Read this article in Hindi to learn about the respiratory system in insects.

कीटों में श्वसन अंगों की भारी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं । कीटों में फेफड़े नहीं होते वरन् इनके स्थान पर गैसों के आदान प्रदान के लिए देहगुहा के रक्त में तैरती हुई श्वास नलिकाएँ होती है जिन्हें ट्रेकिया कहते हैं ट्रेकिया कीट विकास के समय देहभित्ति के अंदर धंस जाने से बनते हैं ।

ट्रेकिया के अंदर के सिरे बंद होते हैं । जबकि बाहरी सिरे एक छिद्र द्वारा देहभित्ती की सतह पर खुलते हैं । इन श्वसन छिद्रों को स्टिगमेटा कहते हैं । टिड्डे में 10 जोड़ी श्वसन छिद्र होते हैं जिसमें दो जोड़े वक्ष में पार्श्व सतह तथा शेष 8 जोड़ी उदर पर स्थित होते हैं । ये दस जोड़ी श्वसन छिद्र सभी कीटों में खुले नहीं होते हालांकि टिड्डे में ये सभी खुले होते हैं ।

श्वसन छिद्रों के खुलने की संख्या के आधार पर कीटों को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया गया है:

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i. होलोन्यूस्टिक:

यह ऐसा श्वसन तंत्र है जिसमें 10 जोड़ी श्वसन छिद्र खुले होते हैं ।

उदाहरण – टिड्‌डा ।

ii. प्रोन्यूस्टिक:

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इसमें केवल सबसे पहला यानि अगली जोड़ी वाले श्वसन छिद्र कार्य करते हैं । एवं शेष बंद रहते है ।

उदाहरण – मच्छर के प्यूपा ।

iii. मेटान्यूस्टिक:

इसमें केवल श्वसन छिद्रो का अन्तिम जोडा ही क्रियाशील होता है तथा शेष बंद रहते हैं ।

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उदाहरण – मच्छर के लारवा ।

iv. एम्फीन्यूस्टिक:

इस प्रकार के स्वसन तंत्र में दो जोड़ी अर्थात् प्रथम और अंतिम जोड़े अर्थात् प्रथम और अंतिम जोड़े ही खुले रहते हैं तथा शोष 8 जोड़ी बंद रहते हैं ।

उदाहरण- घरेलू मक्खी के लारवा में ।

v. पेरीन्यूस्टिक:

इसमें कोई भी एक दो जोड़ी श्वसन छिद्र बंद रहते हैं तथा शेष खुले रहते हैं । उदाहरण – ग्रब, सूँडी ।

vi. एन्यूस्टिक:

इस प्रकार के श्वसन तंत्र में श्वसन छिद्र बिल्कुल नहीं होते है ।

उदाहरण – परजीवी हायमेनोप्टेरा ।

टिड्‌डे में श्वसन तंत्र को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:

A. लम्बाकार श्वास नलिकाएँ

B. आड़ी श्वास नलिकाएँ

C. वायु-कोष

D. उपश्वास नलिकाएँ

A. लम्बाकार श्वास नलिकाएँ (Longitudinal Tracheal Trunks):

ये तीन जोड़ी होते हैं:

(i) पार्श्व-श्वास नलिकाएं

(ii) पृष्ठ-श्वास नलिकाएँ

(iii) प्रति पृष्ठ-श्वास नलिकाएँ

(i) पार्श्व-श्वास नलिकाएँ:

ये नलिकाएँ दोनों तरफ के पार्श्व तलों पर देहभित्ति से सटी हुई होती है इसमें अपनी-अपनी तरफ के सभी श्वसन छिद्र खुलते हैं ।

(ii) पृष्ठ-श्वास नलिकाएँ:

ये एक जोड़ी नलिकाएँ हृदय के दोनों पार्श्व तलों पर उनके समांतर उदर के पहले खंड से लेकर आठवें खंड तक फैली होती है ।

(iii) प्रति पृष्ठ-श्वास नलिकाएँ:

ये नलिकाएँ प्रति पृष्ठ सतह पर वेन्ट्रल नर्व कोर्ड के समानांतर स्थित होती है ।

B. आड़ी-श्वास नलिकाएँ (Transverse Tracheal Trunks):

इन्हें लेटरल ट्रेकियल ट्रंक की शाखाएँ भी कहते है ये शाखाएँ निम्न भागों में जाती है:

(a) आहार नलिका को

(b) वायु कोष को

(c) पंखों तथा टाँगों को

(d) उदर के प्रथम खंड से आउवे खंड तक

(e) प्रतिपृष्ठ सतह पर उदर के प्रथम से आठवें खंड तक

C. वायुकोष:

वायु कोष श्वांस नलिकाओं के उभरे हुए भाग हैं । सभी वायुकोष पार्श्व नलिकाओं से सम्बद्ध होते हैं । ये पतली लंबी नलिकाओं द्वारा आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं । सिर के अन्दर एक जोड़ी वायुकोष होते हैं मुखांगों में अनेक छोटे-छोटे वायु कोष होते हैं ।

वक्ष के अन्दर चार जोड़ी वायुकोष होते हैं । उदर में आठ जोड़ी वायुकोष होते है । वायुकोष प्रायः फूलकर शरीर का आकार बढ़ा देते हैं तथा शरीर का भार कम कर देते हैं । उड़ान के समय शीघ्र श्वसन के लिए ये अत्यंत आवश्यक होते हैं ।

D. उपश्वांस नलिकाएँ:

ये शरीर के सभी भागों में जाने वाली छोटी-छोटी एक कोशिय नलिकाएँ है । ये ट्रेकिया के सिरों या किनारों से निकलती हैं एवं प्रत्येक भाग में जाल-सा बना देती हैं ।

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