Read this article in Hindi to learn about the external structure of insects.
कीट के शरीर की बाहरी संरचना का अध्ययन निम्नलिखित दो भागों में विभक्त कर किया जाता है:
1. देहभित्ति एवं उसके अवयव; एवं
2. कीट शरीर का अध्ययन – सिर, वक्ष व उदर ।
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1. देहभित्ति (Body-Wall):
कीटों की देह भित्ति (अध्यावरण) बाह्य कंकाल का कार्य करती है और इसकी तुलना पृष्ठधारियों के कंकाल से भी की जा सकती है । यह कठोरतम संरचना सम्पूर्ण शरीर को ढके रहती है, पर कुछ विशेष स्थानों पर यह लचीली रहती है । देह भित्ति बाह्य त्वचा व पताणु के रिसाव से बनती है तथा अनेकों ऐसे स्तर की होती हैं जिनके द्वारा विभिन्न कार्य सम्पन्न होते हैं ।
अध्यावरण से मुख्य पेशियां जुड़ी हुई होती हैं जिससे शरीर की सम्बन्धता बनी रहती है । देह भित्ति द्वारा कई विशेष कार्य सम्पन्न होते है । यह कीटों की सभी बाह्य प्रतिकूल प्रभावों से रक्षा करती है, जिनमें वाष्पीकरण, हानिकारक जीव और रोग प्रमुख हैं ।
यह पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति सुग्राही होती है एवं बाह्य प्रेरकों के प्रति अत्यन्त क्रियाशील होती हैं कीट की देह भित्ति निम्नलिखित स्तरों से बनी होती हैं:
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(1) क्यूटिकल
(2) एपीडर्मिस
(3) आधार कला
2. कीट शरीर का अध्ययन (Study of Insect Body):
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i. सिर (Head):
कीट के शरीर का सबसे आगे वाला भाग सिर कहलाता है । ये एक पतली झिल्ली द्वारा वक्ष के अग्र सिरे से जुड़ा होता है । इस झिल्ली के सरवेक्स कहते हैं । कीटों का सिर 6 खण्डों से मिलकर बनाता है । ये खण्ड भ्रूणावस्था में स्पष्ट दिखाई देते हैं तथा वयस्क अवस्था में ये फर्क प्रायः नहीं दिखाई देता है ।
प्रत्येक खण्ड में उपांग भी होते हैं । बाद में ये खण्ड मिलकर मस्तिष्क कोष का रूप धारण कर लेते हैं । कीटों में सिर का आकार ऊपर से चौड़ा व अर्द्धगोलाकार एवं निचला हिस्सा संकरा होता है । सिर पर विभिन्न अंग पाये जाते हैं, ये निम्नलिखित हैं- श्रृंगिकाएँ, संयुक्ता नेत्र, सामान्य नेत्रक व मुखांग ।
कीट के सिर की निम्नलिखित तीन विभिन्न दशाएँ होती हैं:
1. अग्रोन्मुख (Prognathous):
इस स्थिति में सिर की मध्य रेखा शेष शरीर की मध्य रेखा के समानान्तर होती है और इस दशा में मुखांगों की स्थिति आगे नीचे की ओर होती है । उदाहरण- मृग का सिर ।
2. अधोन्मुख (Hypognathous):
इस स्थिति में सिर की मध्य रेखा शेष शरीर की मध्य रेखा के साथ लगभग समकोण बनाती है एवं इस दशा में मुखांग नीचे की ओर लगे होते हैं । उदाहरण – टिड्डा व कॉकरोच ।
3. पश्चोन्मुखी (Ophestognathus):
इस स्थिति में सिर की मध्य रेखा अधिक पीछे की ओर मुड़कर शेष शरीर की मध्य रेखा से न्यूनकोण बनाती है । इस दशा में मुखांग पीछे की ओर हो जाते हैं । उदाहरण- बग ।
ii. कीट के मुखांग (Mouth Parts):
कीटों के सिर पर पाये जाने वाले उपागों में भूमिकाओं के अतिरिक्त मुखांग प्रमुख हैं । ये अंग मुख गुहा को घेरे रहते है । मुखांगों का प्रकार कीट के भोजन ग्रहण करने की विधि के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है । कीटों में प्रायः सबसे अधिक विविधता मुखांगों में ही पायी जाती है ।
मुखांग की रचना करने वाले प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं:
1. ऊपरी होठ या लेब्रम
2. एक जोडी मेडिबल्स
3. एक जोड़ी मेक्सिली
4. निचले होठ या लेबियम
5. जीभ या हायपोफेरिंक्स
कीटों में भोजन करने की आदतों के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के मुखांग पाये जाते हैं:
1. काटने एवं चबाने वाले – कॉकरोच, टिड्डा, भृंग, पतंगों व तितलियों की सूंडियां ।
2. चुभाने एवं चूसने वाले – मच्छर ।
3. सायफनाकार – तितली, व शलभ ।
4. चबाने व चाटने वाले – ततैया-मधुमक्खी ।
5. अवशोषणाकार – घरेलू मक्खी ।
iii. वक्ष (Thorax):
सिर के पीछे लगी पतली झिल्ली गर्दन को वक्ष से जोडती है यह जोड़ इस प्रकार का होता है कि सिर को इधर-उधर घुमाया जा सकता है । वक्ष सिर के पश्चात् कीट शरीर का दूसरा मुख्य भाग है । वक्ष तीन खण्डों से मिलकर बना होता है ।
ये खण्ड निम्नलिखित हैं:
(क) अग्रवक्ष (Prothorax)
(ख) मध्यवक्ष (Mesothorax)
(ग) पश्च वक्ष (Metathorax)
प्रायः सभी कीटों में वक्ष के प्रत्येक खण्ड पर एक जोड़ी टांगें लगी होती हैं । इसी के साथ अधिकांश कीटों में मध्य व पश्च वक्ष दोनों पर एक-एक जोड़ी पंख लगे होते हैं । मध्य तथा पश्च वक्षों जिन पर पंख पाये जाते हैं, सम्मिलित रूप से टेराथोरेक्स कहलाते हैं । सम्पूर्ण वक्ष एक स्कलेराईट से ढंका रहता है । पृष्ठ सतह को टर्गम, पार्श्व सतह को प्लयूरोन व निचली सतह को र्स्टनम कहते हैं ।
कीट वक्ष में निम्नलिखित दो उपांग पाये जाते हैं:
(क) टांगें तथा
(ख) पंख ।
(क) टांगें:
प्रत्येक कीट में सामान्यतः तीन जोड़ी टांगे पायी जाती हैं, जो उसके वक्ष के तीनों खण्डों में एक-एक जोड़ी पायी जाती है ।
प्रत्येक टांग बहुखण्डीय होती है और इसके निम्नलिखित भाग होते हैं:
1. कॉक्सा
2. ट्रोकेन्टर
3. फीमर
4. टिबिया
5. टार्सस
6. प्रिटार्सस
इन भागों के मध्य का भाग काईटिन का बना होता है और आसानी से मुड़ जाता है । प्रत्येक भाग एक खंडीय होता है मगर टार्सस एक से पाँच खण्डों का होता है । टांग का आधारीय भाग जो की वक्ष से जुड़ा होता है काक्सा कहलाता है ।
काक्सा से जुड़ा हुआ अपेक्षाकृत छोटा भाग ट्रोकेन्टर कहलाता है फीमर टांग का सबसे लम्बा व मजबूत भाग होता है । फीमर से टिबिया जुड़ा रहता है यह भी लम्बा होता है । इन खण्डों को टार्सोमियर्स कहते हैं । अंतिम भाग जो कि प्रिटार्सस कहलाता है अपने सिर पर दो नाखून लिये हुए होते हैं ।
प्रिटार्सस के दोनों नखरों के मध्य एक कोमल गद्दी पायी जाती है जिसे एरोलियम कहते हैं । कीटों के आवास, रहन सहन के अनुसार उनकी टांगें अनेकों रूपों में रूपान्तरित हो जाती हैं ये रूपान्तरित टांगें चलने दौड़ने कूदने तैरने शिकार पकड़ने पराग एकत्रित करने आदि में सहयोग करने के हिसाब से होते हैं ।
(ख) पंख (Wings):
कीटों के पंख अन्य पंख वाले प्राणियों के अपेक्षा विशिष्ट होते हैं । उड़ने वाले प्राणियों जैसे चिड़ियों एवं चमगादड़ों में पंखों का विकास अग्र पादों का विशेष रूपान्तरण है जबकि कीटों में ऐसा नहीं है । कीटों में पंख देह-भित्ति का बाह्य परिवर्धन है जो नोटम के पार्श्व किनारों से लगा होता है । पंखों द्वारा मिलने वाली उड़ान कीट समूह की सफलता का मुख्य कारण है ।
कीटों के अलावा किसी भी अपृष्ठवंशी में पंख नहीं मिलते है । पंखों में अनेक विभिन्नताएँ होती हैं । इन्हीं विभिन्नताओं के आधार पर कीटों की विभिन्न किस्मों को एक दूसरे से अलग भी किया जा सकता है । पंखों में उपस्थित इस व्यापक विभेदीकरण का उपयोग कीट वर्गीकरण में काम में लिया जाता है ।
पंखों के आधार पर कीटों को दो उपवर्गों एप्टेरिगोटा व टेरीगोटा में विभाजित किया गया है । प्रथम उपवर्ग पंखहीन कीटों का है तथा दूसरा पंखयुक्त कीटों का है । टेरीगोटा उपवर्ग में भी कुछ कीट विशेष रहन-सहन के कारण पंखहीन होते हैं ।
iv. उदर (Abdomen):
कीट शरीर का तीसरा भाग उदर कहलाता है । उदर सम्पूर्ण कीट की लम्बाई का आधे से अधिक भाग घेरे रखता है । उदर में अधिकतम ग्यारह खण्ड होते हैं मगर इसमें कम ही खण्ड दिखाई देते हैं । प्रत्येक उदरीय खण्ड एक छल्ले के आकार का दिखाई देता है ।
प्रत्येक खण्ड जिसे सोमाईट कहते हैं, ऊपर के स्तर पर क्यूटिकल की मोटी तह से ढका रहता है । इसकी ऊपरी सतह को टाल प्लेट तथा निचली सतह को र्स्टनल प्लेट कहते हैं । पार्श्व किनारों पर टर्गल एवं र्स्टनल प्लेटे एक पतली झिल्ली द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं जो कि प्लूरान प्लेट कहलाती है ।
उदर में ही शरीर के महत्वपूर्ण अंग उपस्थित रहते हैं और यह शरीर का वह मुख्य भाग है जो श्वसन किया के लिए गति को उत्पन्न करता है । इसके पश्च भाग में अधर तल पर जनन-नलिकाओं के खुलने के छिद्र जिनमें युग्मन व अंडनिक्षेपक अंग लगे रहते हैं तथा भोजन नलिका इसके आखिरी खण्ड पर खुलती है ।
कीटों में प्रायः मादा जनन छिद्र सातवें या आठवें स्टनर्म के पीछे स्थित होता है कभी-कभी यह नवें स्टर्नम पर अथवा उसके पीछे स्थित हो सकता है । नर जनन छिद्र सदैव नवें खण्ड के पश्च भाग में स्थित होता है ।
a. मादा जननांग (Female Genetalia):
आठवें खण्ड में परिवर्तन प्रायः ऐसी मादा कीटों में होता है जिनमें पूर्ण विकसित अण्डनिक्षेपक पाये जाते है क्योंकि अण्डनिक्षेपक का प्रथम कपाट जोड़ी इसी खण्ड से विकसित होता है । अण्डनिक्षेपक तीन जोड़ी कपाटों से मिलकर बनता है । इन कपाटों के परिवर्धन और सह-अनुकूलन की मात्रा अण्डनिक्षेपक के उपयोग पर निर्भर होती है ।
कीटों में अण्डनिक्षेपक निम्नलिखित संरचना का बना होता है:
(1) अग्रकपाट धारक (Valvifers) – यह एक जोड़ी संरचना में छोटे-छोटे कपाट धारक आठवें उदर खण्ड से जुड़े होते हैं ।
(2) अग्र कपाट- अग्र कपाट धारकों के ऊपर एक जोड़ी अग्र कपाट होते हैं ।
(3) पश्च कपाट- यह भी एक जोड़ी होती है और ये अग्र कपाटों के पीछे स्थित होते हैं ।
(4) भीतरी कपाट- पश्च कपाट धारकों से भीतर की ओर एक जोड़ी भीतरी कपाट जुड़े होते हैं ।
(5) पृष्ठ कपाट- अण्ड निक्षेपक की पृष्ठ सतह पर एक जोड़ी पृष्ठ कपाट होते हैं ।
b. नर जननांग (Male Genetalia):
नर जननांगों में व्यापक विविधता पायी जाती है ।
नर जननांग निम्नलिखित होते हैं:
(1) आलिंगक
(2) एडीगस
(3) शिश्न
(4) पेरामियर्स
आलिंगक संख्या में एक जोड़ी होते हैं और मैथुन के समय मादा को कसकर पकड़ने में सहायता देते हैं इसके बीच में एडिगस होता है । इसी एडीगस में एक शिश्न होता है तथा इसमें पेरामियर्स की एक जोड़ी उपस्थित होती है ।