ।
(xx) कुल-आर्क्टिडी:
मध्यम आकार के शलभ जिनके शरीर पर प्रायः चमकीले रंग की धारियाँ होती हैं । सूंडियों के शरीर पर घने बाल होते हैं । ये रोमिल सूँड़ीयाँ कहलाती हैं ।
उदाहरण – ऐमसेक्टा मोराई, यूटेथीसा पल्चेला, डाइक्रीसीया आब्लीकुआ ।
(xxi) कुल-नोक्टुइड़ी:
इनके अग्र पंख पतले तथा पश्च पंख चौड़े होते है श्रृंगिका पतली होती है व नेत्रक पायी जाती है । यह आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण कीट कुल है ।
उदाहरण – स्पोडोप्टेरा लिटूरा, हैलियोथिस आर्मीजेरा, एग्रोटिस एप्सिलान, एरियास फेबीया, एकीया जेनेटा, ओथेरिस मेटर्ना ।
(xxii) कुल-लायमैन्ट्रीड़ी (Lymantridae):
नर व मादा में एक कंधाकार शृंगिकाएँ पायी जाती हैं । नेत्रकों का अभाव होता है । मादा में उदर के अंत में बालों का गुच्छा पाया जाता है । इन्हीं बालों से मादा अंडे देकर उन्हें ढक देती है ।
उदाहरण – यूप्रोक्टिस ।
6. गण-डिप्टेरा (Diptera):
(डाई (Di) = दो; टेरा-पंख)
i. छोटे से लेकर मध्यम आकार के कीट मक्खियाँ व मच्छर आदि इस गण के अंतर्गत आते हैं ।
ii. सिर हाइपोग्नेथस तथा मुखांग चुभाने-चूसने एवं स्पंजाकार होते हैं ।
iii. इनमें एक जोड़ी अग्रपंख होते हैं तथा पिछली जोडी पंख हाल्टयर्स बिताए में रूपांतरित होते हैं ।
iv. मैन्डिबल्स प्रायः अनुपस्थित होते हैं ।
v. संयुक्त नेत्र बड़े व नेत्रक उपस्थित रहते हैं ।
vi. टारसाई पांच खंडीय होते हैं ।
vii. अग्र तथा मध्य वक्ष छोटे व पश्च वक्ष अपेक्षाकृत बड़ा होता है ।
viii. पूर्ण रूपान्तरण पाया जाता है लारवा मैगट कहलाता है ।
गण डिप्टेरा को तीन उपगणों में विभक्त किया गया है:
(I) उपगण-नैमैटोमेरा:
श्रृंगिकाएँ सिर व वक्ष की मिली-जुली लंबाई से भी अधिक लंबी होती है तथा अनेक खंडों में विभाजित होती है । श्रृंगिका पर शूक अविकसित होता है । पैल्पाई 4-5 खंड में विभक्त होती है । तथा मैगेट में सिर पूर्प विकसित होता है ।
(II) उपगण-ब्रैकीसैरा:
श्रृंगिकाएँ तीन खंडीय तथा वक्ष की लंबाई से छोटी होती हैं । मैगेट में सिर का विकास अपूर्ण होता है । एस्सिटा यदि पाया जाता है तो अतस्थ होता है ।
(III) उपगण-साड़क्लोरैफा:
श्रृंगिकाएँ तीन खंडीय होती हैं । एरिस्टा पृष्ठ की ओर स्थित होती है । पैल्पाई केवल एक खंडीय होती है । मैगेट में सिर अवशेषी होता है ।
कुछ महत्वपूर्ण कुलों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित है:
i. कुल-कुलीसिड़ी:
शरीर पतला होता है, मुखांग बेधने व चूसने वाले होते हैं । पंखों के पिछले किनारे पर बाल व शल्क की झालर होती है श्रृंगिकाएँ पिच्छकी होती है । इन कीटों की अविकसित अवस्थाएं जलीय होती हैं ।
उदाहरण – एनोफेलीस कुलिसीफेसीस, एडिस एजिप्टाई, क्यूलेक्स पाइपिएन्स ।
ii. कुल-सोसिडोमायड़ी:
इस कुल में छोटी कोमल मक्खियाँ पायी जाती हैं । पंख लंबे बालों से आच्छादित रहते हैं । श्रृंगिकाएँ बालों के गुच्छों से ढकी रहती है । अपरिपक्व अवस्थाएँ मैगट होती हैं ।
उदाहरण – डेसीन्यूरा लाइनाई ।
iii. कुल-टैबेनिडी:
सिर पूर्ण रूप से विकसित होता है । भूमिकाओं की कशाभिका 4 से 8 खंडों में विभक्त होता है । नर कीट फूलों से मकरंद व रस चूसते हैं । जबकि मादाएं मानव व जानवरों का रक्त चूसती है । ये कीट पशुओं में एन्थरैक्स व सुर्रा रोग फैलाते हैं ।
उदाहरण – टैबनेस रूबिडम ।
iv. कुल-बोम्बीलिडी:
ये मधुमक्खियों के समान छोटी मक्खियाँ होती हैं । सिर छोटा व अर्द्धवृत्ताकार होता है जिन पर नेत्रक विद्यमान होते है । श्रृंगिकाएँ तीन खंडीय होती हैं । ये मौन मक्खियां भी कहलाती हैं ।
उदाहरण – बोम्बीलियम मेजर ।
v. कुल-ऐसिलिडी:
शरीर आकार में पतला एवं दोनों अस्त्रों के मध्य सिर में गड्ढा होता है । इन्हें दस्यु मक्खियां (सेबर फ्लाईज) कहते हैं ।
उदाहरण – एसिलस ।
vi. कुल- सिर्फिड़ी:
इन्हें होवर फ्लाई भी कहते हैं । इनके शरीर का रंग चमकीला होता है । पंख की झिल्ली का मोटा होना इनका विशिष्ट गुण है । इनके मैगट माह, काक्सीड एवं अन्य कीटों पर परभक्षी होते हैं ।
उदाहरण – एरिस्टैलिस जाति, वोलूसेला जाति ।
vii. कुल- ट्रायपेटिड़ी:
वयस्क मक्खियों के पंख चिकने होते हैं । कीटों का रंग पीला नारंगी अथवा घूसर होता है । पंख पूर्ण विकसित होते है तथा वयस्क मक्खियाँ विश्राम अथवा चलने की अवस्था में पंखों को आगे -पीछे करती रहती हैं ।
उदाहरण – बैक्ट्रोसेरा कुकुर्बिटी, डैकस कुकुर्बिटी, कार्पोमाया विसुवियाना ।
viii. कुल-ड्रोसोफिलिड़ी:
आकार में बहुत ही छोटी पीलापन लिए हुए घूसर रंग की मक्खियाँ होती हैं ।
उदाहरण – ड्रोसोफिला मैलेनोगैस्टर ।
ix. कुल-एग्रोमाइजिड़ी:
बहुत ही छोटी मक्खियाँ होती हैं । पंखों में सब कोस्टाशिरा के अंत में कोस्टा टूटी हुई होती है । मैगट पर्ण सुरगका होते हैं । प्रायः दलहनों में पर्ण सुरगक होते हैं ।
उदाहरण – फाइटोमाइजा एट्रीकार्निस, एग्रोमाइजा आब्ट्यूसा ।
x. कुल- एन्थोमाइड़ी:
ये छोटे आकार की पतली मक्खियां होती हैं । इनका रंग काला/घूसर/पीलापन लिए धूसर होता है । सिर लंबा एवं स्वतंत्र होता है । उदर पर काँटेदार बाल पाए जाते हैं ।
उदाहरण – हायलेमिया एंटिकुआ, एथरीगोना सोकाटा ।
xi. कुल- मस्मिड़ी:
इनका सिर बड़ा व स्वतंत्र होता है आँखें बड़ी होती हैं । श्रृंगिकाएँ तीन खंडीय होती है जिनका अंतिम खंड बड़ा होता है ।
उदाहरण – मस्का डोमेस्टिका ।
xii. कुल-टैकेनिड़ी:
इस कुल में छोटी, काले रंग की पुष्ट मक्खियाँ पायी जाती हैं । श्रृंगिकाएं आंखों के मध्य अथवा उनके ऊपर स्थित होती है । उदर के किनारे व अंत में काँटेदार बाल पाए जाते है । ये प्रायः परजीवी होते हैं ।
उदाहरण:
टैकिना जाति, कैम्प्सील्यूरा जाति ।
7. गण- हाइमैनोप्टेरा (Hymenoptera):
(हाइमेन (Hymen) – झिल्ली, टेरा पंख)
i. इस गण में छोटे से मध्यम आकार के कीट पाए जाते हैं ।
ii. सिर वक्ष से स्वतंत्र होता है तथा इधर-उधर गति कर सकता है ।
iii. संयुक्त नेत्र पूर्ण विकसित होते हैं तथा 3 नेत्रक पायी जाती है ।
iv. नर में लंबी व मादाओं में छोटी श्रृंगिकाएँ पायी जाती हैं ये धागाकार, कंधाकार, धनुषाकार होती हैं ।
v. सिर हाइपोग्नेथस प्रकार का होता व मुखांग चबाने व चाटने वाले के होते हैं ।
vi. दीजोड़ी पंख पाए जाते हैं जिनमें पंख संयोजी उपकरण हेमुलाई होती है ।
vii. पाँच खंडीय टारसाई पायी जाती है जिनमें दो नखर तथा एक एम्पोडियम होती है ।
viii. पूर्ण रूपांतरण पाया जाता है । ग्रब टांगरहित होती है ।
ix. उदर के अंत में अण्डरोपक पाया जाता है ।
(i) कुल-एपिडी:
सिर लगभग वक्ष के बराबर होता है । आँखें गोल तथा रोमयुक्त व तीन नेत्रकों से युक्त होती हैं । मैक्सीलरी पैल्प एक खंडीय तथा लैबियल पैल्प चार खंडीय होते हैं । टाँगें मजबूत व पराग एकत्रित करने वाली होती हैं । उदर पर डंक होता है । प्रौढ़ कीटों में नर, मादा व श्रमिक पाए जाते हैं । ये मधुमक्खियां कहलाती है ।
उदाहरण – एपिस इंडिका, एपिस डोरसेटा ।
(ii) कुल-टैन्थ्रैनिडड़ी:
स्कूटेलम का पिछला हिस्सा पोस्ट स्कूटेलम के रूप में अलग रहता है । अंडरोपक में एक प्लेट उपस्थित होती है । पाँच खंडीय टारसाई होती है । इस कुल में केवल एक कीट ही कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
उदाहरण – एथिलिया ल्यूगेन प्रोक्सिमा ।
(iii) कुल-ब्रेकीनिडी:
इस कुल के कीट बहुत ही सूक्ष्म होते हैं जो अन्य कीटों के लारवा व प्यूपा के परजीवी होते हैं । संयुक्ता नेत्र नग्न व तीन नेत्रक युक्त होती है । मादा में अंडरोपक प्रायः शरीर की लंबाई के बराबर होता है ।
उदाहरण – ब्रेकोन जाति, चिलोनोमस जाति, एपेंटेलिस जाति ।
(iv) कुल-चैल्सिड़ी:
इस कुल के सभी कीट सूक्ष्म व परजीवी होते हैं । सिर छोटा तथा श्रृंगिकाएँ साधारण एवं छोटी होती हैं आँखें बड़ी व तीन नेत्रक युक्त होती हैं । सीधा व छोटा अंडरोपक पाया जाता है ।
उदाहरण – चैल्सीड जाति, ब्रैक्रिमेरीयाजाति ।
(v) कुल-फौर्मिसिड़ी:
इस कुल के कीट सामाजिक होते हैं जो कि विभिन्न जातियों में विभक्त होते हैं । सिर, वक्ष व उदर के जोड़ सुस्पष्ट होते है । लैब्रम अवशेषी होते हैं । मैक्सिली 1 से 6 खंडीय व लैसीनिया झिल्लीदार व दंतरहित होती है । इनमें एंटीनी 4 से 13 खंडों से युक्त होती है ।
उदाहरण – चीटियाँ ।
8. गण- कोलीओप्टेरा (Coleoptera):
यह कीट ही नहीं वरन् समूचे जन्तु जगत में सबसे बड़ा गण है । इसमें आने वाली लगभग 225 लाख कीट जातियाँ इसे सबसे बड़ा समूह बनाती है ।
i. इस गण के अन्तर्गत शामिल कीट छोटे से लेकर बड़े आकार वाले होते हैं ।
ii. सिर हाइपोग्नेथस या प्रोग्नेथस होता है । सिर चपटा, बेलनाकार व आगे की ओर से नुकीला होता है ।
iii. संयुक्त नेत्र बड़े, गोलाकार होते हैं । नेत्रक अनुपस्थित होते हैं ।
iv. मुखांग प्रायः काटने व चबाने वाले होते हैं ।
v. अगली जोड़ी पंख प्रायः कठोर व मोटी होती है जिन्हें इलैट्रा कहते हैं । विश्राम की अवस्था में ये प्रायः पिछली जोड़ी पंखों को पूर्णतया ढक लेते हैं ।
vi. टारसाई एक से पचि खण्डों युक्त होती है ।
vii. पूर्णरूपान्तरण पाया जाता है ।
viii. उदर दस खण्डीय होता है तथा इनका प्रथम खण्ड छोटा होता है ।
ये गण तीन उपगणों में विभक्त किया गया है जो निम्नलिखित है:
उपगण – ऐडेफैगा
उपगण – पौलीफैगा
उपगण – आर्कोस्टेमैटा
इस गण के महत्वपूर्ण कुलों के बारे में संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है:
(i) कुल-स्केरेबिड़ी:
कीटों का शरीर गोलाकार होता है । इनका सिर मोटी चपटी प्लेटों के रूप में आगे निकला होता है । नरों में मैन्डिबल विशेष रूप से विकसित नहीं होते हैं । श्रुंगिकाएं 8 से 10 खंडीय होती हैं ।
इलेट्रा दृढ़ तथा पाइजीडियम के अतिरिक्त सम्पूर्ण उदर को ढंके हुए रहता है यह कुल अनेक उपकुल में विभक्त किया गया है जिनके उदाहरण निम्नलिखित है:
(ii) उपकुल – मेलोलोन्थिनी:
उदाहरण – होलोट्राइकिया कान्सेनगीनिया हो. सेर्राटा, हो. लोगीपेनीस ।
(iii) उपकुल – रूटेलिनी:
उदाहरण – एनोमेला बंगालेन्सिस
(iv) उपकुल – डायनैस्टिनी:
उदाहरण – ओरीक्टेस राइनोसेरस
(v) कुल – सैरेम्बिसोड़ी:
बड़े आकार के भृंग होते हैं । श्रृंगिकाएँ 11 खण्डीय तथा शरीर से भी अधिक लम्बी होती है । ग्रब लकडी के बेधक होते हैं ।
उदारहण – बैटोसेरा रुबस
(vi) कुल – क्रायसोमेलिडी:
छोटे अथवा बहुत छोटे बेलनाकार भृंग होते हैं । इनका सिर छोटा श्रृंगिकाएँ छोटी व 11 खण्डीय होती है । टारसाई पाँच खण्डीय होती हैं ।
उदाहरण – रैपिडोपैल्पा फोवीकोलिस, हिस्पा आर्मीजेरा ।
(vii) कुल – कुर्कुलिओनिड़ी:
छोटे व मध्यम आकार के मृग जिनके सिर चोंच में परिवर्तित होते हैं । ये धुन कहलाते हैं ।
उदाहरण – मायलोसेरस जाति, साइटोफिलस ओरायजी ।
(viii) कुल – बुप्रेस्टिड़ी:
ये चमकदार, तेज हरे/लाल चमकने वाले मृग होते हैं । इनका सिर आशिक रूप से वक्ष में धंसा होता है ।
उदाहरण – बुप्रेस्टिस जाति, बेलिओनेटा प्रेसिना ।
(ix) कुल – एलैटेरिड़ी:
भृंगों को क्लिक भृंग कहते हैं । ये छोटे, चपटे, काले, धूसर अथवा भूरे रंग के मृग होते है । इनका सिर छोटा व वक्ष में धंसा हुआ होता है । ग्रब का सिर गहरा भूरा होता है । ये सफेद रंग के तार के समान पतले व चपटे होते है इन्हें ‘वायर वार्म’ भी कहते है ।
उदाहरण – ऐग्रीओटेस जाति ।
(x) कुल – लैम्पीरिड़ी:
ये कीट जुगनु कहलाते हैं । ये रात्रि के समय प्रकाश उत्पन्न करते हैं । प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग नर में छठे व मादा में सातवें उदर खण्ड में पाये जाते हैं ।
उदाहरण – डायफैनस मार्जिनैलिस ।
(xi) कुल – डर्मेस्टिड़ी:
भृंग का शरीर छोटे-छोटे बालों व शल्कों से अच्छादित होता है । ये प्रायः संचित अनाज के हानिकारक कीट होते हैं ।
उदाहरण – ट्रोगोडर्मा ग्रेनेरियम ।
(xii) कुल – एनोबोइड़ी:
भृंग लकड़ी व फर्नीचर को काफी नुकसान पहुँचाते हैं । इन्हें डेथ वाच भृंग कहते है ।
उदाहरण – स्टेगोबियम पैनिकम, लेसिओडर्मा सेरिकार्ने ।
(xiii) कुल – बोस्ट्रिचिड़ी:
छोटे एवं मध्यम आकार के बेलनाकार का पाये जाते है । श्रृंगिका 11-खण्डीय व अन्त में गदाकार होती है ।
उदाहरण – राइजोप्रथा डोमीनिका ।
(xiv) कुल – सिल्वैनिड़ी:
टार्साई पाँच खण्डीय होती हैं । श्रृंगिकाएँ प्रायः गदाकार होती हैं ।
उदाहरण – ओरायर्जीफिलस सुरिनामेन्सिस ।
(xv) कुल – कॉक्सीनेलिड़ी:
प्रायः परभक्षी कीट होते हैं इन्हें लेडी बर्ड बीटल कहते हैं । टार्साई की सन्धि 4-4-4 होती है । तीसरी सन्धि दूसरी सन्धि से ढकी रहती है ।
उदाहरण – कोक्सिनेला सेप्टमपंक्टेटा, रोडोलिया कार्डिनैलिस ।
(xvi) कुल – टेनेब्रिओनिड़ी:
छोटे, धुंधले रंग के, पंखविहीन या अवशेषी पंखों युक्त का होते हैं । इनका शरीर दृढ़ तथा चपटा होता है ।
उदाहरण – ट्राइबोलियम कैस्टेनियम, ट्रा. कन्फ्यूजम ।
(xvii) कुल – मेलोइड़ा:
वयस्क भृंग, तेल भृंग या फफोला भृंग के नाम से भी जाने जाते है । मध्यम आकार के पुष्ट शरीर वाले नीले, भूरे रंग के मृग होते है ।
उदाहरण – मायलैब्रिस जाति ।
(xviii) कुल – ब्रुचिड़ी:
छोटे आकार के भृंग होते हैं जिनके शरीर पर बाल पाये जाते हैं । श्रृंगिकाएँ नेत्रों के आगे निकलती है । पैर छोटे व टार्साई पाँच खंडीय होती हैं । भृंगों को दाल भृंग कहते हैं ।
उदाहरण – कैलोसोब्रूकस चाइनेन्सिस, कै. मैकुलेटस ।